1 जनवरी 2011

चिंतन कण : सद्भाव



इष्ट वियोग और अनिष्ट संयोग के समय ही, आत्मा में दुःस्थिति पैदा होती हैं। उस स्थिति में चित को स्थिर करने का, पुरूषार्थी चिंतन ही, सद्भाव कहलाता है।

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13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कठिन काम है।
    नव वर्ष की शुभकामनाये

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  2. @सुज्ञ जी
    सबसे पहले तो आपको और आपके सभी पाठकों को नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ ... मेरी ईश्वर से प्रार्थना है की आप सभी के लिए यह वर्ष भी मंगलमय एवं सुखकारी हो

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  3. @उस स्थिति में चित को स्थिर करने का पुरूषार्थी चिंतन ही सद्भाव कहलाता है।

    बेहद सुन्दर और शिक्षाप्रद .. हमेशा की तरह


    [एक जिज्ञासा भी है]
    क्या "आत्मा" के स्थान पर "मन" या "मति" होना चाहिए ?

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  4. गौरव जी,
    मन तो निरंकुश है, आत्मा उसकी सारथी है। पुरुषार्थ आत्मा के लिये ही सम्भव है।

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  5. मन तो निरंकुश है, आत्मा उसकी सारथी है। पुरुषार्थ आत्मा के लिये ही सम्भव है

    @सुज्ञ जी,
    वाह ..कितनी सरलता से समाधान कर दिया आपने .. अब इस पोस्ट को पढने के पूर्ण आनन्द का अनुभव हुआ ... बहुत बहुत आभार आपका

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  6. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. आप को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ..
    आपका जीवन ध्येय निरंतर वर्द्धमान होकर उत्कर्ष लक्ष्यों को प्राप्त करे....

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  8. सुन्दर और शिक्षाप्रद सदविचार ... .आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो ...

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