(आज प्रस्तुत है मेरे पसंदीदा कवि ‘भृंग’ की एक रचना)
आसक्ति परिणाम |
जग के जंजाल बीच, कूद पड़ा आंख मींच,
सपनों को सींच सींच, बे-लगाम हो गया।
जोश में तो होश भूल, खुशियों के झूले झूल,
समय के प्रतिकूल, बे-नकाब हो गया।
सुन के रसीली राग, खेलने लगा हूँ फाग,
बात बात में हूँ आग, मैं अलाम हो गया।
इन्द्रियों के वशीभूत, कैसे होऊं फलीभूत,
करमों की करतूत, मैं गुलाम हो गया।
आँख साख झूठी देवे, कान किये हथलेवे,
मुख निरा मुसकावे, कटि वाम हो गया।
सांस फूलने लगा है, डील झूलने लगा है,
बात भूलने लगा है, पांव जाम हो गया।
प्रभु तेरे द्वार पर, खड़ा एक पांव पर,
जैसे तैसे पार कर, तेरे नाम हो गया।
इन्द्रियों के वशीभूत, “भृंग” कैसे फलीभूत,
कैसी करतूत, तन तामजाम हो गया॥
-कवि भंवरलाल ‘भृंग’
कवि भंवरलाल ‘भृंग’ जी द्वारा रचित इस अनमोल मोती के दर्शन करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है "भृंग" साहब ने...
जवाब देंहटाएंप्रभु तेरे द्वार पर, खड़ा एक पांव पर,
जवाब देंहटाएंजैसे तैसे पार कर, तेरे नाम हो गया।
इन्द्रियों के वशीभूत, “भृंग” कैसे फलीभूत,
कैसी करतूत, तन तामजाम हो गया॥
बहुत सुंदर ...बहुत अर्थपूर्ण ...पढवाने का आभार
बहुत ही सुन्दर रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना पढवाई आज ...आभार
जवाब देंहटाएंभृंग जी की रचना पढवाने का शुक्रिया1
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
अच्छी रचना के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंek achhi rachna aapke dwaara padhne ko mili
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी रचना से साक्षात्कार करवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंजग के जंजाल बीच, कुद पडा आंखे मीच,
सपनों को सींच सींच, बे-लगाम हो गया.....
बहुत कुछ बलिदान करने के बाद ही कोई जग के जंजाल में कूद सकता है । जब एक बार पर-हित की अग्नि में कूद ही गए तो बेलगाम घोड़े की तरह त्निरंतर सप्रयास और कोल्हू के बैल की तरह उस अग्नि में जलना पड़ता है तभी समाज का उद्धार होता है।
इन सद्प्रयासों में विघ्न उत्पन्न करने वाले तो बहुत आते हैं , लेकिन हवन की अग्नि में हाथ देने वाले बेलगाम घोड़ों को कोई रोक सकता है भला।
ताप कर कुंदन हो जाते हैं ऐसे व्यक्तित्व और गुनाह गिनाने वाले बेजार होकर मुंह छुपाते फिरते हैं ।
.
ऐसी परिनिष्ठ भाषा के साथ मेरे जैसे छिद्रान्वेषी वर्तनी की गलतियों में अटक जाता है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर छन्दबद्ध प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंhttp://samasyapoorti.blogspot.com
pahili bar samjhne me dikkat hue.....bad me zealji
जवाब देंहटाएंke tippani padh samajh me aaya.........
pranam.
बहुत सुंदर ...अर्थपूर्ण ...पढवाने का आभार
जवाब देंहटाएं"प्रभु तेरे द्वार पर, खड़ा एक पांव पर,
जवाब देंहटाएंजैसे तैसे पार कर, तेरे नाम हो गया।"
अनुपम,उत्कृष्ट ,शानदार अभिव्यक्ति के लिए आभार.प्रभु समर्पण ही जीवन को पार लगा देता है.
बहुत ही सुन्दर रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! भृंग जी के बारे में थोडी जानकारी दीजिये न अगली किसी पोस्ट में।
जवाब देंहटाएंप्रभु तेरे द्वार पर, खड़ा एक पांव पर,
जवाब देंहटाएंजैसे तैसे पार कर, तेरे नाम हो गया।
इन्द्रियों के वशीभूत, “भृंग” कैसे फलीभूत,
कैसी करतूत, तन तामजाम हो गया॥
गहन आत्मचिंतन -
सही विश्लाशन -
सुंदर रचना ...!
भृंग जी की रचना पढवाने का शुक्रिया1
जवाब देंहटाएंप्रभु तेरे द्वार पर, खड़ा एक पांव पर,
जवाब देंहटाएंजैसे तैसे पार कर, तेरे नाम हो गया।
इन्द्रियों के वशीभूत, “भृंग” कैसे फलीभूत,
कैसी करतूत, तन तामजाम हो गया॥
इतनी अच्छी रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद
खूबसूरत बेहद खूबसूरत रचना |
जवाब देंहटाएंघनाक्षरी अथवा कवित्त :
जवाब देंहटाएंजिस छंद के प्रत्येक चरण में ३१ वर्ण हों, १६ और १५ पर यति हो, तथा अंत में गुरु हो, उसे घनाक्षरी छंद कहते हैं. उपर्युक्त छंद एक उत्तम उदाहरण हैं.
....
जवाब देंहटाएंऔर जिस कवित्त (छंद) के प्रत्येक चरण में ३३ वर्ण होते हैं तथा अंत में नगण होता है. १६ और १७ वर्ण के उपरान्त यति का नियम हो, तो उसे देवघनाक्षरी कवित्त कहते हैं.
रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि 'देव' ने सर्वप्रथम ३३ वर्णों वाले कवित्त का प्रयोग किया है, इसी कारण कवित्त के दूसरे भेद का नाम देवघनाक्षरी प्रचलित हो गया.
किन्तु मैंने जल्दबाजी के कारण 'नगण' नियम की परवाह न करते हुए दिवघनाक्षरी छंद बनाया है. जिसमें मात्रिक विधान तो वैसा ही है किन्तु न-गण नियम की पाबंदी नहीं. छंद अधूरा है, फिर भी परोस रहा हूँ :
अरे, भाई है वह जिसे, बात भायी भाई की, [१६ वर्ण]
वह भाई क्या जो जले भुने, अपने ही भाई से. [१७ वर्ण]
एक बहिन वह्नि जैसा, ताप लिये रहती. [१६ वर्ण]
पर दग्ध कटीले वचन लगते मिठाई से. [१७ वर्ण]
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
जवाब देंहटाएंपुनः पढ़ा इस रचना को , बार बार पढ़ा ।
जवाब देंहटाएंआनंददायी कृति ।
bahut sunder rachana .
जवाब देंहटाएंise padwane ke liye aapka aabhar........
जिंदगी को जैसे - तैसे ढोह कर चलते हुए इन्सान के भाव को प्रकट करती रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना |
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंआपकी इस तरह की अभिव्यक्ति हमारी श्रद्धा को और गहन कर देती है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
शुभकामनाये
आनंद दायक।
जवाब देंहटाएंक्या ख़ूब साहित्य परोसा भाई! दिल को छूने वाली रचना अति आनंददायी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता ... इतना उत्तम काव्य पर मैं क्या टिपण्णी करूँ ?
जवाब देंहटाएंशानदार कविता है। आभार
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