19 अगस्त 2014

शहर बनाने के चक्कर में घर बना खण्डहर

एक सेठ जी थे, जो दिन-रात अपना काम-धँधा बढ़ाने में लगे रहते थे। उन्हें तो बस, शहर का सबसे अमीर आदमी बनना था। धीरे-धीरे पर आखिर वे नगर के सबसे धनी सेठ बन ही गए।

इस सफलता की ख़ुशी में उन्होने एक शानदार घर बनवाया। गृह प्रवेश के दिन, उन्होने एक बहुत शानदार पार्टी का आयोजन किया। जब सारे मेहमान चले गए तो वे भी अपने कमरे में सोने के लिए चले आए। थकान से चूर, जैसे ही बिस्तर पर लेटे, एक आवाज़ उन्हें सुनायी पड़ी...

"मैं तुम्हारी आत्मा हूँ, और अब मैं तुम्हारा शरीर छोड़ कर जा रही हूँ !!"

सेठ घबरा कर बोले, "अरे! तुम ऐसा नहीं कर सकती!!, तुम्हारे बिना तो मैं मर ही जाऊँगा। देखो!, मैंने वर्षों के तनतोड़-परिश्रम के बाद यह सफलता अर्जित की है। अब जाकर इस सफलता को आमोद प्रमोद से भोगने का अवसर आया है। सौ वर्ष तक टिके, ऐसा मजबूत मकान मैने बनाया है। यह करोड़ों रूपये का, सुख सुविधा से भरपूर घर, मैंने तुम्हारे लिए ही तो बनाया है!, तुम यहाँ से मत जाओ।"    

आत्मा बोली, "यह मेरा घर नहीं है, मेरा घर तो तुम्हारा शरीर था, स्वास्थ्य ही उसकी मजबूती थी, किन्तु करोड़ों कमाने के चक्कर में, तुमने इसके रख-रखाव की अवहेलना की है। मौज-शौक के कबाड़ तो भरता रहा, पर मजबूत बनाने पर किंचित भी ध्यान नहीं दिया। तुम्हारी गैर जिम्मेदारी ने इस अमूल्य तन का नाश ही कर डाला है।"

आत्मा नें स्पष्ट करते हुए कहा, "अब इसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, थायरॉइड, मोटापा, कमर दर्द जैसी बीमारियों ने घेर लिया है। तुम ठीक से चल नहीं पाते, रात को तुम्हे नींद नहीं आती, तुम्हारा दिल भी कमजोर हो चुका है। तनाव के कारण, ना जाने और कितनी बीमारियों का घर बन चुका है, ये तुम्हारा शरीर!!"

"अब तुम ही बताओ, क्या तुम किसी ऐसे जर्जरित घर में रहना चाहोगे, जिसके चारो ओर कमजोर व असुरक्षित दीवारें हो, जिसका ढाँचा चरमरा गया हो, फर्नीचर को दीमक खा रही हो, प्लास्टर और रंग-रोगन उड़ चुका हो, ढंग से सफाई तक न होती हो, यहाँ वहाँ गंदगी पड़ी रहती हो। जिसकी छत टपक रही हो, जिसके खिड़की दरवाजे टूटे हों!! क्या रहना चाहोगे ऐसे घर में? नहीं रहना चाहोगे ना!! ...इसलिए मैं भी ऐसे आवास में नहीं रह सकती।"

सेठ पश्चाताप मिश्रित भय से काँप उठे!! अब तो आत्मा को रोकने का, न तो सामर्थ्य और न ही साहस सेठ में बचा था। एक गहरी निश्वास छोड़ते हुए आत्मा, सेठ जी के शरीर से निकल पड़ी... सेठ का पार्थिव बंगला पडा रहा।

मित्रों, ये कहानी आज अधिकांश लोगों की हकीकत है। सफलता अवश्य सर कीजिए, किन्तु स्वास्थ्य की बलि देकर नहीं। अन्यथा सेठ की तरह मंजिल पा लेने के बाद भी, अपनी सफलता का लुत्फ उठाने से वंचित रह जाएँगे!!
 "पहला सुख निरोगी काया"

40 टिप्‍पणियां:

  1. सही बात है शरीर ही स्वस्थ न हो तो हर दौलत बेकार है ,उपयोगी लघु कथा

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज बुधवारीय चर्चा मंच पर ।। आइये जरूर-

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  3. यही हो रहा है हर घर खण्डहर हो रहा है ।

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    1. सुशील जी, सही कहा, आभार प्रतिक्रिया के लिए

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  4. बिल्कुल! सर्वे संतु निरामया ...

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  5. बहुत सुन्दर दिशा निर्देश

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  6. सार्थक प्रस्‍तुति
    आभार

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की गुरुवार २१ अगस्त २०१४ की बुलेटिन -- बच्चों के साथ बच्चा बनकर तो देखें – ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
    एक निवेदन--- यदि आप फेसबुक पर हैं तो कृपया ब्लॉग बुलेटिन ग्रुप से जुड़कर अपनी पोस्ट की जानकारी सबके साथ साझा करें.
    सादर आभार!

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  8. घर सुंदर बनाने के चक्कर में शरीर खंडहर बन रहा है।

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  9. सच स्वास्थ्य से बढ़कर कोई दौलत नहीं इस नश्वर संसार में
    ..बढ़िया सीख देती प्रस्तुति

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  10. बिल्कुल सही कहा। कहानी जरिये महत्वपूर्ण सीख दी। यकीनन स्वास्थ्य की कीमत पर कुछ भी हासिल करना अच्छा सौदा नहीं।

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  11. बिलकुल सही.
    हमारे पिताजी भी कहते थे "जान है,तो जहाँ हैं.
    अपनी इच्छाओ का दमन नहीं कर सकते,परन्तु सिमित रख सकते है.

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