कूडा-वाहन
एक दिन एक व्यक्ति टैक्सी से एअरपोर्ट जा रहा था। टैक्सी वाला कुछ गुनगुनाते हुए बड़े मनोयोग से गाड़ी चला रहा था कि सहसा एक दूसरी कार, पार्किंग से निकल कर तेजी से रोड पर आ गयी। टैक्सी वाले ने तेजी से ब्रेक लगाया, गाड़ी स्किड करने लगी और मात्र एक -आध इंच भर से, सामने वाली कार से भिड़ते -भिड़ते बची।
यात्री ने सोचा कि अब टैक्सी वाला उस कार वाले को भला -बुरा कहेगा …लेकिन इसके उलट सामने वाला ही पीछे मुड़ कर उसे गलियां देने लगा। इसपर टैक्सी वाला नाराज़ होने की बजाये उसकी तरफ हाथ हिलाते हुए मुस्कुराने लगा, और धीरे -धीरे आगे बढ़ गया। यात्री ने आश्चर्य से पूछा “ तुमने ऐसा क्यों किया ? गलती तो उस कार वाले की थी ,उसकी वजह से तुम्हारी गाडी लड़ सकती थी और हम होस्पिटलाइज भी हो सकते थे!”
“सर जी ”, टैक्सी वाला बोला, “बहुत से लोग गार्बेज ट्रक की तरह होते हैं। वे बहुत सारा गार्बेज उठाये हुए चलते हैं, फ्रस्ट्रेटेड, निराशा से भरे हुए, हर किसी से नाराज़। और जब गार्बेज बहुत ज्यादा हो जाता है, तो वे अपना बोझ हल्का करने के लिए उसे दूसरों पर फैकने का मौका खोजने लगते हैं। किन्तु जब ऐसा कोई व्यक्ति मुझे अपना शिकार बनाने की कोशिश करता हैं, तो मैं बस यूँही मुस्कुराकर हाथ हिलाते हुए उनसे दूरी बना लेता हूँ।
ऐसे किसी भी व्यक्ति से उनका गार्बेज नहीं लेना चाहिए, अगर ले लिया तो समझो हम भी उन्ही की तरह उसे इधर उधर फेंकने में लग जायेंगे। घर में, ऑफिस में, सड़कों पर …और माहौल गन्दा कर देंगे, दूषित कर देंगे। हमें इन गार्बेज ट्रक्स को, अपना दिन खराब करने का अवसर नहीं देना चाहिए। ऐसा न हो कि हम हर सुबह किसी अफ़सोस के साथ उठें। ज़िन्दगी बहुत छोटी है, इसलिए उनसे प्यार करो जो हमारे साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। किन्तु जो नहीं करते, उन्हें माफ़ कर दो।”
मित्रों, बहुत ही गम्भीराता से सोचने की बात है, हम सौद्देश्य ही कूडा वाहन से कूडा उफनवाते है। फिर उसे स्वीकारते है, उसे उठाए घुमते है और फिर यत्र तत्र बिखेरते चलते है। ऐसा करने के पूर्व ही हमें, गार्बेज ट्रक की अवहेलना नहीं कर देनी चाहिए??? और सबसे बड़ी बात कि कहीं हम खुद गार्बेज ट्रक तो नहीं बन रहे ???
इस कहानी से सीख लेते हुए, हमें विषादग्रस्त व कुंठाग्रस्त लोगों को उत्प्रेरित करने से बचना चाहिए। स्वयं क्रोध कर उनसे उलझने की बजाए उन्हें माफ करने की आदत डालनी चाहिए। सहनशीलता, समता और सहिष्णुता वस्तुतः हमारे अपने व्यक्तित्व को ही स्वच्छ और शुद्ध रखने के अभिप्राय से है, न कि अपने ही गुण-गौरव अभिमान की वृद्धि के लिए। समाज में शिष्टाचार, समतायुक्त आचरण से ही प्रसार पाता है। और इसी आचरण से चारों ओर का वातावरण खुशनुमा और प्रफुल्लित बनता है।
एक दिन एक व्यक्ति टैक्सी से एअरपोर्ट जा रहा था। टैक्सी वाला कुछ गुनगुनाते हुए बड़े मनोयोग से गाड़ी चला रहा था कि सहसा एक दूसरी कार, पार्किंग से निकल कर तेजी से रोड पर आ गयी। टैक्सी वाले ने तेजी से ब्रेक लगाया, गाड़ी स्किड करने लगी और मात्र एक -आध इंच भर से, सामने वाली कार से भिड़ते -भिड़ते बची।
यात्री ने सोचा कि अब टैक्सी वाला उस कार वाले को भला -बुरा कहेगा …लेकिन इसके उलट सामने वाला ही पीछे मुड़ कर उसे गलियां देने लगा। इसपर टैक्सी वाला नाराज़ होने की बजाये उसकी तरफ हाथ हिलाते हुए मुस्कुराने लगा, और धीरे -धीरे आगे बढ़ गया। यात्री ने आश्चर्य से पूछा “ तुमने ऐसा क्यों किया ? गलती तो उस कार वाले की थी ,उसकी वजह से तुम्हारी गाडी लड़ सकती थी और हम होस्पिटलाइज भी हो सकते थे!”
“सर जी ”, टैक्सी वाला बोला, “बहुत से लोग गार्बेज ट्रक की तरह होते हैं। वे बहुत सारा गार्बेज उठाये हुए चलते हैं, फ्रस्ट्रेटेड, निराशा से भरे हुए, हर किसी से नाराज़। और जब गार्बेज बहुत ज्यादा हो जाता है, तो वे अपना बोझ हल्का करने के लिए उसे दूसरों पर फैकने का मौका खोजने लगते हैं। किन्तु जब ऐसा कोई व्यक्ति मुझे अपना शिकार बनाने की कोशिश करता हैं, तो मैं बस यूँही मुस्कुराकर हाथ हिलाते हुए उनसे दूरी बना लेता हूँ।
ऐसे किसी भी व्यक्ति से उनका गार्बेज नहीं लेना चाहिए, अगर ले लिया तो समझो हम भी उन्ही की तरह उसे इधर उधर फेंकने में लग जायेंगे। घर में, ऑफिस में, सड़कों पर …और माहौल गन्दा कर देंगे, दूषित कर देंगे। हमें इन गार्बेज ट्रक्स को, अपना दिन खराब करने का अवसर नहीं देना चाहिए। ऐसा न हो कि हम हर सुबह किसी अफ़सोस के साथ उठें। ज़िन्दगी बहुत छोटी है, इसलिए उनसे प्यार करो जो हमारे साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। किन्तु जो नहीं करते, उन्हें माफ़ कर दो।”
मित्रों, बहुत ही गम्भीराता से सोचने की बात है, हम सौद्देश्य ही कूडा वाहन से कूडा उफनवाते है। फिर उसे स्वीकारते है, उसे उठाए घुमते है और फिर यत्र तत्र बिखेरते चलते है। ऐसा करने के पूर्व ही हमें, गार्बेज ट्रक की अवहेलना नहीं कर देनी चाहिए??? और सबसे बड़ी बात कि कहीं हम खुद गार्बेज ट्रक तो नहीं बन रहे ???
इस कहानी से सीख लेते हुए, हमें विषादग्रस्त व कुंठाग्रस्त लोगों को उत्प्रेरित करने से बचना चाहिए। स्वयं क्रोध कर उनसे उलझने की बजाए उन्हें माफ करने की आदत डालनी चाहिए। सहनशीलता, समता और सहिष्णुता वस्तुतः हमारे अपने व्यक्तित्व को ही स्वच्छ और शुद्ध रखने के अभिप्राय से है, न कि अपने ही गुण-गौरव अभिमान की वृद्धि के लिए। समाज में शिष्टाचार, समतायुक्त आचरण से ही प्रसार पाता है। और इसी आचरण से चारों ओर का वातावरण खुशनुमा और प्रफुल्लित बनता है।
छोटी सी यह जिंदगी, कर ले मनुवा प्यार |
जवाब देंहटाएंदूरी लम्बी ले बना, जो करते तकरार |
जो करते तकरार, निराशा में हैं डूबे |
खाना करें खराब, जिंदगी से हैं ऊबे |
रविकर चल चुपचाप, बचा कर लाज-लंगोटी |
सदा गाँठ में बाँध,, सीख ये छोटी छोटी ||
वाह! कविवर।
हटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
जवाब देंहटाएंकाव्य प्रतिक्रिया और लिंक प्रस्तुति के लिए आभार!!
हटाएंबहुत सुन्दर है .धन्यवाद
जवाब देंहटाएंhttp://saxenamadanmohan.blogspot.in/
मदन जी, आभार!!
हटाएंविषादग्रस्त व कुंठाग्रस्त लोगों को उत्प्रेरित करने से बचना चाहिए। स्वयं क्रोध कर उनसे उलझने की बजाए उन्हें माफ करने की आदत डालनी चाहिए। सहनशीलता, समता और सहिष्णुता वस्तुतः हमारे अपने व्यक्तित्व को स्वच्छ और शुद्ध रखने के अभिप्राय से है। न कि अपने गुण-गौरव अभिमान की वृद्धि के लिए। समाज में शिष्टाचार इसी प्रकार के समतायुक्त आचरण से प्रसार पाता है और चारों ओर का वातावरण खुशनुमा और प्रफुल्लित बनता है।
जवाब देंहटाएंSUGY JI AAPAKE IS PRASANG KE LIYE KOTISHAH BADHAI
प्रोत्साहन के लिए कोटि कोटि आभार, रमाकान्त जी!!
हटाएंसच बात है, प्रसन्नता ही बाटनी चाहिये।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी,
हटाएंनिश्चित ही यदि बांटना ही हो तो प्रसन्नता ही बांटी जानी चाहिए…
सहमत ....अनुकरणीय विचार
जवाब देंहटाएंमोनिका जी, सराहना के लिए आभार!!
हटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार, कैलाश जी!!
हटाएंयह सीख तो ले रखी है..गार्बेज ट्रक वालों की कमी नहीं यहाँ भी :)
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंरविकर चल चुपचाप,बचा कर लाज-लंगोटी |
जवाब देंहटाएंसदा गाँठ में बाँध , सीख ये छोटी छोटी |
वाह !!! क्या बात है रविकर जी,आपने तो पूरी पोस्ट का सार ही दो लाइनों कह दिया,,,
RECENT POST : अभी भी आशा है,|
RECENT POST : अभी भी आशा है,
आभार आदरणीय-
हटाएंसही बात है, धीरेन्द्र जी
हटाएंमजेदार तरीका सुज्ञ जी।
जवाब देंहटाएंप्रसन्नता ध्येय है इसलिए तरीका मजेदार!! :)
हटाएंआभार जी!!
पते की बात ।
जवाब देंहटाएंदराल साहब, वाकई इस बात ने प्रभावित किया।
हटाएंआभार!!
सटीक और सार्थक सीख देती पोस्ट
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए आभार दीदी!!
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयह क्या? हाथ हिलाकर, मुस्करा कर टाल दिया… :)
हटाएंबहुत ही अच्छी सीख है इस कहानी में.
जवाब देंहटाएंअगर इस सीख को सभी लोग अपनाएँ तो अधिकतर झगड़े ही ख़तम हो जाएँ.
सही कहा, अधिकतर झगड़े क्रोध तनाव अहंकार और आक्रोश के परिणाम होते है।
हटाएंअनुकरणीय !
जवाब देंहटाएंवाणी जी, आभार!!
हटाएंसार्थक सीख देती पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार!!
हटाएंसच बात है,सटीक और सार्थक सीख देती पोस्ट
जवाब देंहटाएंराजेंद्र जी, सराहना के लिए शुक्रिया!!
हटाएंप्रसन्नता पूर्वक जीने का सुंदर सुत्र दिया है आपने, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ताऊ सा,
हटाएंनिश्चित ही प्रसन्न रहने का एक सूत्रीय उपाय है।
आभार सर जी!!
सटीक और सार्थक सीख देती पोस्ट सुज्ञ जी , मैंने इसे आपकी इज़ाज़त के बगैर प्रिंट करके अपने कार्यालय में वितरिक कर दिया है शायद प्रसन्नता की शुरुआत हो जाये .धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइज़ाज़त की आवश्यकता ही नहीं, सार्वजनिक सम्पत्ति है, सदुपयोग के उद्देश्य से। यह दृष्टांत दंत-कथा या बोध-कथा की तर्ज पर सोशियल साईट पर लोक व्यवहार में था। मैने तो अन्तिम सार रूप चार पंक्ति का योगदान कर मात्र संदेश साझा किया है।
हटाएंयह दृष्टांत हम सबको प्रभावित कर सकता है तो निश्चित ही सभी में एक उपाय की तरह प्रसन्नता का सूत्रपात करेगा।
सच कहा है माफ कर देना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंसच ये भी है की ऐसी आदत आसानी से नहीं डालती ... पर कोशिश करने से आ जाती है और जीवन भर का सुख दे जाती है ...
क्षमा कर देना श्रेष्ठ है न केवल हमारे व्यक्तित्व की पवित्रता के लिए बल्कि उस निराशा भरे वाहक के लिए भी वरदान सम है, उसके उद्वेग और तनाव की स्थितियां खत्म हो जाती है। सत्य है कि माफ करने की आदत आसानी से नहीं पडती किन्तु हित-अहित के चिंतन से उस आदत में विकास सम्भव है। जब दूरगामी और दो तरफा लाभ नजर आ जाए, सुख का उपाय हृदयगम हो जाय, व्यक्तित्व शुद्धता का रस जग जाय और अनावश्यक तनावों से मुक्ति मिल रही हो तो प्रसन्नता उपार्जन का यह अभ्यास आसान हो जाता है।
हटाएंsaarthak lekh... behtareen..
जवाब देंहटाएंमुकेश जी, आभार!!
हटाएंबहुत उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंप्रसन्न जी,
हटाएंआपका बहुत बहुत आभार!!
समाज में शिष्टाचार, समतायुक्त आचरण से ही प्रसार पाता है। और इसी आचरण से चारों ओर का वातावरण खुशनुमा और प्रफुल्लित बनता है।
जवाब देंहटाएं...
बहुत सही लिखा आपने ...अच्छे आचरण का प्रतिफल ही ख़ुशी है ...
कविता जी,
हटाएंआपने सटीक कहा, अच्छे आचरण का प्रतिफल ही ख़ुशी है
बहुत प्रेरणादयी लेख .... उसकी चीज उसके पास रह गई...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही, मईड़ा साहब!!
हटाएंसार्थक संदेश। क्षमा का भाव सकून देता है।
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र जी यकिनन क्षमा-भाव सकून देता है और सुख का मार्ग प्रशस्त भी करता है।
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