जीवन के आखिरी क्षणों में एक साधु ने अपने शिष्यों को पास बुलाया। जब सब उनके पास आ गए, तब उन्होंने अपना पोपला मुंह पूरा खोल दिया और बोले-"देखो, मेरे मुंह में कितने दांत बच गए हैं?" शिष्य एक स्वर में बोल उठे -"महाराज आपका तो एक भी दांत शेष नहीं बचा।" साधु बोले-"देखो, मेरी जीभ तो बची हुई है।" सबने उत्तर दिया-"हां, आपकी जीभ अवश्य बची हुई है।" इस पर सबने कहा-"पर यह हुआ कैसे?" मेरे जन्म के समय जीभ थी और आज मैं यह चोला छोड़ रहा हूं तो भी यह जीभ बची हुई है। ये दांत पीछे पैदा हुए, ये जीभ से पहले कैसे विदा हो गए? इसका क्या कारण है, कभी सोचा?"
शिष्यों ने उत्तर दिया-"हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।" उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- "यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है, परंतु मेरे दांतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए। इसलिए दीर्घजीवी होना चाहते हो, तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।" एक शिष्य ने गुरू से इसका कोई दूसरा उदाहरण बताने को कहा। संत ने कहा-"क्या तुमने बेंत या बांस नहीं देखा है। आंधी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती, जबकि तनकर खड़े रहने वाले पेड़ धराशायी हो जाते हैं।" उनकी बात सुनकर शिष्यों को समझ में आ गया कि विनम्रता से काम बन जाता है।
नमे सो आम्बा-आमली, नमे से दाड़म दाख।
एरण्ड बेचारा क्या नमे, जिसकी ओछी शाख॥
शिष्यों ने उत्तर दिया-"हमें मालूम नहीं। महाराज, आप ही बतलाइए।" उस समय मृदु आवाज में संत ने समझाया- "यही रहस्य बताने के लिए मैंने तुम सबको इस बेला में बुलाया है। इस जीभ में माधुर्य था, मृदुता थी और खुद भी कोमल थी, इसलिए वह आज भी मेरे पास है, परंतु मेरे दांतों में शुरू से ही कठोरता थी, इसलिए वे पीछे आकर भी पहले खत्म हो गए। इसलिए दीर्घजीवी होना चाहते हो, तो कठोरता छोड़ो और विनम्रता सीखो।" एक शिष्य ने गुरू से इसका कोई दूसरा उदाहरण बताने को कहा। संत ने कहा-"क्या तुमने बेंत या बांस नहीं देखा है। आंधी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती, जबकि तनकर खड़े रहने वाले पेड़ धराशायी हो जाते हैं।" उनकी बात सुनकर शिष्यों को समझ में आ गया कि विनम्रता से काम बन जाता है।
नमे सो आम्बा-आमली, नमे से दाड़म दाख।
एरण्ड बेचारा क्या नमे, जिसकी ओछी शाख॥
बहुत सुन्दर कथा :) | ज्ञानपूर्ण और हितकारी | आभार
जवाब देंहटाएंbahut achchhi bodh katha.
जवाब देंहटाएंविनम्रता शीतल बयार है। संत कबीर के शब्दों में - औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय ...
जवाब देंहटाएंकुछ बात तो है विनम्रता में , मगर आजकल किसी से विनम्रता से पेश आओ तो खजूर के झाड पर चढ़े दिखने लगते हैं , बहुत लोगों को सम्मान पचता नहीं है !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सरलता से समझाया है ....आभार ...
जवाब देंहटाएंविनम्रता हमेशा विजयी होगी ..
जवाब देंहटाएंसच है
जवाब देंहटाएंसटीक उदाहरण के साथ बहुत ही सुंदर व सार्थक सन्देश दिया साधू बाबा ने ! बहुत बढ़िया कथा !
जवाब देंहटाएंनिस्संदेह विनम्रता एक दुर्लभ गुण है। हमेशा की तरह सदविचार जगाती कथा।
जवाब देंहटाएंसटीक उदाहरण
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार पाबला जी,
हटाएंब्लॉग्स इन मीडिया : नम्रशीलता