7 जनवरी 2011

ब्लॉग गुटबाजी का निदान


अपने पिछले लेख और उस पर आयी प्रतिक्रियाओं से चर्चा आगे बढाते हुए………एक नज़र जो विचार प्रस्तुत हुए…

“……सिर्फ कमेन्ट पाने या खुद को बौद्दिक रूप से संपन्न दिखाने जैसे कारणों या इच्छाओं की पूर्ति के लिए के लिए लेखन का ये खेल खेला जाता है”।
“……गुटबाजी की चर्चा से लगता है कि कहीं न कहीं आग तो है, वर्ना धुँआ नहीं उठता।"
 “……गुट है और उसे बनाया और बढाया जाता है | बहुत सारी और भी बाते तथ्य है पर उन पर ज्यादा बहस करना ही बेकार है”।
“……जब परस्पर विरोधी विचारधाराएँ, रंजिश में बदल जाती हैं!
“……प्रचलित धारा से अलग कुछ कहने वाला कुपाच्य हो जाता हैं
“……अब अनुभव में आ रहा है कि लोगों को परामर्श रुचते नहीं”।

मेरे द्वारा पूर्व वर्णीत, 'स्वभाविक ग्रुप-संकल्पना' जिसे यथार्थ में 'गुट-निर्पेक्षता' भी कहा जा सकता है। ऐसे ग्रुप का विचार, विषय और विधा की प्रकृति अनुसार एकीकरण हो जाना स्वभाविक है। 

इसके इतर जो गुट मात्र विवादों के समय अस्तित्व में आते है और पुनः आपस में ही विवाद कर बिखर भी जाते है। क्योंकि ऐसे दल का आधार मात्र और मात्र अहं तुष्टि होता है। फिर भी हिन्दी ब्लॉग जगत को ऐसे गुटों से कोई खतरा नहीं है। प्रतिस्पृदा की दौड के मध्य ऐसे संयोजन का प्रकट होना और वियोजन भी हो जाना, विकास के दौर में सम्भावित ही है। इसे अपरिपक्वता से परिपक्वता की संधी के रूप में देखना ही ठीक है।
 
दूसरे, जो मात्र तुच्छ स्वार्थो भरी मानसिकता से गुटबंदी का खेल खेलते है, इसी खेल से विवादग्रस्त होकर अन्तत: तो महत्व खो ही देते है। क्योंकि वे केवल इस सूत्र पर कार्य कर रहे है कि 'बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ।' भले इस मानसिकता के चलते अपने ब्लॉग को अल्पकालिक प्रसिद्धि दे पाने में सफल हों, किन्तु विचारों की विश्वसनीयता खो देते है। वैचारिक दरिद्रता लेखकीय चरित्र का अंत है। निष्ठावान व्यक्तित्व में ही ब्लॉग की सफलता निहित है।

यह एक प्राकृतिक नियम है कि
जो कमजोर होता है, स्वतः ही पिछड जाता है।(कमजोर से यहां आशय विचार दरिद्रता से है।) और साथ ही अर्थशास्त्र का एक सार्वभौमिक नियम है जो सभी जगह लागू होता है, "जैसी मांग, वैसी पूर्ति।" और यह सच्चाई है कि अन्ततः तो उच्च
गुणवत्तायुक्त सार्थक लेखन की मांग उठनी ही है। इसलिए जो भी सार्थक गुणवत्तायुक्त सामग्री की पूर्ति करेंगे, वे ही टिकेंगेनिकृष्ट, भ्रांत और अविश्वसनीय सामग्री की मांग का समाप्त होना अवश्यंभावी है

तीसरे, वे धार्मिक विचारधाराएँ जिनमें, दर्शन आधारित समीक्षा को अवकाश नहीं होता, कार्य-कारण पर विवेकयुक्त विवेचन को कोई जगह नहीं है, मानवीय सोच को विचार-मंथन के अवसर प्रदान नहीं करती। ऐसी धार्मिक विचारधाराएं तो सम्प्रदाय प्रचार के फुटपाथी गल्ले मात्र है। जो आने जाने वालों को अपनी दुकान में लाने हेतू चिल्ला कर, रोक कर,प्रलोभन देकर बुलाते है। ऐसे पंथप्रचारी गुटों के विवाद बस फ़ुट्पाथ स्तर के फेरी वालों की तकरार सम होते है। अतः इनसे भी हिन्दी ब्लॉग जगत को कोई हानि नहीं होने वाली। गम्भीर ज्ञान-चर्चा के लिये धर्म-दर्शन आधारित अन्य क्षेत्र विकसित हो ही जाते है। विवेकशील वैचारिकता अपना पड़ाव तय कर ही लेती है।

अंत में, अपने विचार परिमार्जन के परामर्श जिन्हें पथ्य नहीं, ऐसे ब्लॉगर के विचार तो स्वतः ही स्थिर होकर सडन को प्राप्त होंगे। और कहते हैं कि ‘जो झुकते नहीं टूट जाते है’। इसलिए जिन्हें विनय से नया ज्ञान प्राप्त करने की कूवत नहीं, विनम्रता से विचारों का परिशीलन नहीं करते, धारणाओं को परिष्कृत नहीं करते उस दशा में अन्तत: तो उनके अपने अन्तरमन से ज्ञान सर्वदा लुप्त हो जाता है। और अपने स्थिर ज्ञान का दम्भ भी उनकी लुटिया डुबोने के लिए प्रयाप्त है।

इसलिए उच्च वैचारिकता को किसी से भी कोई चुनौती नहीं है। किन्तु विकास संयुक्त सहयोग पर ही निर्भर है।

इसलिये चलें?, सार्थक ब्लॉग लेखन से ब्लॉग स्मृद्धि की ओर…………।

सम्बंधित अन्य सूत्र........

ब्लॉगिंग ज्ञानतृषा का निदान ही नहीं, ज्ञान का निधान है।
हिन्दी ब्लॉग जगत में गुटबाजी?
विचार प्रबन्धन
लेखकीय स्वाभिमान के निहितार्थ
ब्लॉगिंग की आचार संहिता

47 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पोस्ट,उत्तम विचार,आपकी बातें
    मानी जानी चाहिए !

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  2. mmanya , saakaaratmak v saarhak vichaar...badhiya post.

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  3. मुझे नहीं लगता है की विवाद पैदा करने वाले ब्लॉग महत्व खो देते है कई लोगों को देखा है उसके बाद से अब तक तो ब्लॉग लोगों द्वारा काफी पसंद किया गया है और बीच बीच में कई विवाद भी हुए है पर अभी भी अच्छे से चल रहे है वो ब्लॉग |

    सभी की अपनी सोच है हम सभी को अपने काम में लगे रहना चाहिए |

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  4. अंशुमाला जी,

    समय भी एक तत्व है।
    पसंद के भी अपने निहितार्थ होते है।
    अच्छे चलने और व्यक्तितव को सम्मान मिलने में अन्तर है।
    कभी कभी दिखने और होने में भी काफी अन्तर होता है।

    बस हमारा ध्यान बंटाए बिना सार्थक लेखन जारी रहे……॥

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  5. .

    @-इसलिये चलें?, सार्थक ब्लॉग लेखन से ब्लॉग स्मृद्धि की ओर…………।

    सही कहा,
    सुन्दर निदान ,
    आभार।

    .

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  6. बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का मामला है , लोग स्वार्थ से ऊपर नहीं उठ पाते हैं , बात बाद में देखी जाती है पहले संख्या - कमेन्ट हो या समर्थकों की , दिलचस्प है इसी के लिए क्षुद्र उद्यम भी होते हैं जिनमें 'विवाद' की भी गणना की जायेगी . फिर ध्रुवीकरण तो होगा ही , ग्रुप-वाद का सम्बन्ध है न इससे ! अंशुमाला जी की बात का कारण और विकसन इस दृष्टि से भी देखा जा सकता है .

    बेहतर है कि सार्थकता को लोकप्रियता पर तरजीह दी जाय और सस्ती लोकप्रियता के चोंगे अनावृत हों/किये जाएँ - वे चाहे व्यक्ति पर हों या विचार(?) पर ! ये चीजें सहज होंगी इससे बेहतर है कि सप्रयत्न की जाएँ !

    व्यक्ति निर्णय के पूर्व 'विचार' का आग्रह करे - पूर्वाग्रह रहित हो - तो काफी समस्याएं स्वतः निपटती रहेंगी और यह किसी सक्रिय जागृति से कम नहीं !

    विचाराग्रह का समर्थन करती पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा , विषय पर आमंत्रित किया , आभार सुग्य जी !

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  7. sसुगय जी बहुत सार्थक आलेख है। बहुत कुछ पडःअसुना जाता है ब्लाग गुट्टबन्दी और टिप्पणियों पर मगर मै कभी इस ओर ध्यान नही देती न ही ये समझने की कोशिश करती हूँ कि गुट्ट के मुखिया कौन हैं और मेरा सभी से प्निवेदन है कि आप अपनी पसंद के ब्लाग पर जायें। जब हम इन मट्ठाधीशों की ओर ध्यान देना बन्द कर देंगे तो अवश्य ही ये नाकामयाब होंगे। टिप्पणी बहुत बडी हो गयी थी पोस्ट नही हो पाई। एक सार्थक पोस्ट टिप्पणी पुराण पर भी लिखें और उन लोगों की भावनाओं का ध्यान रख कर जिन्हें अधिक टिप्पणियाँ मि9लती है। मुझे टिप्पणियों वाली पोस्ट पढ कर बहुत बुरा लगता है उन लोगों पर क्षोभ होता है जो खुद माँगते हैं टिप्पणी मगर किसी को मिले तो उन्हें दुख होता है। लेखन को स्तरहीन और प-ाता नही क्या क्या कहने लगते हैं। एक पोस्ट जरूर लिखें। धन्यवाद आशा है लोग आपकी बात पर ध्यान देंगें। शुभकामनायें।

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  8. सहमत हूँ सर जी। क्या सच्ची और अच्छी बात आपने लिखी है। इसीलिए मैं तो आपसे सहमत हूँ। ब्लॉग गुटबाजी और इसके निदान के बारे में आज आपसे जाना । इसके लिए आपका आभार।

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  9. सहमत हूँ,,,,,,,,

    एक बात बस........
    अपने मन की ऐसी कर लो, कि किसी का दिल न दुखे........ दुखे तो माफ़ी मांग लो

    :)

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  10. @...जो खुद माँगते हैं टिप्पणी मगर किसी को मिले तो उन्हें दुख होता है। लेखन को स्तरहीन और प-ाता नही क्या क्या कहने लगते हैं। एक पोस्ट जरूर लिखें।
    --- बड़ी वाजिब सी मांग की गई निर्मला जी की , इसपर एक पोस्ट जरूर आनी चाहिए . पर एक पोस्ट इसपर भी आनी चाहिए कि अब तक ब्लोग्बुड में क्या क्या ऐसा दिव्य-स्तरीय था जिसपर हम गर्व कर सकते हैं , उसमें क्या क्या महत है . हमें दोनों पोस्टों को देखने में आनंद आयेगा और आभारी रहूंगा !

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  11. सुज्ञ जी! इस विषय पर विद्वज्जन अपने विचार रख चुके हैं. कुछ अनुभव ऐसे भी होते हैं जो सहेजे जा सकते हैं, साझा नहीं किये जा सकते हैं.. जो ब्लॉग के गलियारों में सक्रिय हैं उन्हें यह समझने में तनिक भी समय नहीं लगता कि हू इज़ हू या व्हॉट इज़ व्हॉट!

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  12. जब लोग दीन-दुखियों की पीड़ा से परे धर्मान्धता की गिरफ्त में आ जाते हैं तो उनका लेखन भी इकतरफा हो जाता है और ऐसे कट्टरवादी लोग गुटबाजी के शिकार भी हो जाते हैं. काश आपकी पोस्ट ऐसे लोगों को सही रास्ता दिखाने में कारगर साबित हो.

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  13. वैचारिकता की पर्याप्‍त खुराक मिल गई, धन्‍चवाद.

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  14. सुज्ञ जी आपने अपनी पोस्ट में अपने समय की ब्लॉगिंग को लेकर हमेशा जरूरी सवाल खड़े किए हैं। विगत कुछेक महीनों में ब्लॉगिंग और ब्लॉगजगत जितना बदला है उसकी चिंता आपकी पोस्ट में बहुत ही प्रमुख रूप में दिखाई दी है। आपने इस बदले माहौल में जिस तरह से अपनी पोस्ट द्वारा गुटबाजी से निदान विषय पर प्रकाश डाला है, वह वंदनीय है।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    ‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ का प्रथम पाठ पढाने वाले महाकवि विद्यापति

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  15. एक नए तरह के वर्गीकरण पर ध्यान दिया है .. इस गुट के नाम को थोडा गौर से पढियेगा
    "ब्लॉगजगत में परिवार खोजने वाले "
    ये एक प्रचलित शब्दावली भी हो सकती है इसमें खुद को निर्गुट मानने वाले लोग भर्ती कर दिए जाते हैं , इसे दोबारा पढ़िए
    "ब्लॉगजगत में परिवार खोजने वाले "
    ऐसा लगता है ना जैसे कोई बड़ा स्नेह के अकाल से पीड़ीत व्यक्ति हो , जब की मुझे तो ऐसा व्यक्ति स्नेह से भरा हुआ व्यक्ति लगता है
    मुझे लगता है इस शब्दावली में गहरी सोच का प्रयोग नहीं किया गया है
    सही शब्दावली कुछ ऐसी होना चाहिए
    "एक पारिवारिक नजरिये से ब्लॉग जगत को देखने वाले "
    और सच कहूँ तो इन्ही पारिवारिक नजरिये वाले लोगों को गुटबाजी से सबसे ज्यादा चोट पहुचती है .. पर ऐसे लोग ठीक से चीख भी नहीं पाते

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  16. अब थोड़ी सार में एक बात कह देता हूँ

    अगर कोई भी जाने अनजाने किसी गुट में शामिल है तो वो परिपक्व नहीं है, ये एक इमानदारी से लिया जाने वाला व्यक्तिगत टेस्ट है .. और इसमें इमानदारी मैं इस वक्त इस टिपण्णी को पढने वाले पर छोड़ रहा हूँ

    ऐसा जरूरी नहीं की जब तक एक व्यक्ति दूसरे का अपमान व्यक्तिगत रूप से ना करे तब तक आप उसके गुट में शामिल रहे और अपने आत्म सम्मान पर चोट लगे पर ही अलग हों और उस पर सीख भी ली जाये तो ये की व्यक्ति विशेष से अब बात नहीं करनी .. ये तो फिर से परिपक्वता की कमी है .. सीख क्या मिली ये सोचा जाना चाहिए .. पर इतना समय किसके पास है ..???

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  17. कहने को है तो बहुत कुछ पर किसी का इतना भी क्या कहें की वो हमें अपना विरोधी मानने लगे ... [अधिकतर हितैषियों को इसी नजर से देखा जाता है ]
    मुझे एक ही बात का घमंड है .. हाँ... हाँ .... घमंड ही है वो ये की .... होने को तो ब्लॉग जगत में मेरे मित्र संख्या में कम हैं पर वो हैं जो सच में मित्र हैं ... जिनकी बात में सच्चाई का इत्र है ... जिनकी सलाह में दम है .. जिनकी जितनी तारीफ की जाये कम है ......... अब हर कोई मेरे इन फेवरेट ब्लोगर्स [जिनका मैंने नाम नहीं लिखा है] की तरह ब्रोड माइंडेड और बेलेन्स्ड तो नहीं हो सकता ना

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  18. @सुज्ञ जी
    ऐसे विचारोतेजक लेख लिख कर मेरा ब्लॉग संन्यास भंग मत करवा दीजियेगा .. अच्छा लेख है संतुलित भी ..पिछले लेख पर जो टिपण्णी देने वाला था वो भी इसी पोस्ट पर कर दी है ..... मुझे पूरी उम्मीद इस आपके इस लेख पर बहुत बड़े विचार आने वाले हैं .... :))

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  19. aadrniy bloging ki duniya apr puraa reserch krke hi aapne vicharon ko sudharne ke liyen lekh likha he bhayi men to aaj se hi apnke aadesh nirdeshaanusar chlne ko tyyar hun pichhli aagr koi glti hui to maafi chahtaa hun rchnaatmk lekhn ke liyen mubarkbad. akhtar khan akela kota rajsthan

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  20. मेरी दूसरी टिप्पणी [ऊपर से ] में सुधार :
    ऐसा जरूरी नहीं की जब तक एक व्यक्ति आप [ इस वक्त जो भी टिपण्णी पाठक है ] का अपमान व्यक्तिगत रूप से ना करे तब तक आप उसके गुट में शामिल रहे और अपने आत्म सम्मान पर चोट लगे तब ही गुट से अलग हों और उस पर सीख भी ली जाये तो ये की व्यक्ति विशेष से अब भविष्य में कभी बात नहीं करनी .. ये तो फिर से परिपक्वता की कमी है .. सीख क्या मिली ये सोचा जाना चाहिए .. पर इतना समय किसके पास है ..??
    _____________________________
    @सुज्ञ जी
    इतनी टिप्पणियाँ एक साथ करने के लिए क्षमा चाहता हूँ .. आप बिना कारण बताये मेरी किसी भी / कितनी भी / सभी टिप्पणी /टिप्पणियाँ हटा सकते हैं

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  21. गौरव जी,

    अभी सन्यास की बात सोचना ही नहीं, अभी तो जगे हो और अभी सोना है। हाँ ब्लॉग जगत से विराम लेने के विषय पर मैं भी सोच रहा हूँ, जब तक मैं अपनी स्थिति साफ नहीं कर देता,आप भी डटे रहें।:)

    हिन्दी ब्लॉग पर मेरी कोशीश है कुछ साकारात्मक लहर छोड कर फिर विराम लूँ।

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  22. गौरव जी,

    टिप्पणियां सम्वाद के लिये होती है, और आपके साथ स्वस्थ सम्वाद कायम है अतः प्रश्न ही नहीं उठता मैं टिप्पणियां मिटाऊं।

    हां कहीं कहीं बात मुझ तक सही स्वरूप में नहीं पहूंच पा रही, किन्तु मैं अधिक स्पष्ट करने के लिये भी न कहुंगा।

    विषय पर चर्चा का उद्देश्य है तो उसे होना ही चाहिए।

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  23. @कहीं कहीं बात मुझ तक सही स्वरूप में नहीं पहूंच पा रही, किन्तु मैं अधिक स्पष्ट करने के लिये भी न कहुंगा


    सुज्ञ जी,

    जिन टिप्पणियों को करने के लिए बड़ी मुश्किल से समय निकाला है वे भी आप जैसे मित्र को स्पष्ट न कर पाऊं तो क्या टिप्पणियों का क्या लाभ ? :) .. आप तो पूछिए जो भी पूछना है .. स्पष्टीकरण देना मेरा कर्तव्य है और आपको स्पष्टीकरण देते हुए मुझे प्रसन्नता ही होगी

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  24. @ इसलिये चलें?, सार्थक ब्लॉग लेखन से ब्लॉग स्मृद्धि की ओर…………।
    बिलकुल चलिए ........ सुंदर विश्लेषण .
    नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?

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  25. आपकी दूसरी टिप्पणी [ऊपर से ] में सुधार वाला अंश ही स्पष्ठ न हो पाया।

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  26. दरअसल मुझे लगा पिछली टिपण्णी में तीन व्यक्ति /पक्ष नजर आ रहे हैं

    @"ऐसा जरूरी नहीं की जब तक "एक व्यक्ति" "दूसरे" का अपमान व्यक्तिगत रूप से ना करे तब तक "आप" उसके गुट में शामिल रहे"

    एक व्यक्ति , दूसरा , आप ["आप" शब्द के साथ विनम्र अनुरोध जोड़ रहा हूँ ...थोड़ी देर के लिए स्वयं को रख कर ही कल्पना करें ] अर्थात टिप्पणी पढने वाले

    तो इसे सुधार कर कोई भी दो व्यक्तियों के लिए लिखी गयी बनाया है, जिनमें से एक तो टिपण्णी पढ़ रहा/ रही होगा होगी [अनुरोध है ...थोड़ी देर के लिए सिर्फ एक छोटी सी कल्पना की जाये ] ये भी एक इमानदारी से लिया जाने वाला व्यक्तिगत टेस्ट है

    @"ऐसा जरूरी नहीं की जब तक एक व्यक्ति आप [ इस वक्त जो भी टिप्पणी पाठक है ] का अपमान व्यक्तिगत रूप से ना करे तब तक आप उसके गुट में शामिल रहे"

    कुल मिला कर कहने का आशय है की ...अपने ब्लॉग जगत के अनुभवों से यह चेक करें की...
    १. ऐसा तो नहीं की जब तक खुद के सम्मान पर बात नहीं आती हम जाग्रत क्यों नहीं होते और तब तक बिना बात का सन्दर्भ या दोनों पक्ष जाने किसी भी पक्ष की बात पर जम कर सहमति जता रहे होते हैं
    और हाँ इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए की
    २. कहीं आप पाठकों का सम्मान का पूरा ध्यान रखने वाले के साथ समान व्यवहार ["अब आपके ब्लॉग पर नहीं आयेंगे" टाइप का ] तो नहीं कर रहे ? अगर ऐसा है तो ये माना जाना चाहिए की वैचारिक विरोध सहन नहीं कर पा रहे हैं या कहें की
    "मेरी हाँ में हाँ मिलाई नहीं ...... तू भी मेरा भाई नहीं "
    स्पष्टीकरण : ये स्लोगन स्त्री पुरुष दोनों पर समान रूप से लागू माना जाये ... एक "भाई" "बहन" के लिए भी और "भाई" के लिए भी "भाई" होता है...है ना :)

    @सभी से
    मेरा यकीन करें ... मैं सभी से स्नेह करता हूँ .... सभी का सम्मान करता हूँ ..ये सम्मान और स्नेह किसी के लिए एक बार बढ़ तो सकता है पर उसके बाद किसी भी बात से कम नहीं हो सकता ..... फिर भी कोई ना समझे तो मेरे शब्द कोष की कमी मानी जाये ..ये कमीं तो शुरू से रही है

    @सुज्ञ जी
    और भी स्पष्ट करना हो तो बता दीजियेगा ..मुझे पता है अन्य किसी के भी द्वारा इस टिप्पणी में छिपी हितैषी मानसिकता पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया जायेगा ... बाकी हर बात पर ध्यान दिया जायेगा

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  27. सभी मित्रों से एक सवाल
    तुमने देखी है धनक तो, बोलो रंग कितने हैं ?

    जवाब भी :
    सात रंग कहने को, फिर भी संग कितने हैं

    अब इसमें समझने वाली बात क्या है ?
    समझो सबसे पहले तो, रंग होते अकेले तो, इंद्रधनुष्य बनता ही नहीं
    एक ना हम हो पाए तो, अन्याय से लडने को, होगी कोई जनता ही नहीं
    फिर ना कहना, निर्बल हैं क्यों हारा

    अब प्रकृति में ही देखिये
    बूँद बूँद मिलने से, बनता एक दर्या हैं
    बूँद बूँद सागर हैं, वर्ना ये सागर क्या है
    समझो इस पहेली को, बूँद हो अकेली तो, एक बूँद जैसे कुछ भी नहीं
    हम औरो को छोडे तो, मूँह सबसे ही मोडे तो, तनहा रहना जाए देखो हम कहीं
    क्यों ना बने मिलके हम धारा

    पूरा यहाँ पढ़ें
    http://www.geetmanjusha.com/hindi/lyrics/1664.html

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  28. ामरेन्द्र जी आपका बहुत सम्मान करती हूँ आप इसे व्यक्तिगत रूप मे मत लें ये बात यूंणं तो आपके लिये मही लिखी गयी थी। कल भी मुझे मेल पर इसके बारे मे किसी ने बहुत कुछ कहा पूछा जिस से मन मे क्षोभ सा हो गया कि अगर मुझे कुछ टिप्पणियाँ मिलती हैं तो उस मे मेरी क्या गलती है? ये उस बात को सामने रख कर कमेन्ट दिया गया था। हाँ शायद आपका लिखा मुझे से अधिक ऊँचे स्तर का हो लेकिन मैने जितनी कहानियाँ या कवितायें या गज़लें लिखी हैं अपने स्तर से उन्हें स्तरीये ही मानती हूंम वो भी अपने पाठकों के कहे अनुसार। हाँ उसम्4ए जो स्तरीय नही है आप उसकी समीक्षा कर के अपने ब्लाग पर लिख सकते हैं मुझे खुशी होगी। मै किसी गुट्टबाजी से ऊपर उठ कर केवल अपना काम कर रही हूँ मुझे इस विवाद मे मत घसीटें। धन्यवाद।

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  29. निर्मला जी ,
    मैंने आपकी बात को व्यक्तिगत तौर पर एकदम नहीं लिया था . आपकी बात का समर्थन किया हूँ और एक और मांग जोड़ा हूँ ! पता नहीं क्यों आपको ऐसा लगा ! पर यह मेरे लिए सुखद आश्चर्य सा रहा कि मुझ जैसे तकरीबन सर्व-कथित घटिया मानुस का भी सम्मान लोग बचाए हुए हैं . पुनः कहूंगा कि आपके लेखन और आरंभिक कमेन्ट को लेकर मुझमें न कोई मनो-मालिन्य है , न ही था ! सादर ..

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  30. अच्छा है, आपसी सम्वाद से बातें साफ़ हो गई।
    इसी तरह सम्वाद स्थापित कर आपसी मनो-मालिन्य दूर करने के प्रयास होने ही चाहिए।

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  31. सभी से,

    जिस तरह का गुटवाद हमें परेशान किये दे रहा है, जो निर्थक गुटबंदी सभी को कहीं न कहीं प्रभावित कर रही है, वह गुटबंदी वस्तुतः छोटे छोटे विवादो की ही उपज होती है। इन सभी विवादों का मूल है हमारा अहंकार, फिर भले हम उसे स्वाभिमान का नाम ही क्यों न दे दें।

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  32. @सुज्ञ जी
    मेरी टिप्पणी में मौजूद कन्फ्यूजन का क्या हुआ .. सुलझा या और उलझ गया ? :)

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  33. @इन सभी विवादों का मूल है हमारा अहंकार, फिर भले हम उसे स्वाभिमान का नाम ही क्यों न दे दें।

    क्या बात है ! वाह ! मान गए सुज्ञ जी .. बेहद सुन्दर और सारगर्भित बात कही है

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  34. गौरव जी'

    मेरे इसी निराकरण से आपको प्रतिध्वनित नहीं हुआ कि आपका मंतव्य भी ग्रहित हो चुका?

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  35. 100 % सही...
    पूर्ण सहमत हूँ आपसे...

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  36. सभी से,

    "हर किसी को दूसरे की थाली में ज्यादा घी नजर आता है"

    जीवन-दर्शन के मनोविज्ञान पर यह लेख प्रस्तुत किया है…
    जी.के. अवधिया जी नें।

    आप इसे ब्लॉगिंग के संदर्भ से भी जोडकर देखें, लिंक यह है:

    http://dhankedeshme.blogspot.com/2011/01/blog-post_08.html

    और विश्लेषित करें अपने मनो-व्यवहार को………

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  37. दरअसल ... मेल आई डी में कमेन्ट नहीं आ पा रहे हैं .... पेज रिफ्रेश होने में थोड़ी सी टाइमिंग का फर्क हो गया तब तक टिप्पणी भी तैयार कर ली थी फिर पता नहीं क्यों सोचा की कहीं व्यवहार कुशलता स्पष्टीकरण के आड़े ना आ जाये तो एक बार पूछ ही लेता हूँ ..... फिर बाद में लगा भी एक बार .... टिप्पणी हटा दूँ .... लेकिन मेरी टिप्पणी स्वयं हटाना मुझे अच्छा नहीं लगता :)) इसीलिए तो टिप्पणी हटाने का विकल्प साथ में देता हूँ :))
    अब स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गयी है........ धन्यवाद आपका ....... ब्लॉगजगत को ये नया ब्लोगिंग फंडा देने के लिए

    इन सभी विवादों का मूल है हमारा अहंकार, फिर भले हम उसे स्वाभिमान का नाम ही क्यों न दे दें।

    जवाब देंहटाएं
  38. सुरेश शर्मा जी,
    अरविन्द जी,
    अंशुमाला जी,
    दिव्या जी,
    अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी,
    निर्मला कपिला जी,
    दीपक डुडेजा जी,
    सम्वेदना के स्वर बंधु,
    कुँवर कुसुमेश जी,
    राहुल सिंह जी,
    मनोज कुमार जी,
    गौरव अग्रवाल जी,
    अख्तर खान अकेला जी,
    उपेन्द्र ' उपेन ' जी,
    रंजना जी,
    आप सभी का आभार, आपने इस सार्थक चर्चा में हिस्सा लिया, और साकारात्मक विचार को गति प्रदान की।

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  39. क्या राही क्या दुकानदार सब, खेल में मशगूल हुए॥

    sahi evam sachhi baat
    lekin monitar bhai .... hamara pathshala band hai
    jara dekh len ......

    pranam.

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  40. बस श्रेष्‍ठ लेखन करिए और श्रेष्‍ठ को ही पढ़ने का आग्रह रखिए, स्‍वत: ही गुटबाजी से दूर होते चले जाएंगे।

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  41. दोस्तों
    आपनी पोस्ट सोमवार(10-1-2011) के चर्चामंच पर देखिये ..........कल वक्त नहीं मिलेगा इसलिए आज ही बता रही हूँ ...........सोमवार को चर्चामंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराएँगे तो हार्दिक ख़ुशी होगी और हमारा हौसला भी बढेगा.
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  42. विचारणीय पोस्ट और बढ़िया टिप्पणिया ! गौरव अग्रवाल का संन्यास भंग अवश्य करवाते रहें ! आभार सुज्ञ जी !

    जवाब देंहटाएं
  43. यह श्रंखला शायद ज़रूरी थी - वार्ता अच्छी चल रही है। कुछ गुट ऐसे भी हैं जो अपनी राजनैतिक/धार्मिक आस्थाओं के प्रचार-प्रसार के लिये ब्लॉग-अवतरण से काफी पहले ही आक्रामक थे और अब अपने दल-बल समेत ब्लॉग जगत को लपेट रहे हैं। इसके अलावा ऐसे तत्व भी हैं जो किसी की गलत बात का विरोध कर्ने वालों को तत्काल विरोधी गुट की सदस्यता का प्रमाणपत्र दे देते हैं। कई गुट गुट-निरपेक्षों के भी बन रहे/चुके हैं। ऐसे गुट भी हैं जिनका उद्देश्य ऊपर से तो देश/समाज/ब्रह्माण्ड सुधार लगता है लेकिन है केवल स्व-प्रचार। अगली कडी का इंतज़ार रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  44. बहुत अच्छा लेख, ऊपर से उतनी ही सार्थक टिप्पणियां..

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  45. namaskaar sir,
    main aaj tak kabhi bhi gutbazi main nahi padi aur ummeed hai ki aage bhi nahi padoongi.blog parivaar main nayi hoon aur apki student ki tarah hi hoon,main keval vahi blog hoon jo mere zehen se mel khate hain, kisi aur ke kehene par maine kabhi koi blog nahi padha, balki pahele khud blog dekha aur samjha tab follow kiya.jahaan tak rahi baat gutbazi ki to mera manna hai ki ye do hi tarah ki to ho sakate hai achche aur nek kaaj ke liye aur doosari gandi niyat se ki jane wali gutbazi. har baar hum sikke ka negative peheloo hi kyun dekhen, agar hum achche zehen ke logon ka gut banane main safal ho jate hain to yakinan gandi niyat wale apane aap hi dher ho jayenge,

    blog lekhan ke liye aapke dwarwa kahe gaye shabd shat-pratisht sahi aur satik hain, aur main inhe jeevan paryant yaad rakhoongi.
    gyanvardhan ke liye koti-koti dhanyavad.
    sadar pranaam.

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