12 अगस्त 2014

वैचारिक क्षमता

एक राजमहल के द्वार पर एक वृद्ध भिखारी आया। द्वारपाल से उसने कहा, ‘भीतर जाकर राजा से कहो कि तुम्हारा भाई मिलने आया है।’ द्वारपाल ने समझा कि शायद कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई हो। सूचना मिलने पर राजा ने भिखारी को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया। उसने राजा से पूछा, ‘कहिए बड़े भाई! आपके क्या हालचाल हैं?’ राजा ने मुस्कराकर कहा, ‘मैं तो आनंद में हूं। आप कैसे हैं?’ भिखारी बोला,  ‘मैं जरा संकट में हूं। जिस महल में रहता हूं, वह पुराना और जर्जर हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे बत्तीस नौकर थे, वे भी एक एक कर चले गए। पांचों रानियां भी वृद्ध हो गईं। यह सुनकर राजा ने भिखारी को सौ रुपए देने का आदेश दिया। भिखारी ने सौ रुपए कम बताए, तो राजा ने कहा, ‘इस बार राज्य में सूखा पड़ा है।’

तब भिखारी बोला, ‘मेरे साथ सात समंदर पार चलिए। वहां सोने की खदानें हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जाएगा। मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।’ अब राजा ने भिखारी को एक हजार रुपए देने का आदेश दिया। भिखारी के जाने के बाद राजा बोला, ‘भिखारी बुद्धिमान था। भाग्य के दो पहलू होते हैं राजा व रंक। इस नाते उसने मुझे भाई कहा। जर्जर महल से आशय उसके वृद्ध शरीर से था, बत्तीस नौकर दांत और पांच रानियां पंचेंद्रीय हैं। समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि, राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा खजाना सूख गया, इसलिए मैं उसे सौ रुपए दे रहा हूं। उसकी बुद्धिमानी देखकर मैंने उसे हजार रुपए दिए और कल मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूंगा।’

कई बार अति सामान्य लगने वाले लोग भीतर से बहुत गहन गम्भीर और कुशल होते हैं, इसलिए व्यक्ति की परख उसके बाह्य रहन-सहन से नहीं, बल्कि वैचारिक क्षमता और चातुर्य भरे आचरण से करनी चाहिए।


5 टिप्‍पणियां:

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...