27 अक्तूबर 2010

सोते सोते ही निकल गई सारी जिन्दगी


हाथोंहाथ तूं दुख खरीद के, सुख सारे ही खोता।
कर्ज़, फ़र्ज और मर्ज़ बहाने, जीवन बोझा ढोता।
ढोते ढोते ही निकल गई सारी जिन्दगी॥

जन्म लेते ही इस धरती पर, तुने रूदन मचाया।
आंख भी तो खुल ना पाई, भूख भूख चिल्लाया॥
खाते खाते ही निकल गई सारी जिन्दगी॥

बचपन खोया खेल कूद में, योवन पा गुर्राया।
धर्म-कर्म का मर्म न जाने, विषय-भोग मन भाया।
भोगों भोगों में निकल गई सारी जिन्दगी॥

शाम पडे रोज रे बंदे, पाप-पंक नहीँ धोता।
चिंता जब असह्य बने तो, चद्दर तान के सोता।
सोते सोते ही निकल गई सारी जिन्दगी॥

धीरे धीरे आया बुढापा, डगमग डोले काया।
सब के सब रोगों ने देखो, डेरा खूब जमाया।
रोगों रोगों में निकल गई सारी जिन्दगी॥

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18 टिप्‍पणियां:

  1. इससे निजी और पारिवारिक संबंधों पर भी बुरा असर पड़ता है।

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. बेहतरीन लिखा है सुज्ञ भाई.

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  4. दुःख ही जीवन की कथा रही -क्या कहूं जो अब तक नहीं कही -निराला !

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  5. उत्तम कोटि का सन्देश
    हम तो ये विचार ही नही करते की हमारे पास निश्चित समय है .उस का सदुपयोग न किया तो पछतावे से सिवा हाथ कुछ न लगेगा और अपनी ही दुनिया में खोए रहते है और जब कोई जगता है तो ये वही शब्द है जो संभवतः उस के मुख से निकलते होंगे

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  6. ..सुंदर आध्यात्मिक चिंतन।
    ..बहुत अच्छा लिखा है आपने।

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  7. kehte bhi hai, duniya mein sabse pechida aur dilchasp kaam hai jindagi mein se jeevan nikaalana...

    likhate rahiye ...

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  8. यह टिप्पणी भूलवश डिलिट हो गई, पुनः प्रस्तूत
    भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने आपकी पोस्ट " सोते सोते ही निकल गई सारी जिन्दगी " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    बढ़िया...

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  9. जन्म लेते ही इस धरती पर, तुने रूदन मचाया।
    आंख अभी तो खुल ना पाई, भूख भूख चिल्लाया॥
    खाते खाते ही निकल गई सारी जिन्दगी॥

    बहुत सुंदर रचना ....

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  10. बहुत काम का और बढ़िया लिखा है

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  11. वास्तव में जिंदगी इसी तरह निकल जाती है और हम सोचते हुए भी कुछ नहीं कर पाते...जिंदगी के यथार्थ का सुन्दर चित्रण...

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  12. बह ज़िंदगी इसी में निकाल दी कटी है ..जागरूक स करने वाली रचना ..

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  13. आम आदमी ऐसे ही जीता है-तमाम लालसाएं लिए,असंतुष्ट,दुनिया भर से शिकायत करता हुआ। जीवन-सूत्र।

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  14. हंसराज जी! जीवन का सार समझा दिया इस कविता में!!

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  15. अति सुंदर , कविता में जीवन का सार .

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