कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
तृप्तों को भोज दिया करते, मित्रों को जिमाना तुम जानो।
अनजानी भूख की चिंता में, भोजन त्यागो तो हम जानें॥
इस हंसती गाती दुनिया में, मदमस्त बसना तुम जानो।
मधु की मनुहारें मिलने पे, तुम गरल पियो तो हम जानें॥
मनमौजी बनकर जग रमता, संयम में रहना कठिन महा।
जो पानें में जीवन बीता, उसे भेंट चढाओ तो हम जानें॥
दमन तुम्हारा जग चाहता, और जगत हिलाना तुम जानो।
है लगन सभी की चढने में, स्कंध बढाओ तो हम जानें॥
इन लहरों का रुख देख-देख, जग की पतवार चला करती।
झंझावात भरे तूफानों में, तरणि को तिराओ तो हम जानें॥
अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
anookool hava mein jag chalta ,,,pratikool chalo to hum jane;;;bahut sunder
जवाब देंहटाएंbahut sundar, wah wah, aanand aa gaya..
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...प्रेरणादायी भाव....
जवाब देंहटाएंपतझड़ में खिलो तो मैं जानू -पूरी कविता ही अर्थ्मूर्ण और भावमयी है सुज्ञ जी ..वाह को कबूलिये !
जवाब देंहटाएंअनुकूल और सहज बने रहना भी आसान नहीं होता. प्रतिकूल की चाहत कभी-कभी रखें, वरना परिवर्तन कम, बवंडर अधिक होता है.
जवाब देंहटाएंअनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
जवाब देंहटाएंकई बार पढ़ी आपकी यह रचना ...गुनगुनाने का दिल करता है ..
शुभकामनायें आपको
इन लहरों का रुख देख-देख, जग की पतवार चला करती।
जवाब देंहटाएंझंझावात भरे तूफानों में, तरणि को तिराओ तो हम जानें॥
बहुत खूब सुज्ञ भईया , नई उर्जा भर देने वाली रही आपकी ये रचना ।
प्रेरणादय एवं बेहद सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंमन से निकली बधाई को स्वीकार करें
अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
जवाब देंहटाएंकलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
नए तेवर के साथ भावपूर्ण रचना !
उत्तम प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंअनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
@ अनुकूल टिप्पणी सब लेते, प्रतिकूल लेवो तो हम मानें.
तुम दंड पेलते यौवन में, बल झड़ में पेलो तो हम मानें. .......... [ बल झड़ = बुढ़ापा]
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जवाब देंहटाएंतृप्तों को भोज दिया करते, मित्रों को जिमाना तुम जानो।
अनजानी भूख की चिंता में, भोजन त्यागो तो हम जानें॥ ........... वाह !
@ जब त्याग करें भोजन अपना, अनजानी भूख की चिंता में.
बिन भोजन भूख मिटे मेरी, ऐसा जो हो तो हम मानें.
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जवाब देंहटाएंइस हँसती गाती दुनिया में, मदमस्त बसना तुम जानो।
मधु की मनुहारें मिलने पे, तुम गरल पियो तो हम जानें॥ ...... वाह जी वाह!
@ मधु की मनुहारें मिलती हैं, अपशब्द गरल भी पीते हैं.
इस हँसती गाती दुनिया में शत्रु पहचानो तो हम मानें.
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जवाब देंहटाएंमनमौजी बनकर जग रमता, संयम में रहना कठिन महा।
जो पानें में जीवन बीता, उसे भेंट चढाओ तो हम जानें॥
@ जो देवि-देव पर भेंट चढ़े, उससे पण्डे का उदर बढ़े.
ऎसी उदारता ठीक नहीं, अभाव भरो तो ही मानें.
सब छूट जाएगा अंत समय, या बेटे ही छीनेंगे सब.
जो होता हो खुद-बा-खुद ही, निर्लिप्त रहो तो हम मानें.
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जवाब देंहटाएंदमन तुम्हारा जग चाहता, और जगत हिलाना तुम जानो।
है लगन सभी की चढने में, स्कंध बढाओ तो हम जानें॥ ...... बेहतरीन भाव.
@ स्कंध बढ़ायेंगे हम भी, जब पापी मृत पड़ा होगा.
कोमल भावों की डोली को दो ऋषि उठायें तो हम मानें.
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जवाब देंहटाएंइन लहरों का रुख देख-देख, जग की पतवार चला करती।
झंझावात भरे तूफानों में, तरणि को तिराओ तो हम जानें॥
@ मैं डूब गया इन भावों में विपरीत बोल-बोलकर के.
इन वैचारिक तूफानों से, तुम मुझे निकालो तो मानें.
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जवाब देंहटाएंअनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
@ अनुकूल टिप्पणी सब लेते, प्रतिकूल लेवो तो हम मानें.
तुम दंड पेलते यौवन में, बल झड़ में पेलो तो हम मानें.
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post to man-mohak hai hi....adarniye guruji ne ise
जवाब देंहटाएंaur bhi lajij kar diya hai.....jeh-nasib....
pranam.
अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
जवाब देंहटाएंकलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
वाह वाह वाह! कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति………………बहुत पसन्द आयी।
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंकविता की अच्छी खासी गवेषणा हो गई, आभार
@ अनुकूल टिप्पणी सब लेते, प्रतिकूल लेवो तो हम मानें.
तुम दंड पेलते यौवन में, बल झड़ में पेलो तो हम मानें.
- अनुकूल टिप्पणी साहस भरे,प्रतिकूल सहज सुधार करे।
बलझड में आता धर्य बडा, योवन में दिखाओ तो हम जानें
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएं@ जब त्याग करें भोजन अपना, अनजानी भूख की चिंता में.
बिन भोजन भूख मिटे मेरी, ऐसा जो हो तो हम मानें.
-मिटा किसी का दुख-पीड़न, अनजानी तृप्ति मिलती है।
मन-इच्छित कार्य मगनता में, भूख न लगती हम जानें।
@ मधु की मनुहारें मिलती हैं, अपशब्द गरल भी पीते हैं.
इस हँसती गाती दुनिया में शत्रु पहचानो तो हम मानें.
-अपशब्द गरल भी पीते हैं, नहीं ताड़न को फ़िर जीते है।
मानहनन जब भूल चुके,अब शत्रु भुलें तो हम जानें॥
@ जो देवि-देव पर भेंट चढ़े, उससे पण्डे का उदर बढ़े.
ऎसी उदारता ठीक नहीं, अभाव भरो तो ही मानें.
सब छूट जाएगा अंत समय, या बेटे ही छीनेंगे सब.
जो होता हो खुद-बा-खुद ही, निर्लिप्त रहो तो हम मानें.
-भेंट में भाव न देव-चढावे का, यहाँ छुपा भाव दिखावे का।
ममत्व संग निर्लिप्त हों कैसे? यह समझ जगे तो हम जानें
bahut sundar bahv abhivyakti
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी,
जवाब देंहटाएं@ स्कंध बढ़ायेंगे हम भी, जब पापी मृत पड़ा होगा.
कोमल भावों की डोली को दो ऋषि उठायें तो हम मानें.
अब शत्रु से खतरा नहीं, अर्थी को कंधा सब देते।
पतित भी पावन बने,करें स्पर्धी हित तो हम जानें।
@ मैं डूब गया इन भावों में विपरीत बोल-बोलकर के.
इन वैचारिक तूफानों से, तुम मुझे निकालो तो मानें.
सहज आवेश चला आता, जब द्वेष दूर न हो मन से।
शान्त-चित विचारों से, निरूपण करो तो हम जानें।
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएं---------
हंसी का विज्ञान।
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंअनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें
जवाब देंहटाएंपहली पंक्ति ही बड़ी सारगर्भित है. वाह वाह.
बड़ी कठिन परीक्षा रखी है आपने, हंसराज जी.. सारे विषयों में पास हो जाऊँ ऐसा लगता नहीं.. लेकिन कुछ बातें तो प्रकृति का नियम है जैसे पतझड़ में फूलों का मुरझाना और बहारों में खिलना.. अब इस नियम के विपरीत क्यों... बाकी बातें तो सही हैं!! कुछ का अनुपालन हो जाता है, सभी का नहीं, इसे स्वीकारोक्ति मानें!!
जवाब देंहटाएंसलील जी,
जवाब देंहटाएंपतझड़ और बहार तो प्रतीक है, बिंब है। खुशीयों में सभी मुस्कराते है, दुख के अवसर पर मुस्कराएं तो बात बनें।
सभी का अनुपालन हो ही जाय कठिन है, यह स्वीकारोक्ति मैं भी करता हूँ। बस बार बार स्मृति में रखने के लिये दोहराता हूँ।
आपकी रचना लाजवाब।
जवाब देंहटाएंप्रतुल जी कुछ और पंक्तिया जोड़ी और फ़िर आपने चंद पंक्तिया लिखी। आप दोनो के बीच की ये प्रतिस्पर्धा बहुत ही ज्ञानवर्धक रही। इसके आप मेरी तरफ़ से बधाई के पात्र हैं।
'सुज्ञ जी'
जवाब देंहटाएंआज मैं 'निरामिष' ब्लॉग पर भी गया था। इस ब्लॉग की शुरुआत एक स्वागतयोग्य कदम है। आप निशचय ही सफल होंगे। ऐसा मेरा विश्वास है। टिप्पढ़ीकर्ता के रूप में, मैं हमेशा उस ब्लॉग पर
आता रहूँगा। जैसे ही कुछ फुर्सत मिलेगी या लगेगा कि यहाँ मुझे कुछ कहना चाहिए तो मैं जरूर लिखूगा। आपके निमंत्रण के लिए आपका आभारी हूँ।
धारा के विपरीत जो सार्थक कदम बढाते हैं वि ही रेगिस्तान में बहार ला सकते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
जवाब देंहटाएंसच धारा के विपरीत चलना ही सबसे दुष्कर है...पर महान भी वही लोग होते हैं जो प्रतिकूल चलने की हिम्मत रखते हैं.
बहुत ही सार्थक कविता
bahut sunder prastuti
जवाब देंहटाएं.
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जवाब देंहटाएंमिटा किसी का दुख-पीड़न, अनजानी तृप्ति मिलती है।
मन-इच्छित कार्य मगनता में, भूख न लगती हम जानें।
............... सुन्दर अति सुन्दर.
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जवाब देंहटाएंअपशब्द गरल भी पीते हैं, नहीं ताड़न को फ़िर जीते है।
मान हनन जब भूल चुके, अब शत्रु भुलें तो हम जानें॥
....... इसने भी निरुत्तर कर दिया.
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जवाब देंहटाएंभेंट में भाव न देव-चढावे का, यहाँ छुपा भाव दिखावे का।
ममत्व संग निर्लिप्त हों कैसे? यह समझ जगे तो हम जानें.
............ आपने सही कहा.
पर मेरा भाव यहाँ 'दान दिया' जैसा भाव भी लिप्तता का सुख देता है - से है. मैंने ब्लड डोनेट किया ... मैं इस बात को दस जगह गाता फिरा तो कैसी निर्लिप्तता. मेरा यहाँ निर्लिप्तता से तात्पर्य ... भेंट चढाने वाले की मानसिकता को ध्यान में रखकर उसपर कटाक्ष करना था. 'वह फिर भी लिप्त ही रहता है उसे 'कीर्ति सुख' चाहिये, उसका दस लोग आभार ज्ञापन करें.
अनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
जवाब देंहटाएंकलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
वाह ...बहुत ही सुन्दर भावों को प्रस्तुत किया है इस रचना में ...आभार ।
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जवाब देंहटाएंअब शत्रु से खतरा नहीं, अर्थी को कंधा सब देते।
पतित भी पावन बने, करें स्पर्धी हित तो हम जानें।
.............. आपकी हाजिर जवाबी का कायल हुआ. विषय कुछ जरूर दिशा बदल गया.
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जवाब देंहटाएंसहज आवेश चला आता, जब द्वेष दूर न हो मन से।
शान्त-चित विचारों से, निरूपण करो तो हम जानें।
..... मुझे योगदर्शन का सूत्र ध्यान आ गया : "योगः चित्तवृत्ति निरोधः" . यदि स्वयं को परम सत्ता से जोड़ना है तो समस्त शारीरिक और मानसिक व्यापारों को रोकना होगा."
आपसे मार्गदर्शन मिले तो लाभ ही लाभ है - यह जान गया.
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प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंयोगदर्शन का यह सूत्र हर दशा में जीवन के उपयुक्त है…।
"योगः चित्तवृत्ति निरोधः"
इसी शिक्षा से हम प्रवृति में भी निर्लिप्त रह सकते है। प्रवृत रहते हुए भी हम अनावश्यक चित्तवृत्ति का निरोध करें।
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति.. बधाई सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंआपकी हर पोस्ट दीवार पर सजा कर रखने योग्य होती है.. ताकि प्रतिकूल परिस्थितियों में बल प्राप्त होता रहे!!
जवाब देंहटाएंतृप्तों को भोज दिया करते, मित्रों को जिमाना तुम जानो।
जवाब देंहटाएंअनजानी भूख की चिंता में, भोजन त्यागो तो हम जानें॥
निशब्द हूँ में रचना पढ़ कर ... बहुत खूबसूरत शब्द दिए हैं भावों को ... आभार
bahut hi shaandaar...
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंअभी आपकी पोस्ट दुबारा पढ़ रहा था.अचानक किसी का एक बड़ा प्यारा शेर याद आ गया,आप भी देखिये,बहुत मौजूं है:-
खामोश हवा बेशक तूफां की निशानी है.
ये नाव हमें फिर भी उस पार लगानी है.
वाह वाह वाह...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना...
मन मुग्ध कर लिया इस रचना ने...
आनंद आ गया पढ़कर...
आभार...बहुत बहुत आभार..
इन लहरों का रुख देख-देख, जग की पतवार चला करती।
जवाब देंहटाएंझंझावात भरे तूफानों में, तरणि को तिराओ तो हम जानें॥
ज़िंदगी के हर रुख से
वाकिफ़,, काव्य का एक-एक लफ्ज़
बहुत ही सुलझा हुआ सन्देश दे रहा है
वाह !!
यह चुनौती नहीं प्रेरणा है-स्वयं को प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए भी तैयार रखने के लिए।
जवाब देंहटाएंतृप्तों को भोज दिया करते, मित्रों को जिमाना तुम जानो।
जवाब देंहटाएंअनजानी भूख की चिंता में, भोजन त्यागो तो हम जानें॥
यही सच्चा त्याग है।
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सुज्ञ जी, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. सच असल परीक्षा तो विपरीत धारा मेँ ही होती है.
जवाब देंहटाएंअनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
जवाब देंहटाएंकलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
bahut sunder likhe hain.
"अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः"(गीता अ.१५ श्.१४ )
जवाब देंहटाएंसभी प्राणियों की भूख में परमात्मा विद्यमान है.दूसरों की भूख को तृप्त करने में जो आनंद मिलता है वह परमार्थिक आनंद है और वह तो वही जान सकता है जिसने ऐसा किया हो.अति उच्च भावों को संप्रेषित करती हुई आपकी रचना के लिए आपका बहुत बहुत आभार .
वाह! क्या बात है!
जवाब देंहटाएंइस हंसती गाती दुनिया में, मदमस्त बसना तुम जानो।
जवाब देंहटाएंमधु की मनुहारें मिलने पे,तुम गरल पियो तो हम जानें॥
वा वाह ...वा वाह
जवाब देंहटाएंअनुकूल हवा में जग चलता, प्रतिकूल चलो तो हम जानें।
कलियाँ खिलती है सावन में, पतझड़ में खिलो तो हम जानें॥
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन गुनाह किसे कहते हैं ? मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंरशमि जी, आपका बहुत बहुत आभार!!
हटाएंबहुत ही खूबसूरत ,अदभुत रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत यज्ञ जी
जवाब देंहटाएंlatest post: कुछ एह्सासें !