10 दिसंबर 2012

अहिंसा का आलोक

वे सभी व्यक्ति अहिंसा की शीतल छाया में विश्राम पाने के लिए उत्सुक रहते हैं, जो सत्य का साक्षात्कार करना चाहते हैं. अहिंसा का क्षेत्र व्यापक है. यह सूर्य के प्रकाश की भांति मानव मात्र और उससे भी आगे प्राणी मात्र के लिए अपेक्षित है. इसके बिना शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की बात केवल कल्पना बनकर रह जाती है. अहिंसा का आलोक जीवन की अक्षय संपदा है. यह संपदा जिन्हें उपलब्ध हो जाती है, वे नए इतिहास का सृजन करते हैं. वे उन बंधी-बंधाई परंपराओं से दूर हट जाते हैं, जिनकी सीमाएं हिंसा से स्पृष्ट होती हैं. परिस्थितिवाद का बहाना बनाकर वे हिंसा को प्रश्रय नहीं दे सकते.

अहिंसा की चेतना विकसित होने के अनंतर ही व्यक्ति की मनोभूमिका विशद बन जाती है. वह किसी को कष्ट नहीं पहुंचा सकता. इसके विपरीत हिंसक व्यक्ति अपने हितों को विश्व-हित से अधिक मूल्य देता है. किंतु ऐसा व्यक्ति भी किसी को सताते समय स्वयं संतप्त हो जाता है. किसी को स्वायत्त बनाते समय उसकी अपनी स्वतंत्रता अपहृत हो जाती है.

किसी पर अनुशासन थोपते समय वह स्वयं अपनी स्वाधीनता खो देता है. इसीलिए हिंसक व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में संतुष्ट और समाहित नहीं रह सकता. उसकी हर प्रवृत्ति मं एक खिंचाव-सा रहता है. वह जिन क्षणों में हिंसा से गुजरता है, एक प्रकार के आवेश से बेभान हो जाता है. आवेश का उपशम होते ही वह पछताता है, रोता है और संताप से भर जाता है.

हिंसक व्यक्ति जिस क्षण अहिंसा के अनुभाव से परिचित होता है, वह उसकी ठंडी छांह पाने के लिए मचल उठता है. उसका मन बेचैन हो जाता है. फिर भी पूर्वोपात्त संस्कारों का अस्तित्व उसे बार-बार हिंसा की ओर धकेलता है. ये संस्कार जब सर्वथा क्षीण हो जाते हैं तब ही व्यक्ति अहिंसा के अनुत्तर पथ में पदन्यास करता है और स्वयं उससे संरक्षित होता हुआ अहिंसा का संरक्षक बन जाता है.

अहिंसा के संरक्षक इस संसार के पथ-दर्शक बनते हैं और हिंसा, भय, संत्रास, अनिश्चय, संदेह तथा असंतोष की अरण्यानी में भटके हुए प्राणियों का उद्धार करते हैं.

-आचार्य तुलसी (राजपथ की खोज)

13 टिप्‍पणियां:

  1. अहिंसा परमो धर्म ....सार्थक आलेख ...

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  2. बहुत उम्दा,सार्थक प्रस्तुति....सुज्ञ जी,दूसरों की पोस्ट पर भी जाने की आदत डालिए,,

    recent post: रूप संवारा नहीं,,,

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  3. स्थायी उन्नति तो अहिंसा से ही संभव है

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  4. इतनी सरल व्याख्या और सुग्राह्य भी!!

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  5. अहिंसा में विचारों के सुखद बदलाव की क्षमता है !

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  6. सहज़ सरल शब्‍दों में ... उत्‍कृष्‍ट लेखन .. आभार आपका

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  7. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार

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  8. ध्यान के पीछे-पीछे अहिंसा ऐसे ही चली आती है
    जैसे फूलों की सुगंध, ...

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  9. आपने विल्कुल अनुभव की बात कही है कि जिस क्षण व्यक्ति हिंसक चित्त वृत्ति से गुजरता है वह स्वयं भी कितना परेशान सा हो जाता है कि जैसे शान्त समुद्र में ज्वार आ गया हो ।वड़ी ही सार्थक अभिव्यक्ति है आपकी सच अहिंसा तो अहिंसा ही है।लैकिन याद रहै कि अहिंसा भी केवल बीरों का ही भूषण है कमजोर की कायरता है यह सो अपने साथ सामर्थ्य रहै तब ही अहिंसा कायम रह सकती है।
    आपका ब्लाग हिन्दुवादी ब्लाग एग्रीगेटर व राष्ट्रधर्म राष्ट्रीय पत्रिका एवं ब्लाग एग्रीगेटर http://rastradharm.blogspot.in/पर जोड़ लिया गया है कृपया आकर देखे तथा हमारे ब्लाग रचनाओं पर भी कमेंण्ट दें हम आपके व पाठकों के आगमन का स्वागत करते हैं।हमारे 2 आयुर्वेदिक तथा एक विद्यार्थियों व कैरियर के लिए बनाया गाय व्लाग भी है सभी के लिंक दे रहा हूँ सभी पर सुज्ञ जी व उनके पाठक सादर आमंत्रित हैं।http://ayurvedlight.blogspot.in/
    http://gyankusum.blogspot.in व http://ayurvedlight1.blogspot.in/

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  10. ग्रहण करने योग्य सुविचार हैं।

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