9 अगस्त 2011

अपेक्षा-बोध : नयज्ञान - अनेकान्तवाद


पिछले लेखों में हमने अनेकांत का भावार्थ समझने का प्रयास किया कि किसी भी कथन के अभिप्रायः को समझना आवश्यक है। अभिप्रायः इस बात पर निर्भर करता है कि कथन किस अपेक्षा से किया गया है। वस्तुतः कथन असंख्य अपेक्षाओं से किया जाता है किन्तु मुख्यतया सात अपेक्षाएँ होती है जिसका विवेचन यहाँ किया जा रहा है। अपेक्षाओं को जानने के सिद्धांत को नय कहते है।

नयसिद्धांत वक्ता के आशय या कथन को तत्कालिक संदर्भ में सम्यक प्रकार से समझने की पद्धति है।

जैसा पहले बताया गया कि प्रत्येक द्रव्य में अनंत गुण-धर्म रहे हुए होते है। उन अनंत गुण-धर्मों में से किसी एक को प्रमुखता देना, दूसरों को गौण रखते हुए और अन्य गुण-धर्मों का निषेध न करते हुए, एक को मुख्यता से व्यक्त करना या जाननानय ज्ञानकहलाता है।

सात नय (सप्तनय) इस प्रकार है:-

1-नैगमनय
2-संग्रहनय
3-व्यवहारनय
4-ॠजुनय
5-शब्दनय
6-समभिरूढनय
7-एवंभूतनय

1-नैगमनयनैगमनय संकल्प मात्र को पूर्ण कार्य अभिव्यक्त कर देता है। उसके सामान्य और प्रयाय दो भेद होते है। काल की अपेक्षा से भी नैगमनय के तीन भेद, भूत नैगमनय, भविष्य नैगमनय और वर्तमान नैगमनय होते है।

विषय के उलझाव से बचने के लिए यहाँ विस्तार में जाना अभी उचित नहीं है। कल उदाहरण दिया ही था कि नैगमनय निगम का अर्थ है संकल्प। नैगम नय संकल्प के आधार पर एक अंश स्वीकार कर अर्थघटन करता है। जैसे एक स्थान पर अनेक व्यक्ति बैठे हुए है। वहां कोई व्यक्ति आकर पुछे कि आप में से कल मुंबई कौन जा रहा है? उन में से एक व्यक्ति बोला – “मैं जा रहा हूँ। वास्तव में वह जा नहीं रहा है, किन्तु जाने के संकल्प मात्र से कहा गया कि जा रहा हूँ। इस प्रकार संकल्प मात्र को घटित कथन कहने पर भी उसमें सत्य का अंश रहा हुआ है। नैगमनय की अपेक्षा से सत्य है।

भूत नैगमनय - भूतकाल का वर्तमान काल में संकल्प करना जैसे दशहरे के दिन कहना आज रावण मारा गया। जबकि रावण को मारे गए बहुत काल बीत गया। यह भूत नैगमनय की अपेक्षा सत्य है।

भविष्य नैगमनय - जैसे डॉक्टरी पढ रहे विद्यार्थी को भविष्य काल की अपेक्षा सेडॉक्टर साहबकह देना भविष्य नैगमनय की अपेक्षा से सत्य है।

वर्तमान नैगमनयजैसे सोने की तैयारी करते हुए कहना किमैं सो रहा हूँवर्तमान नैगमनय की अपेक्षा से सत्य है।

इस प्रकार नैगमनय के परिप्रेक्ष्य में कथन की अपेक्षा को परख कर, सत्यांश लेकर, कथन के अभिप्रायः को निश्चित करना अनेकांत या अपेक्षावाद का नैगमनय है।

2-संग्रहनयसंग्रहनय एक शब्द मात्र में एक जाति की अनेक वस्तुओं में एकता या संग्रह लाता है।
जैसे कहीं व्यक्ति प्रातः काल अपने सेवक से कहे- ‘ब्रश लाना तोऔर मात्रब्रशकहने से सेवक ब्रश, पेस्ट, जिव्हा साफ करनें की पट्टी, पानी की बोतल, तौलिया आदि वस्तुएं ला हाजिर करे तो वह सभी दातुन सामग्री की वस्तुएँ ब्रश शब्द में संग्रहित होने से ब्रश कहना संग्रहनय की अपेक्षा सत्य है।
इस प्रकार कई शब्द एक वस्तुनाम के भीतर समाहित होने से संग्रहनय की अपेक्षा से सत्य है इस सत्यांश द्वारा अभिप्रायः सुनिश्चित करना अपेक्षावाद या सापेक्षता नियम है।

क्रमशः……………

29 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट लगाई है आपने!
    आभार!

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  2. कई शब्द एक वस्तुनाम के भीतर समाहित होने से संग्रहनय की अपेक्षा से सत्य है,
    बहुत ही अच्‍छी जानकारी दी है आपने इस आलेख में ...आभार ।

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  3. भाई ये तो बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट है.आपके ज्ञान का जवाब नहीं.

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  4. बेहद कम श्रृंखला बद्ध लेख मालाएँ होती होती हैं जिन के हर अगले लेख का इन्तजार रहता है :)
    जिस तरह से आपने समझाया है, क्या कहना ! पाठक [मेरे जैसे] को तो अपने आप ही स्टुडेंट जैसी फीलिंग आने लगती है :)

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  5. स्नेही और ज्ञानी मित्रों की टिप्पणियों का इन्तजार कर रहा हूँ .......

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  6. ज्ञानी तो हूँ नहीं, इसलिए बस जो पढ़ा है वो सब मेरे लिए सीखने जैसा है!! और आप जैसा शिक्षक हो तो बस सीखने की इच्छा द्विगुणित हो जाती है!!

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  7. बहुत ही ज्ञान वर्धक बातें .. अच्छी लगी जानकारी

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  8. सुज्ञ भैया , यह शृंखला तो बहुत ही ज्ञानवर्धक है | दूसरा भाग कुछ गूढ़ हो गया था, समझने में कुछ समय लगा| बाकी तो बहुत ही क्लियर हैं | और इस भाग में जो आपने ब्रेक दिया है - २ नय समझा कर, यह बहुत अच्छा है, क्योंकि इसके आगे मुझे समझ आने वाला था नहीं :) |

    जैसा पिछली पोस्ट में दिवस भाई ने कहा था - मेरी और उनकी समस्या मिलती जुलती है - समझना थोडा कठिन हो जाता है | पर यह तो बिल्कुल समझ आया |

    बहुत धन्यवाद - यह शृंखला लिखने के लिए | देखिये - कहाँ मैं अनेकान्तवाद को द्वैत वाद समझती थी !!!!!

    आशा है इस के बाद आप "एकान्तवाद" के बारे में भी बताएंगे ...

    गौरव जी -आप इतनी मोडेस्टि के साथ भी काफी इन्फोर्मेशन दे जाते हैं :) वैसे - मेरे ब्लॉग पर आप काफी समय से आये नहीं शायद ?

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  9. इनके बारे में मैंने तर्कशास्त्र में विधिवत पढ़ा था. अब इतने वर्षों बाद पुनः इन्हें पढ़कर अच्छा लगा.
    सुज्ञ जी मुझे लग रहा है कि आपके लेख उत्तरोत्तर सैद्धांतिक होते जा रहे हैं. यह इनकी विशेषता ही है, कमी नहीं.

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  10. नय का यदि हम डिक्शनरी-मिनिंग देखें तो होगा-पॉलिसी, लेकिन यह नय नीति नहीं है। बल्कि किसी तथ्य के निहित अर्थ को समझने की पद्धति है। बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी। नय के भेदों में आपने अंतिम भेद को एवंभूतनय कहा है। क्या यह केवल भूतनय नहीं है? कृपया समाधान दें।

    ज्ञानवर्धक लेख !!!

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  11. मनोज भाई जी ! सप्तम है "भूतनय" ......एवं का प्रयोग षष्ठं को जोड़ने के लिए किया गया है.
    नय सिद्धांत बिलकुल स्पष्ट है. इसका प्रयोग प्रायः दो स्थानों पर होता है, 1- दैनिक बोलचाल में भाव सम्प्रेषण के लिए, २- संभाषा परिषद् में शास्त्रार्थ के लिए.
    हमारी प्राचीन परम्परा में ज्ञान के वर्धन, प्रसारण और संदेह के निवारण के लिए संभाषा परिषदों का आयोजन किया जाता था. विभिन्न पक्ष किसी विषय विशेष पर अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किया करते थे जिनका विद्वत्परिषद द्वारा अंतिम निष्कर्ष निकाला जाता था. ये संभाषायें न्यायिक प्रकरणों से ले कर वैज्ञानिक शोधों तक के विषयों पर आयोजित की जाती थीं. संभाषा की प्रकृति निश्चयात्मक किन्तु सात्विक होनी चाहिए. सात्विक का यहाँ अभिप्राय है- "सत्य की ओर" या "सत्य के लिए". संभाषा का एक प्रकार विगृह्य भी है. वस्तुतः यह कुसंभाषा है, यह सत्य के अन्वेषण हेतु नहीं अपितु केवल अपने पक्ष को सत्य इम्पोज करने के लिए होती है. शास्त्र में इसकी निंदा की गयी है. आजकल अदालतों में इसी का अधिक प्रयोग किया जाता है.

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  12. शिल्पा दीदी,
    विषय यकिनन दुरह है। इसे हृदयगम करना आसान भी नहीं। आपकी समझ कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि प्राचीन मनिषीयों को भी यह भ्रम हो चुका है कि यह द्वेत जैसा कुछ है। मैं स्वयं भी कठिन स्थिति में हूँ कि मैने एक गूढ़ विषय को छूने का जोखिम भरा दुस्साहस किया है। और व्याख्या विस्तृत होती जा रही है। पूर्ण विवेचन बिना अब इसे अपूर्ण छोड भी नहीं सकता। विशेष ज्ञान को असमन्जस में छोड़ना विकृत करने का अपराध है।
    एकान्तवाद? स्पष्ट है अनेक दृष्टिकोण से चिंतन अनेकांतवाद है तो एक ही दृष्टिकोण की जिद्द 'एकान्तवाद' है।

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  13. निशांत जी,
    नय तर्कशास्त्र और शास्त्रार्थ का विषय इसीलिए है कि सभी का उद्देश्य अन्ततः तो सत्य तक पहुँचना है।
    लेखन का उत्तरोत्तर सैद्धांतिक बनना अवश्यंभावी है क्योंकि इस विषय में सहारा भी सिद्धांत-शास्त्रो का लिया जा रहा है। परिभाषाएँ और वर्गीकरण के लिए सिद्धांतो से भाव ज्यों का त्यों लेना जरूरी है। हम अपना मंतव्य मिला या शब्द,पद,अक्षर घटा बढ़ा नहीं सकते।

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  14. मनोज भारती जी,

    मेरे पास उपलब्ध शब्दकोष में- नय - पु.[सं.]ले जाने अथवा नेतृत्व करने की क्रिया;नीति;राजनीति;नम्रता;व्यवहार;वर्ताव;सिद्धांत;मत;दूरदर्शिता;नैतिकता;योजना। आदि पर्याय मिलते है। प्रस्तुत नय किस पर्याय में उपयोग हुआ है, निश्चय से कह नहीं सकता। पर सम्भाव्य है व्यवहार;वर्ताव;सिद्धांत;मत; में से किसी का पर्याय हो।

    अंतिम सप्तम् भेद 'एवंभूतनय' ही है। कौशलेन्द्र जी ध्यान दें, यह 'एवं' षष्ठं को जोड़ने के लिए प्रयुक्त नहीं है।
    एवंभूतनय - 'भूतशब्दोऽत्र तुल्यावाची,एवं यथा वाचके शब्दे यो व्युत्पत्तिरूपो विद्यमानोऽर्थोऽस्ति तथाभूततुल्यार्थक्रियाकारि एव वस्तु मन्यमानः एवंभूतोनयः।'

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  15. @ "नय सिद्धांत बिलकुल स्पष्ट है. इसका प्रयोग प्रायः दो स्थानों पर होता है, 1- दैनिक बोलचाल में भाव सम्प्रेषण के लिए, २- संभाषा परिषद् में शास्त्रार्थ के लिए."

    कौशलेन्द्र भैया जी,

    आपने बिलकुल सत्य कहा है। नय का यही उपयोग है। ब्लॉग पर इसके विवेचन को मैने इसीलिए प्रधानता दी क्योंकि ब्लॉगिंग में यह दोनो प्रयोग आवश्यक है। और तभी सार्थक चर्चा सम्भव है। साधारण बोलचाल और शास्त्रार्थ दोनो ब्लॉगिंग की विधाएं हो गई है।

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  16. कठिन विषय है , मगर समझाना सरल ही ...
    ज्ञानवर्धक संग्रहणीय पोस्ट ...
    आभार !

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  17. रोचक, उपयोगी, पठनीय सामग्री सुलभ करा रहे हैं आप. (नियमित देख रहा हूं, लेकिन टिप्‍पणी-उपस्थिति लगना जरूरी नहीं लग रहा था.)

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  18. very informative..
    your posts r always worth a read :)

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  19. इस ज्ञानवर्धक आलेख से प्राप्त ज्ञान के लिए आपका आभार !

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  20. स्ंग्रह करके रखने योग्य शृंखला! पढ रहा हूँ, समझ रहा हूँ और यह बात समझ आ रही है कि ब्लॉगिंग में ज्ञान का खज़ाना भी है। कौशलेन्द्र जी की पूरक टिप्पणियाँ भी ज्ञानवर्धक हैं।

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  21. bahut sukshm shodh chal raha hai aur aapke prayaas se hum kuch grahan ker pa rahe hain...

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  22. आदरणीय भाई सुज्ञ जी, मैं सच सच कहता हूँ की अबकी बार समझने में बहुत ज्यादा सरलता रही| पहले थोडा प्रयत्न करना पड़ता था|जिस प्रकार आपने नैगमनय व संग्रहनय को समझाया, यह तरीका सच में बहुत अच्छा लगा| इससे विषय को समझने में बहुत सहयोग मिला|
    आदरणीय भाई गौरव जी की बात से मैं भी सहमत हूँ की इस श्रृंखला के लेखों का बेसबरी से इंतज़ार रहेगा|
    अब तो मैं भी student बन गया हूँ| बहुत आनंद आ रहा है, इसे पढने में|

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  23. दिवस जी,

    यह तो सर्वसाधारण बात है कि विषय जैसे जैसे आगे बढ़ता है सरलता से अभिगम होता जाता है। इसके पिछे भी नय सिद्धांत ही कार्य करता है। जब विषय आगे बढ़ता है तो व्याख्या में विषय का 'आशय'(अभिप्रायः) स्पष्ट होने लगता है। आशय का स्पष्ट चित्र उभरते ही पिछला कठिन भी सरल-बोध हो जाता है। हर कथन की सच्चाई उस कथन के अभिप्राय: पर ही निर्भर है।

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  24. भाई सुज्ञ जी ! दुर्भाग्य से संस्कृत मेरा विषय नहीं रहा है. ....जोड़-तोड़ कर समझने का प्रयास करता हूँ . दर्शन मेरी स्वाभाविक अभिरुचि है .......कभी उत्सुकता में पढ़ा भी था तो अंगरेजी में. श्रंखला ज्ञानवर्धक है, पर मैं हर ज्ञान के व्यावहारिक पक्ष को अधिक समझने का प्रयास करता हूँ.......यही तो ज्ञान की उपादेयता है. हमारे एक पुर्तगाली मित्र डेनीसन बेर्विक के अनुसार भारत में ज्ञान बहुत है पर भारतीय लोग न जाने क्यों उसके उपयोग से स्वयं को वंचित किये रहते हैं. उनकी टिप्पणी कुछ अधिक ही उपहासात्मक थी. तब मैं छात्र था, बुरा तो लगा पर बेर्विक के उपहास के बाद से मेरी दृष्टि ही बदल गयी. इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ. भारतीय दर्शन हमारे जीवन के सभी पक्षों से जुड़े हुए हैं...यह मैं उसके बाद से ही समझ पाया.

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  25. बंधुवर कौशलेन्द्र जी,

    चिन्ता न करें, संस्कृत मेरा भी विषय नहीं है, और न मैने संस्कृत ज्ञान दिखाने के उद्देश्य से उस सूत्र का आलेखन किया। सौभाग्य से मेरे पास उपलब्ध पुस्तक में यह उद्दरण था, वास्तव में वह उसी 'एवं' के समाधान के लिए प्रचीन व्याख्या से उद्दत्त किया गया था। शेष पुस्तक हिन्दी में ही है। मैने वह उद्दरण ज्यों का त्यों आलेखित करना उचित समझा, ताकि विद्वान उसे सही परिप्रेक्ष्य में ले सके।

    इस मूल्यवान ज्ञान का यहां प्रस्तुतिकरण व्यावहारिक उपयोगार्थ ही है। मैं भी मानता हूं ज्ञान का व्यवहारिक उपयोग ही उसकी उपादेयता है।

    जरा सोचिए अगर ब्लॉगिंग में हम विचार प्रस्तुत करते हुए या पढ़ते हुए इन नय सिद्धान्तों का उपयोग करें तो हमारी बात आशय सहित अभिव्यक्त होगी। और पढ़ते हुए लेखक का अभिप्रायः ग्रहण कर पाएंगे।

    आप प्रत्येक विचार पर चर्चा करके विषय को सुन्दर विस्तार दे रहे है। आभारी हूँ!!

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  26. ज्ञानवर्धक और नया विषय हम सबके लिये।

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