11 नवंबर 2010

पंच समवाय - कारणवाद. घटना पांच कारणो का समन्वय!


कारणवाद (पंच समवाय)

किसी भी कार्य के पिछे कारण होता है, कारण के बिना कोई भी कार्य नहीं होता। जगत में हर घटना हर कार्य के निम्न पांच कारण ही आधारभूत होते है।


1-काल (समय)
2-स्वभाव (प्रकृति)
3-नियति (होनहार)
4-कर्म (कर्म सत्ता)
5-पुरुषार्थ (उद्यम)


इन पांच करणो में से किसी एक को ही कारण अथवा किसी एक का भी निषेध करने पर ही भिन्न  भिन्न मत-मतांतर प्रकट होते है।


कालवादी: कालवादी का मंतव्य होता है,जगत में जो भी कार्य होता है वह सब काल के कारण ही होता है, काल ही प्रधान है। समय ही बलवान है। सब काल के अधीन है,सभी कार्य समय आने पर ही सम्पन्न होते है।इसलिये काल (समय) ही एक मात्र कारण है।

स्वभाववादी: स्वभाववादी का यह मंतव्य होता है कि सभी कार्य वस्तु के स्वभाव से घटित होते है, प्रत्येक पदार्थ के अपने गुण-धर्म होते है, उनका इसी तरह होना वस्तु का स्वभाव है। अतः स्वभाव ही एक मात्र कारण है।

नियतिवादी: नियतिवादी प्रत्येक कार्य को प्रारब्ध से होना मानता है, उसका मंतव्य होता है कि होनहार ही बलवान है। सारे कार्य भवितव्यता से ही सम्भव होते है।

कर्मवादी: कर्मवादी कर्मसत्ता में ही मानता है। ‘यथा कर्म तथा फलम्’ कर्म ही शक्तिशाली है, समस्त जग कर्म-चक्र के सहारे प्रवर्तमान है। अतः कर्म ही एक मात्र कारण है।

पुरुषार्थवादी : उध्यमवादी का मंतव्य होता है,प्रत्येक कार्य स्वप्रयत्न व श्रम से ही साकार होते है, पुरुषार्थ से कार्य होना स्वयं सिद्ध है, पुरुषार्थ से सभी कार्य सम्भव है अतः पुरुषार्थ ही एक मात्र कारण है।

किसी भी कार्य के कारण रूप में से किसी एक,दो यावत् चार को ग्रहण करने अथवा किसी एक का निषेध पर कथन असत्य ठहरता है।

उदाहरण:

एक व्यक्ति ने अपने बगीचे में आम का वृक्ष उगाया,जब उस पर आम लग गये तो, अपने पांच मित्रो को मीठे स्वादिष्ट फ़ल खाने के लिये आमंत्रित किया। सभी फलों का रसास्वादन करते हुए चर्चा करने लगे। वे पांचो अलग अलग मतवादी थे।
चर्चा करते हुए प्रथम कालवादी ने कहा, आज जो हम इन मीठे फ़लों का आनंद ले रहे है वह समय के कारण ही सम्भव हुआ। जब समय हुआ पेड बना, काल पर ही आम लगे और पके, समय ही कारण है,हमे परिपक्व आम उपलब्ध हुए।

तभी स्वभाववादी बोला, काल इसका कारण नहीं है, जो भी हुआ स्वभाव से हुआ। गुटली का गुणधर्म था आम का पेड बनना,पेड का स्वभाव था उस पर आम लगना,स्वभाव से ही उसमें मधुर रस उत्पन्न हुआ।स्वभाव ही मात्र कारण है

नियतिवादी दोनों की बात काटते हुए बोला, न तो काल ही इसका  कारण है न स्वभाव। कितना भी गुटली के उगने का स्वभाव हो और कितना भी काल व्यतित हो जाय, अगर गुटली के प्रारब्ध में उगना नहीं होता तो वह न उगती, वह सड भी सकती थी, किस्मत न होती तो पेड अकाल खत्म भी हो सकता था। आम पकना नियति थी सो पके। प्रारब्ध ही एक मात्र कारण है।

उसी समय कर्मवादी ने अपना मंतव्य रखते कहा, न काल,न स्वभाव, न नियति ही इसका कारण है, सभी कुछ कर्म-सत्ता के अधिन है। कर्मानुसार ही गुटली का उगना,पेड बनना,व फ़ल में परिवर्तित होना सम्भव हुआ। हमारे कर्म थे जिससे इन फ़लों का आहार हम कर रहे है, गुटली का वृक्ष रूप उत्पन्न होकर फ़ल देना कर्म-प्रबंध के कारण होते चले गये। अतः कर्म ही मात्र कारण है।

अब पुरूषार्थवादी की बारी थी, उध्यमवादी ने कहा, भाईयों हमारे इन बागानस्वामी ने सारी महनत की उसमें ये काल,स्वभाव,नियति और कर्म कहां से आ गये। इन्होनें श्रम से बोया,रखवाली की, खाद व सिंचाई की, सब इनके परिश्रम का ही फ़ल है। बिना श्रम के इन मीठे फ़लो का उत्पन्न होना सम्भव ही नहीं था। जो भी कार्य होता है वह पुरूषार्थ से ही होता है।

पांचो ही अपनी अपनी बात खींच रहे थे, सभी के पास अपने मत को सही सिद्ध करने के लिये पर्याप्त तर्क थे। बहस अनिर्णायक हो रही थी। तभी  बागानस्वामी ने कहा मित्रों आप सभी अपनी अपनी बात पकड कर गलत, मिथ्या सिद्ध हो रहे हो, यदपि आप पांचो का अलग स्वतंत्र अभिप्राय मिथ्या है तथापि आप पांचो के मंतव्य सम्मलित रूप से सही है , इन पाँचों कारणो का समन्वय ही सत्य है, कारणभूत है। कोई एक कारण प्रधान हो सकता है और अन्य चार गौण किन्तु पांचों का होना अनिवार्य है।

पांचो कारणों के समन्वय से ही कार्य निष्पन्न होता है, बिना काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरूषार्थ के कोई कार्य सम्भव नहीं होता। किसी एक कारण का भी निषेध करने से कथन असत्य हो जाता है। हां यह हो सकता है कि किसी एक कारण की प्रमुखता हो और शेष कारण गौण, लेकिन सभी पांच कारणो का समन्वित अस्तित्व निश्चित ही है।

36 टिप्‍पणियां:

  1. पांचो कारणों के सहयोग से ही कार्य निष्पन्न होता है, बिना काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरूषार्थ के कोई कार्य सम्भव नहिं होता। किसी एक कारण का भी निषेध करने से कथन असत्य हो जाता है। हां यह हो सकता है कि किसी एक कारण की प्रमुखता हो और शेष गौण, लेकिन सभी पांच कारणो का अस्तित्व निश्चित ही है।
    सब इसे समझ जाएं तो कोई भ्रम ही न रहे !!

    जवाब देंहटाएं
  2. अत्यंत ही उच्च कोटि का सन्देश
    आप का बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. @ सुज्ञ जी
    आनन्द आ गया जी, बेहद सुन्दर और बेहद सुलझा हुआ और सबसे बड़ी बात .... फिर भी संक्षिप्त लेख है

    जवाब देंहटाएं
  4. कहिये तो हम कुछ कहें ? :) [कितना सही होगा ये तो आप ही बताएँगे]

    जवाब देंहटाएं
  5. एक रेफरेंस सर्च कर रहा हूँ मिल नहीं रहा :(

    जवाब देंहटाएं
  6. आप टिप्पणी अवश्य करें, मेरा offline का समय हो गया, प्रत्युत्तर तो प्रातः ही दे पाउंगा।

    जवाब देंहटाएं
  7. ये बात लगभग सभी जगह सही सिद्द हो सकती है की काल सर्वेसर्वा है नास्त्रेदमस ने इतनी आश्चर्य जनक भविष्यवानियाँ की थी की कोई भी दाँतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर हो जाये यहाँ तक की उन्होंने यह भी बताया की उनकी मृत्यु कब होगी और उसके बाद उनकी कब्र को खोदा जायेगा आदि आदि {ज्योतिष जैसी महान विधाओं को अपनी बात में शामिल करना चाहूँगा }


    http://www.sacred-texts.com/nos/index.htm
    http://www.nostradamus101.com/

    जवाब देंहटाएं
  8. मानसिक परेशानी फल की इच्छा से उत्त्पन्न होती है [अक्सर दूसरे को मिले फल की इच्छा से :)) ] या कभी कभी साधन सम्पन्नता के अति आत्मविश्वास से .. ये बात सोचने की है की काल की गति को समझना मुश्किल है जिनके मित्र, सलाहकार स्वयं श्री कृष्ण थे वे स्वयं कितने वर्ष वन में भटके यहाँ तक की श्री कृष्ण ने भी सभी दुःख उठाये और समय आने पर ही प्रतिक्रिया दी

    जवाब देंहटाएं
  9. मैं एक बात समझ पाया हूँ की इस बात को भगवान् श्री कृष्ण ने सही तरीके से मिलाया था वे पहले ही अर्जुन से कहते हैं की सब कुछ पहले ही घटित चुका है , सभी महारथी काल कलवित हो चुके हैं लेकिन साथ ही अर्जुन को अपना कर्म करने को भी प्रेरित करते हैं ये सभी बातों का मिश्रण है और हमें गीता के रूप में उपलब्ध भी

    जवाब देंहटाएं
  10. इस युग में भी ये तो कहा ही गया है ना ...

    "हम सब रंगमच की कठपुलियाँ ही हैं जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है"

    मुझे लगता है....

    अभिनय शायद हमारे हाथ में हो ....

    वैसे भी कुंडली तो शरीर की होती है आत्मा की नहीं

    जवाब देंहटाएं
  11. सुज्ञ जी,

    आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा रहेगी :)

    जवाब देंहटाएं
  12. @"उनकी मृत्यु कब होगी और उसके बाद उनकी कब्र को खोदा जायेगा"
    @श्री कृष्ण थे वे स्वयं कितने वर्ष वन में भटके (वे यह भी जानते थे उनकी मृत्यु कैसे होगी, फ़िर भी जो नियत था हुआ)

    इन कथन में 'नियति' प्रमुख है,काल व अन्य समवाय गौण।

    जवाब देंहटाएं
  13. @'अर्जुन को अपना कर्म करने को भी प्रेरित करते हैं'

    वे जैसा कर्म वैसा ही फ़ल बताकर कर्म सिद्धांत को रेखांकित करते है।
    यहां कर्म को प्रमुखता देकर अन्य समवाय को गौण ले रहे है।

    जवाब देंहटाएं
  14. @इन कथन में 'नियति' प्रमुख है,काल व अन्य समवाय गौण

    सुज्ञ जी,

    काल से बड़ा कोई नहीं। यमराज भी उनके कहे अनुसार चलते हैं। उगना, खिलना, पकना, झरना काल के खेल हैं। प्राचीन मान्यता है कि स्वर्ग में न बुढ़ापा है और न ही मृत्यु। कठोपनिषद् के अनुसार स्वर्ग प्राप्ति का साधन अग्नि-विद्या है।

    http://vhv.org.in/story.aspx?aid=3140

    जवाब देंहटाएं
  15. गौरव जी,

    चार समवाय (काल,स्वभाव, नियति, कर्म) रुपी नाट्यज्ञान हमारे पास है। और पुरूषार्थ रुपी अभिनय हमारे हाथ।

    जवाब देंहटाएं
  16. @ जैसा कर्म वैसा ही फ़ल बताकर कर्म सिद्धांत को रेखांकित करते है।

    सुज्ञ जी,
    अगर इस लेख के सन्दर्भ में देखें तो कृष्ण ने गीता में सभी बातों को छुआ है ऐसा मेरा मानना है

    जवाब देंहटाएं
  17. सुज्ञ जी,

    "काल" और "नियति" में मुझे हमेशा से हल्का फुल्का कन्फ्यूजन रहा है

    आप जब भी आयें .. इस कन्फ्यूजन के "अँधेरे" को दूर करके मुझे भी ज्ञान का "प्रकाश" दीजियेगा

    और हाँ ये आपके लेख के दृष्टिकोण का विरोध नहीं है , वो हमेशा की तरह परफेक्ट ही है [जैसा मैंने पहली टिपण्णी में कहा है ]मैं अपने ही दृष्टिकोण को ही सुधारना या समझना चाहता हूँ आपके सहयोग से


    शुभरात्रि :)

    जवाब देंहटाएं
  18. @बहुत बढ़िया विश्लेषण...धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  19. @सुज्ञ जी

    ये बात तो ठीक है की इन पाँचों में से (काल,स्वभाव,नियति,कर्म,पुरुषार्थ)किसी एक को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता

    मेरी जिज्ञासाएं/कन्फ्यूजन शायद ये है

    01 ये कैसे पता चले की किस परिस्थिति में कौन [काल या नियति में से] कौन प्रभावी है कौन गौण ?
    जैसे चाहें तो "पांडवों के वन में भटकने" वाली बात को और एक उदाहरण अपनी ओर से भी दे सकते हैं [जैसे आपको सुविधा हो ]

    02 निर्दोष को भी सजा मिले तब कौन [काल या नियति में से] प्रभावी, कौन गौण होता है ??

    03 क्या ये संभव है की पाँचों (काल,स्वभाव,नियति,कर्म,पुरुषार्थ) में से कोई एक हमेशा प्रभावी ही रहता हो ??

    मैं आपको गुरु और मित्र मानते हुए ये जिज्ञासाएं रख रहा हूँ [जब आपकी सुविधा हो उत्तर दीजियेगा]

    जवाब देंहटाएं
  20. उम्दा लेख , अच्छा लगा ।

    जवाब देंहटाएं
  21. @अगर इस लेख के सन्दर्भ में देखें तो कृष्ण ने गीता में सभी बातों को छुआ है ऐसा मेरा मानना है.

    गौरव जी,

    श्रीमद्भगवदगीता में श्री कृष्ण नें इन पंच कारणो (समवाय) के समन्वय को ही निर्देशित किया है। लेकिन व्यख्याकारों नें अपनए अपने मंतव्य अनुसार किसी किसी को एकांत कारण बता दिया है।

    प्रस्तूत लेख धर्म-शास्त्रों से ग्रहित तत्वज्ञान ही है, मेरी स्थापना नहिं।

    जवाब देंहटाएं
  22. "काल" और "नियति" में मुझे हमेशा से हल्का फुल्का कन्फ्यूजन रहा है

    साधारण सा कन्फ्यूजन तो उक्त पांचो में होगा ही, हमारी मेघा की सीमाएं है। और विषय, गूढता का उद्घाटन। रहस्यों का प्रकटिकरण।

    काल: समय होने पर व्यक्ति बूढा होता है। जीर्ण होता है।
    नियति: समय पर या समय से पूर्व बुढापे के लक्षण आ जाना उसकी नियति थी।

    (उदाहरण परफेक्ट नहिं है,मात्र समझने के संकेत रूप है।)

    जवाब देंहटाएं
  23. अगर आप उदाहरण ने देते तो शायद सभी बातो को अच्छे से समझना मुश्किल हो जाता | इसलिए धन्यवाद | फिर भी मेरा विश्वास जितना कर्म और पुरुषार्थ पर है उतना भाग्य पर नहीं है | क्योकि लगता है जब हम भाग्य पर ज्यादा भरोसा करते है तो कर्म और पुरुषार्थ को करने में थोड़े ढीले हो जाते है और काम के सफल ना होने पर भाग्य को दोष देने लगते है | और समय तथा वस्तु का स्वभाव तो अपना महत्व रखते ही है |

    जवाब देंहटाएं
  24. विभिन्‍न वाद की संक्षिप्‍त जानकारी अच्‍छी लगी। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  25. @"मेरा विश्वास जितना कर्म और पुरुषार्थ पर है उतना भाग्य पर नहीं है|"

    अन्शुमाला जी,

    वस्तुतः इन पांच कारण ही ज्ञेय (जानने योग्य)है, कर्म व पुरुषार्थ बस
    उपादेय (अर्थार्त व्यवहार में लाने योग्य) है। बात महत्व देने की नहिं, कर्म(कृतकर्म नहिं) और पुरुषार्थ ही हमारे हाथ है अत: हमें उसे अच्छा करने पर ध्यान देना उचित है।

    समय और स्वभाव के अस्तित्व से आप सहमत है, उसी तरह ही भाग्य के अस्तित्व को मानना है,उसके भरोसे बैठे रहने से कोई लाभ नहिं, होनहार जब जैसा होगा होता रहेगा, मुझे उससे क्या? बस कभी कभी किस्मत के संयोग आते है तो आयेगें, उल्टे होंगे तो होंगे। बस यही अभिप्राय होता है।

    जवाब देंहटाएं
  26. गौरव जी,

    ऐसे विज्ञ प्रश्न वास्तव में विषय को और भी स्पष्ठ करने में सहायक होते है, आप स्वयं सुविज्ञ है, मेरा कार्य सरल ही कर रहे है। आभार आपका।

    ॰ 01 ये कैसे पता चले की किस परिस्थिति में कौन [काल या नियति में से] कौन प्रभावी है कौन गौण?

    =काल या नियति में प्रभावी (मुखयतः) कौन रहा, यह सम्भवतया घटना घटित होने के बाद ही निर्धारित कर पाएं, कभी कभी तो निर्धारण हमारे लिये पहेली ही बन जाता है, लेकिन पांचो कारणों का समन्वय निश्चित है। जैसे एक कम उम्र बच्चे को विरासत में अकूत धन मिला, अब यहां काल नहिं नियति ही प्रभावी है। क्योंकि यह उसके धनार्जन का समय नहिं है। अतः उसका भाग्य ही काम कर गया। काल से यहां प्रकृति के कालिक नियमों को लेना चाहिए, जैसे बच्चों का समय पर गर्भाधान योग्य बनना, 9 माह का गर्भकाल आदि।

    ॰02 निर्दोष को भी सजा मिले तब कौन [काल या नियति में से] प्रभावी, कौन गौण होता है ??

    =निर्दोष को सजा, यहां काल प्रमुख नहिं अन्तिम हो सकता है, यहां नियति भी मुख्य नहिं। बल्कि कर्म ही प्रमुख होना चाहिए। किसी पूर्वकृत कर्म के प्रभाव से यह दुख झेलना था। यहां कर्म प्रभावी है।

    ॰03 क्या ये संभव है की पाँचों (काल,स्वभाव,नियति,कर्म,पुरुषार्थ) में से कोई एक हमेशा प्रभावी ही रहता हो ??

    =यदि पाँचों में से एक सदैव प्रभावी होता तो उसी एक को ही सदा कारण माना जाता। अन्य चार का उल्लेख भी न होता। यह सम्भव है कि पाँचों कारण समान रूप से भी प्रभावी हो।
    मैं गुरू नहिं, मित्र हूँ। अपने ज्ञानावरण के क्षयोपशम से उत्तर दे रहा हूँ, तथ्य सर्वज्ञ गम्य!!

    जवाब देंहटाएं
  27. अभी तो पोस्ट पढकर ही जा रहे हैं. समय की कमी है. किसी अत्यावश्यक कार्य से जाना पड रहा है.आप ज्ञान चर्चा को जारी रखिएगा. समय मिलते ही आते हैं, ताकि हम भी इस ज्ञान गंगा में एक आध डुबकी तो लगा ही लें.

    जवाब देंहटाएं
  28. @ सुज्ञ जी
    समय की कमी से चर्चा को आगे नहीं बढ़ा पा रहा हूँ लेकिन एक बात कहूँगा अर्जुन जब तक कृष्ण को सखा भाव से देखते हैं तब तक पूरा ज्ञान नहीं हो पाता लेकिन गुरु मान लेने पर ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं ..... हो सकता है इस बारे में भी विद्वानों में मतभेद हो लेकिन ये बात तो लोजिकली भी समझ में आती है

    जवाब देंहटाएं
  29. पंडित जी,

    आपकी उपस्थिति की सदैव प्रतिक्षा रहती है,विद्वजन बिन सभा सूनी ही होती है। इस तात्विक चर्चा में ज्ञानार्पण कर कृतार्थ करें।

    जवाब देंहटाएं
  30. पांचो कारणों के समन्वय से ही कार्य निष्पन्न होता है, बिना काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरूषार्थ के कोई कार्य सम्भव नहिं होता। किसी एक कारण का भी निषेध करने से कथन असत्य हो जाता है

    बहुत सटीक विष्लेषण। सत्य के छोटे-छोटे अंश मिलाने पर ही बडा सत्य दिखाई देता है।

    जवाब देंहटाएं
  31. उम्दा लेख , अच्छा लगा
    THANKYOU VERY MUCH

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...