17 जनवरी 2011

दुर्गम पथ पर तुम न चलोगे कौन चलेगा?


साधक बोलो दुर्गम पथ पर तुम न चलोगे कौन चलेगा?

कदम कदम पर बिछे हुए है, तीखे तीखे कंकर कंटक।
भ्रांत भयानक पूर्वाग्रह है, और फिरते हैं वंचक।
पर साथी इन बाधाओ को तुम न दलोगे कौन दलेगा?

अम्बर में सघनघन का, कोई भी आसार नहीं है।
उष्ण पवन है तप्त धरा है, कोई भी उपचार नहीं है।
इस विकट वेला में तरूवर, तुम न फलोगे कौन फलेगा?

सूरज कब का डूब चला है, रह गया अज्ञान अकेला।
चारो ओर घोर तिमिर है, और निकट तूफानी बेला।
फिर भी इस रजनी में दीपक, तुम न जलोगे कौन जलेगा?

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38 टिप्‍पणियां:

  1. अम्बर में सघनघन का, कोई भी आसार नहीं है।
    उष्ण पवन है तप्त धरा है, कोई भी उपचार नहीं है।
    इस विकट वेला में तरूवर, तुम न फलोगे कौन फलेगा?

    सार गर्भित पंक्तियाँ हैं ....जीवन सन्दर्भों को सामने लाती हुई ..आपका आभार इस प्रस्तुति के लिए

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  2. तुम ना जलोगे कौन जलेगा ...
    अपनी सलीब खुद ही उठानी होती है ..
    सुन्दर शब्द ...अच्छी कविता !

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  3. प्रभावी गुहार, छोटी रचनाओं की भाषा में वर्तनी (तुफानी/तूफानी) का खास ध्‍यान रखना अधिक जरूरी होता है.

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  4. राहुल जी,

    वर्तनी सुधार इंगित करने के लिए आभार! सुधार कर लिया गया है।
    यह गुहार मेरे उन विचारवान ब्लॉगर मित्रों से है जिनका व्यथित करते माहोल के कारण ब्लॉगिंग से मोहभंग हो रहा है।

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  5. "सूरज कब का डूब चला है, रह गया अज्ञान अकेला।
    चारो ओर घोर तिमिर है, और निकट तूफानी बेला।
    फिर भी इस रजनी में दीपक, तुम न जलोगे कौन जलेगा?"

    वाह,क्या बात है !

    वर्तमान स्थिति का सटीक शब्द-चित्र !

    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  6. .

    सुज्ञ जी,
    मंद पड़ते दीपक में आपने स्नेह डाल ही दिया.
    अनुभवों का लाभ यही है कि वे निराश और हताश मन को प्रेरित करते हैं.

    .

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  7. सूरज कब का डूब चला है, रह गया अज्ञान अकेला।
    चारो ओर घोर तिमिर है, और निकट तूफानी बेला।
    फिर भी इस रजनी में दीपक, तुम न जलोगे कौन जलेगा?

    सुंदर,प्रेरणादायी और प्रभावी अभिव्यक्ति...... आशावादी और सकारात्मक सोच लिए.....

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  8. अम्बर में सघनघन का, कोई भी आसार नहीं है।
    उष्ण पवन है तप्त धरा है, कोई भी उपचार नहीं है।
    इस विकट वेला में तरूवर, तुम न फलोगे कौन फलेगा?

    बहुत सुन्दर भाव से रची सुन्दर रचना ..

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  9. एकदम सही। और,इन परिस्थितियों में जो चला,वही असली सोना।

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  10. सुज्ञ जी

    आप के साधक की समस्या ये है की वो बहुत ही उतावला है जिसे तुरंत ही परिणाम की चाह है जिसमे थोडा भी धीरज नहीं है | उसे चाह है की सभी उसकी बात मान ले जो वो कहे तर्कों से, पर उस ब्लोगर साधक को नहीं पता की दुनिया तर्कों पर नहीं व्यवहार, परिस्थिति के अनुसार चलती है और हम दुनिया को बस काले और सफ़ेद यानि अच्छे और बुरे में नहीं बाट सकते है दुनिया में और भी रंग है जो अपनी जगह सही है | यदि उसे ये बात समझ नहीं आ रही है तो उसे कुछ दिन और जरा इन पथरीले रास्तो से दूर रह कर धीरज धरना सीखने दीजिये |

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  11. अंशुमाला जी,

    मेरा यहां किसी एक साधक से अभिप्राय नहीं था, और वे सभी साधक धेर्यवान है। फ़िर भी आपकी सलाह यथार्थपरक है। साधक को धेर्यवान होना ही चाहिए,पलायन न हो इसलिये हौसला आवश्यक है। आपकी टिप्पणी आपके मन्तव्यों के अनुरूप ट्रांसपरेंट है। सोच व विचारधाराओं को निश्छल प्रकट करती हुई।

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  12. वाह! गज़ब की उत्साहवर्धन करती अभिव्यक्ति है और ऐसा क्यो कह रहे है कि मोहभंग हो रहा है …………ज़िन्दगी मे ये सब चलता रहता है और ऐसे मुकाम आते रहते है मगर चलते रहना ही ज़िन्दगी है।

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  13. तुम न चलोगे तो कौन चलेगा । उत्तम प्रस्तुति...

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  14. हर रचना में सार्थक सम्वाद छुपा होता है..

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  15. सुज्ञ जी!
    दुर्गम पथों पर चलना, बाधाओं का दलना, दीपक का जलना और तरुवर का फलना... यह सब अनवरत चलता रहेगा.. पर कंटकों को हटाना, तम का विनाश करना, और ऊष्णता को शीतलता को हटाने का समवेत प्रयास ही इस यात्रा को सुलभ बनाएगा!

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  16. सूरज कब का डूब चला है, रह गया अज्ञान अकेला।
    चारो ओर घोर तिमिर है, और निकट तूफानी बेला।
    फिर भी इस रजनी में दीपक, तुम न जलोगे कौन जलेगा?

    जीवन के अंधकारमय क्षणों में आत्मबोध रूपी दीपक ही प्रकाश किरणें विसरित कर राह दिखलाता है।
    निराशा से आशा की ओर प्रेरित करने वाला एक उत्तम गीत।
    शुभकामनाएं, सुज्ञ जी।

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  17. सभी पाठको को सूचित किया जाता है कि पहेली का आयोजन अब से मेरे नए ब्लॉग पर होगा ...

    यह ब्लॉग किसी कारणवश खुल नहीं प रहा है

    नए ब्लॉग पर जाने के लिए यहा पर आए
    धर्म-संस्कृति-ज्ञान पहेली मंच

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  18. पर साथी इन बाधाओ को तुम न दलोगे कौन दलेगा?
    bahut achcha likhe hain.

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  19. बहुत ही भावपूर्ण और प्रेरणादायी कविता.....

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  20. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html

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  21. hosla-afjai ke liye sukrya.....

    pathshala chalti rahe ..... monitar nigrani rakhen.

    pranam.

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  22. सूरज कब का डूब चला है, रह गया अज्ञान अकेला।
    चारो ओर घोर तिमिर है, और निकट तूफानी बेला।
    फिर भी इस रजनी में दीपक, तुम न जलोगे कौन जलेगा ..


    आशा और जीवन का संचार करती है आपकी रचना ... कर्म पथ पे प्रेरित करती हुयी ...
    नमस्कार ...

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  23. बहुत ही सुन्दर और आशावादी रचना !

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  24. बेहद प्रभावशाली भाव हैं कविता के...

    उठो धरा के अमर सपूतों पुन: नया निर्माण करो |

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  25. जीवन सन्दर्भों को सामने लाती हुई बहुत ही सुन्दर रचना| आभार|

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  26. प्रेरक एवं प्रभावशाली कविता ...
    बहुत अच्छी लगी |

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  27. प्रेरणा देती हुई आपकी ये कविता बहुत अच्छी लगी। इसके लिए आपको बधाई।

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  28. सुज्ञ भाई ,
    क्षमा चाहता हूँ , पिछली टिप्पणी द्वारा विषय के साथ न्याय नहीं कर सका...

    निराशाजनक स्थिति है यहाँ और हम लोग अपने अपने पूर्वाग्रहों के चलते सही गलत में भेद नहीं कर पाते इसीलिए शायद विद्वानों का अपमान और मूर्खों का सम्मान कर रहे हैं हम लोग !

    मगर यह गीत बहुत अच्छा लगा वाकई लगा कि बुझते दीपक को नयी जान देने का प्रयत्न कर रहे हो ! प्रतुल वशिष्ठ को शुक्रिया !

    हार्दिक शुभकामनायें

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  29. सतीश जी,

    सदाचार के प्रस्तोता विद्वानों का तो सदैव ही सम्मान होना चाहिए।

    जाग्रत रहना आवश्यक है कि अच्छे लोग निष्क्रिय न हो जाय। यह प्रेरक गीत इसिलिये आवश्यक था। पोषण के बिना यह तरूवर कहीं फ़लित होना बंद न कर दे।

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  30. विचारणीय सुन्दर कोमल भावों और शब्दों से सजी प्रस्तुति

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  31. पोस्ट तो अच्छी है ही टिप्पणियाँ तो और भी सुन्दर और स्नेह से भरी लग रहीं हैं |

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  32. एक बात और .......सच्चे साधक में कभी उतावलापन नहीं होता [ और ना ही होना चाहिए ].. ये बात अलग है की उनके पास वक्त ही कम होता है :)

    हम तो हमेशा यही कहते रहे हैं

    "धीरे धीरे सब समझ जायेंगे "

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  33. गौरव जी,

    आप तक स्नेह पहूँचा, समझो रचना सार्थक हुई।

    "धीरे धीरे सब समझ जायेंगे "

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  34. कल 29/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. यशवंत जी, इस प्रस्तुति को लिंक करने के लिए आपका आभार!!

      हटाएं
  35. बहुत ही बेहतरीन रचना..
    सुन्दर भाव लिए...
    :-)

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