30 मई 2011

दृष्टिकोण समन्वय


ब तक समन्वय का दृष्टिकोण विकसित नहीं होता तब तक विवादों से विराम नहीं मिलता। छोडना, प्राप्त करना और उपेक्षा करना इन तीनों के योग का नाम समन्वय है। मनुष्य यदि इन बातों का जीवन में समन्वय, समायोजन कर ले तो शान्तिपूर्ण जीवन जी सकता है।


यदि हम अनावश्यक विचारधारा छोड़ें, नए सम्यक् विचारों को स्वीकार करें और तथ्यहीन बातों की उपेक्षा करना सीख लें तो यथार्थ समन्वय हो जाता है उस दशा में न जाने कितने ही झगड़ों और विवादों से बचा जा सकता है।

  1.  निराग्रह विचार (अपने विचारों का आग्रह छोड दें)
  2.  सत्य तथ्य स्वीकार (श्रेष्ठ अनुकरणीय आत्मसात करें)
  3.  विवाद उपेक्षा ( विवाद पैदा करने वाली बातों की उपेक्षा करें)

    44 टिप्‍पणियां:

    1. दृष्टिकोण के विषय में लिखी गयी यह बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं ...आपका आभार

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    2. असतो मा सद्गमय! कम शब्दों में महत्वपूर्ण बात कही है। मुझे लगता है कि बहुत से लोग सत्य को स्वीकार करना तो चाहते हैं परंतु विवेक की कमी और ममत्व की अधिकता के कारण ऐस करने में अक्षम रहते हैं।

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    3. अनुकरणीय बातें...क्योंकि विवादों से बचे रहें तो हमारी यही ऊर्जा अन्य किसी सकारात्मक कार्य में काम आ सकती है...

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    4. pahli bar aapke blog par aayee hoon aur itni gyanvardhak post dekh prafullit ho gayee.ye teen baten yadi ham sweekar kar len to bahut se tanavon se bach sakte hain.aabhar

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    5. बहुत सुन्दर बातें बताईं हैं आपने.जैसा की स्मार्ट इंडियन जी ने कहा इसके लिए निष्कपट निर्मल विवेक की अति आवश्यकता है.सत्संगति से विवेक विकसित होता है.आपके ब्लॉग पर आकर अच्छी सत्संगति होती है.
      अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

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    6. विवाद पैदा करने वाली बातों की उपेक्षा करें... yah bahut zaruri hai , kyonki baat wahi rah jati hai aur n jane kitni baaten utpann ho jati hain

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    7. सुज्ञ जी, आपने कहा, "...मनुष्य यदि इन बातों का जीवन में समन्वय, समायोजन कर ले तो शान्तिपूर्ण जीवन जी सकता है।..."

      वर्तमान में मानव जीवन में और मन में भी अनादि काल से चले आ रहे संघर्ष के सन्दर्भ में इस का अर्थ हुआ कि 'मनुष्य' कभी भी शांति पूर्वक रहना ही नहीं चाहता :)

      प्राचीन ज्ञानी इसी लिए स्वयं अपने को पहले जानने हेतु हमारे लिए प्रश्न छोड़ गए - मैं कौन हूँ? आदि, और कुछ ज्ञानियों का गहन चिंतन कर निष्कर्ष, "अहम् ब्रह्मास्मि" यानि 'मैं ही सृष्टि-करता हूँ', अथवा "शिवोहम / तत त्वम् असी" यानि 'हम सभी वास्तव में शून्य काल और आकार से सम्बंधित, अजन्मी और अनंत, शक्ति रूप आत्मा हैं (परमात्मा के प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब, यानि निमित्त मात्र अथवा माध्यम उसका अपना इतिहास, अपने ही शून्य से अनंत प्राप्ति दर्शाने हेतु अनंत कहानियों के विभिन्न साकार प्रतीत होते पात्र ?)'...

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    8. bahut gyanvardhak post prastut ki hai aapne .aabhar

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    9. आपकी यही तो ल्हूबी है कि आप कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाते हैं...
      आभार...

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    10. कृपया पिछली टिपण्णी में ल्हूबी के स्थान पर खूबी पढ़ें...

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    11. आपके इन विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ....
      प्रेमरस.कॉम

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    12. अगर हम केवल खुद को सुधारें तब भी आदर्श जीवन की आधारशिला रख सकते हैं और जब हम महकेंगे तो हमारे संपर्क में आने वाले सभी सुवासित हो जायेंगे

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    13. बेनामी30 मई, 2011 11:42

      प्रेरणात्‍मक विचार ।

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    14. बहुत ही सुन्दर और सर्वग्राह्य विचार्।

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    15. सहमत हे जी आप के सुंदर विचारो से

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    16. प्रस्तुत जीवन सूत्र महत्वपूर्ण हैं और इसीलिए अनुकरणीय हैं।

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    17. बहुत ही प्रेरणादायक और अनुकरणीय विचार

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    18. निराग्रह विचार (अपने विचारों का आग्रह छोड दें)
      सत्य तथ्य स्वीकार (श्रेष्ठ अनुकरणीय आत्मसात करें)
      विवाद उपेक्षा ( विवाद पैदा करने वाली बातों की उपेक्षा करें)

      कोशिश करेंगे .....

      वादा नहीं .....:))

      शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया ......!!

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    19. सम्यक ज्ञान,चारित्र व दर्शन: मोक्षमार्ग:
      - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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    20. bahut sundar path....hum jaise nasamajh ke liye......

      pranam.

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    21. बहुत सुन्दर बातें बताईं हैं आपने|धन्यवाद|

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    22. vivek ji
      bahut hi sahjta ke saath aapne jivan ki mulyon ka adhbhut vishhleshhan kiya hai
      aapki bato ka main dil s samarthan karti hun.

      निराग्रह विचार (अपने विचारों का आग्रह छोड दें)
      सत्य तथ्य स्वीकार (श्रेष्ठ अनुकरणीय आत्मसात करें)
      विवाद उपेक्षा ( विवाद पैदा करने वाली बातों की उपेक्षा करें)
      saty hi kaha hai aapne par aisa karna sahaj nahi ho pata .kyon ki kabhi kabhi samajhdar log bhi in baato o najar andaz jahan jarurat ho nahi kar paate .samjhna to dur ki baat hai .
      par yadi aapki nimn baato koa thoda bhi ansh grahan kar liya jaaye to kuchh to jivan me badlav aa hi sakta hai .
      bahut hiprabhavpark lekh.
      dhanyvaad sahit
      poonam

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    23. केवल राम जी,
      आभार!!

      अनुराग जी,
      कम शब्दों में तो आपने सार प्रस्तुत किया है-"विवेक की कमी और ममत्व की अधिकता ही अक्षमता का कारण हैं।

      डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
      सही कहा विवादों से बची उर्ज़ा को सकारात्मक कार्यों में लगा सकें।

      शालिनी कौशिक जी,
      स्वागत है आपका!! हाँ, यह तनाव मुक्ति का सरल उपाय है।

      दिवस जी,
      कम शब्द पठन देकर मित्रों का समय बचाने का प्रयास करता हूँ।

      शाह नवाज़ जी,
      शुक्रिया, बहुत दिनों बाद? स्वागत बंधु!!

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    24. आपके इन विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ....

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    25. संगीता दी,
      प्रेरणा तो आप बड़ों से पाता हूँ।

      अलका सरवत जी,
      कमाल की आधारभूत बात कही-"जब हम महकेंगे तो हमारे संपर्क में आने वाले सभी सुवासित हो जायेंगे "

      नूतन जी,
      आभार!!

      वन्दना ज़ी,
      सही कहा सर्वग्राह्य है, पर स्वममत्व वश कठिन बन जाते है।

      राज भाटिया जी,
      आभार!!

      महेन्द्र वर्मा जी,
      महत्व को रेखांकित कर विचारों को मूल्यवान बना दिया।

      रश्मि रविजा जी,
      मूल प्रेरणा तो आप जैसे विज्ञ पाठकों से मिलती है।

      हरकीरत जी,
      मात्र कोशिश? वादा नहीं…… फिर हम हमारी बातों की बड़ाई कहां मारेंगे। :))

      विवेक जैन जी,
      मैने तो सादी सी बात धरी थी, आपनें तो महान सूत्र धर दिया।

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    26. मित्र सञ्जय झा,
      मैं भी तो अबोध ही हूँ, चलो मिलकर बोध पाएँ।

      पूनम जी,
      सही कहा आपनें हम अक्सर नज़र अंदाज कर देते है।
      लेकिन………

      दृष्टि बदल दो दिशा बदल जाएगी।
      दिशा बदल दो दशा बदल जाएगी।
      सुख पाने के तनाव में तमाम होती उम्र।
      सन्तोष धरलो जिन्दगी बदल जाएगी॥

      दीपक सैनी,
      प्रोत्साहन के लिए आभार मित्र!!

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    27. विचार तो हम लोग बहुत करते हैं, लेकिन उन्हें अमल में लाने के समय हिम्मत हार जाते हैं. शायद एक अच्छे कार्य के लिये (आज के माहौल में) काफी हिम्मत की जरूरत होती है...

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    28. राकेश जी,मुझे भी आपकी सत्संगति आह्लादित करती है

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    29. रश्मि प्रभा जी, सही कहा…विवादों से बचने का अच्छा उपाय उपेक्षा ही है।

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    30. जे सी जी, मनुष्य शान्ति तो चाहता है, पर अपने अहंकार को दबाना नहीं चाहता।

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    31. शिखा कौशिक जी, प्रोत्साहन के लिए आभार

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    32. भारतीय नागरीक जी, सच है अपने मोह व अहंकार से निवृत हो बाहर निकलना बहुत ही कठिन है।

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    33. control and coordination two magical words which can result in miracles !!
      very beautiful expression of importance of coordination(almost in everything) in our lives.

      Once again a fantastic post !!

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    34. सुज्ञ जी, इसे अन्यथा न लें, सिर्फ सूचना हेतु है कि गीता में योगियों ने कृष्ण के माध्यम से दर्शाया कि हर व्यक्ति कृष्ण को अपने भीतर 'माया' से देखता है, किन्तु वास्तव मैं सभी उनके भीतर हैं... शायद तथाकथित अहंकार का ज्ञानी आत्मा और मिटटी से बने शरीर यानि पुतले के बीच में समन्वय का किसी काल विशेष में न होना हो, किन्तु क्यूंकि वो काल पर निर्भर करता है समन्वय किसी भी क्षण होना संभव है संचित ज्ञान के आधार पर... प्राचीन ज्ञानियों ने भी नदी के माध्यम से प्रकृति को सांकेतिक भाषा में मानव जीवन की प्रकृति को विभिन्न काल में दर्शाते पाया - आरम्भ में शिशु समान चंचल, पत्थरों पर उछलती कूदती-फांदती; किन्तु 'संन्यास आश्रम' समान सत्य को जानने हेतु गंभीर हो, केवल सिन्धु से मिलन के पूर्व नदी जल में ठहराव आ जाता है , जल स्तर बढ़ जाता है (बैकवाटर इफ्फेक्ट)...

      भारत में 'माया' शब्द कई बार सुनने को मिलता है, और वर्तमान भारत में बॉलीवुड को 'मायावी जगत' जाना जाता है, जहाँ कई रीलों में बनी काल्पनिक कहानियों के आधार पर भूत में कभी भी बनी फिल्में, जब कोई भी व्यक्ति विशाल अंधकारमय कक्ष (हॉल) में कभी भी देखता है, तो उसे वैसी ही भली-बुरी अनुभूतियाँ होती है जैसी उसको अपने जीवन काल में में भी होती रहती है, जिसे वो सत्य मानता है...

      आप हंसराज हैं और रामकृष्ण परमहंस के अतिरिक्त एक परमहंस योगानंदा भी हुए थे जिन्होंने अपनी आत्म-कथा में भी प्राचीन ज्ञानियों द्वारा संसार को 'मिथ्या जगत' माने जाने को परमात्मा द्वारा ३-डी प्रोजेक्शन माना (जैसा हर व्यक्ति अथवा निम्न श्रेणी के कुछ पशु भी 'निद्रावस्था' में स्वप्न देखते हैं जिन पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता, वैसे ही जैसे जागृत अवस्था में भी हमारा विचारों पर नियंत्रण नहीं होता क्योंकि नहीं चाहते हुए भी वो और अधिक आते प्रतीत होते हैं)...

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    35. बहुत ही नीतिपरक विचाराभिव्यक्ति.समन्वय दृष्टिकोण निरर्थक बातों से बचाता है.जीवन का एक एक पल बहुत कीमती है.सार्थक कार्यों के किये ही जीवन कम पड़ता है फिर निरर्थक विवादों में वक़्त जाया क्यों करें.फिर भी मानव स्वभाव है .सकारात्मक-नकारात्मक विचारों का आवागमन होता ही रहता है.ऐसे नीतिपरक विचारों से ही नकारात्मक भावों पर नियंत्रण रखा जा सकता है.अनुकरणीय विचार.

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    36. ज्योति मिश्रा जी,
      सही कहा, संयम और समन्वय जीवन में अद्भुत परिवर्तन करने में समर्थ है।

      जे सी जी,
      सही कहा, सत्य और माया में अन्तर आवश्यक है।

      अरुण कुमार निगम जी,
      वास्त्विकता है,नीतिपरक विचारों से ही नकारात्मक भावों पर नियंत्रण रखा जा सकता है.

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    37. सुंदर विचार हैं ... योउ तो साबोइ बातें पढ़ते समय लगता है की अच्छी हैं ... पर लागू करने पे पता चलता है की कितना मुश्किल है ... बहुत तपस्या और निर्मल मन की आवश्यकता है ये सब करने के लिए .. योगी बनना पढ़ता है ...

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    38. बहुत सार्थक आलेख , सहमत हूँ आपके विचारों से । पढ़कर आनंद आ गया।

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    39. मनप्रीत जी,
      आपके आनें का आभार

      दिगम्बर नासवा जी,
      जीवनमूल्यों के उत्थान हेतु मात्र विचारों का उधर्वीकरण भी अपने आप में निर्मल तपस्या है। इच्छाशक्ति ही तो योगी बनाती है।

      दिव्या जी,
      जीवनमूल्यों के प्रति रूचि और आनंद ही हमें उधर्वगति प्रदान करता है।

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    40. @ तथ्यहीन बातों की उपेक्षा करना सीख लें
      @ विवाद उपेक्षा ( विवाद पैदा करने वाली बातों की उपेक्षा करें)

      आज एक और अच्छा काम किया.

      दिव्या जी के ब्लॉग पर

      कविता के माध्यम से

      टिप्पणी न करने का वायदा कर लिया

      @ श्रेष्ठ अनुकरणीय आत्मसात
      कर लिया

      जवाब देंहटाएं
    41. अनुकरणीय है यह पोस्ट हालाँकि आत्मसात करा आसान नहीं !
      आभार आपका !

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