tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post6699074850541087094..comments2023-10-21T14:43:56.493+05:30Comments on सुज्ञ: पंच समवाय - कारणवाद. घटना पांच कारणो का समन्वय!सुज्ञhttp://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comBlogger36125tag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-56955898504026218192013-03-07T17:32:46.443+05:302013-03-07T17:32:46.443+05:30उम्दा लेख , अच्छा लगा
THANKYOU VERY MUCHउम्दा लेख , अच्छा लगा <br />THANKYOU VERY MUCHAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/13151729946327824990noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-72303980170489280032010-11-24T05:23:00.437+05:302010-11-24T05:23:00.437+05:30पांचो कारणों के समन्वय से ही कार्य निष्पन्न होता ह...<b>पांचो कारणों के समन्वय से ही कार्य निष्पन्न होता है, बिना काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरूषार्थ के कोई कार्य सम्भव नहिं होता। किसी एक कारण का भी निषेध करने से कथन असत्य हो जाता है</b><br /><br />बहुत सटीक विष्लेषण। <a href="http://pittpat.blogspot.com/2010/01/blog-post_12.html" rel="nofollow">सत्य के छोटे-छोटे अंश</a> मिलाने पर ही बडा सत्य दिखाई देता है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-29074719719137819132010-11-13T10:40:29.094+05:302010-11-13T10:40:29.094+05:30पंडित जी,
आपकी उपस्थिति की सदैव प्रतिक्षा रहती है...पंडित जी,<br /><br />आपकी उपस्थिति की सदैव प्रतिक्षा रहती है,विद्वजन बिन सभा सूनी ही होती है। इस तात्विक चर्चा में ज्ञानार्पण कर कृतार्थ करें।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-86971949632866569242010-11-13T07:31:17.054+05:302010-11-13T07:31:17.054+05:30@ सुज्ञ जी
समय की कमी से चर्चा को आगे नहीं बढ़ा पा ...@ सुज्ञ जी<br />समय की कमी से चर्चा को आगे नहीं बढ़ा पा रहा हूँ लेकिन एक बात कहूँगा अर्जुन जब तक कृष्ण को सखा भाव से देखते हैं तब तक पूरा ज्ञान नहीं हो पाता लेकिन गुरु मान लेने पर ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं ..... हो सकता है इस बारे में भी विद्वानों में मतभेद हो लेकिन ये बात तो लोजिकली भी समझ में आती हैएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-20986736603357287052010-11-12T21:18:50.824+05:302010-11-12T21:18:50.824+05:30अभी तो पोस्ट पढकर ही जा रहे हैं. समय की कमी है. कि...अभी तो पोस्ट पढकर ही जा रहे हैं. समय की कमी है. किसी अत्यावश्यक कार्य से जाना पड रहा है.आप ज्ञान चर्चा को जारी रखिएगा. समय मिलते ही आते हैं, ताकि हम भी इस ज्ञान गंगा में एक आध डुबकी तो लगा ही लें.Pt. D.K. Sharma "Vatsa"https://www.blogger.com/profile/05459197901771493896noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-37154587918577489702010-11-12T15:39:18.468+05:302010-11-12T15:39:18.468+05:30गौरव जी,
ऐसे विज्ञ प्रश्न वास्तव में विषय को और भ...गौरव जी,<br /><br />ऐसे विज्ञ प्रश्न वास्तव में विषय को और भी स्पष्ठ करने में सहायक होते है, आप स्वयं सुविज्ञ है, मेरा कार्य सरल ही कर रहे है। आभार आपका।<br /><br />॰ 01 ये कैसे पता चले की किस परिस्थिति में कौन [काल या नियति में से] कौन प्रभावी है कौन गौण?<br /><br />=काल या नियति में प्रभावी (मुखयतः) कौन रहा, यह सम्भवतया घटना घटित होने के बाद ही निर्धारित कर पाएं, कभी कभी तो निर्धारण हमारे लिये पहेली ही बन जाता है, लेकिन पांचो कारणों का समन्वय निश्चित है। जैसे एक कम उम्र बच्चे को विरासत में अकूत धन मिला, अब यहां काल नहिं नियति ही प्रभावी है। क्योंकि यह उसके धनार्जन का समय नहिं है। अतः उसका भाग्य ही काम कर गया। काल से यहां प्रकृति के कालिक नियमों को लेना चाहिए, जैसे बच्चों का समय पर गर्भाधान योग्य बनना, 9 माह का गर्भकाल आदि। <br /><br />॰02 निर्दोष को भी सजा मिले तब कौन [काल या नियति में से] प्रभावी, कौन गौण होता है ??<br /><br />=निर्दोष को सजा, यहां काल प्रमुख नहिं अन्तिम हो सकता है, यहां नियति भी मुख्य नहिं। बल्कि कर्म ही प्रमुख होना चाहिए। किसी पूर्वकृत कर्म के प्रभाव से यह दुख झेलना था। यहां कर्म प्रभावी है।<br /><br />॰03 क्या ये संभव है की पाँचों (काल,स्वभाव,नियति,कर्म,पुरुषार्थ) में से कोई एक हमेशा प्रभावी ही रहता हो ??<br /><br />=यदि पाँचों में से एक सदैव प्रभावी होता तो उसी एक को ही सदा कारण माना जाता। अन्य चार का उल्लेख भी न होता। यह सम्भव है कि पाँचों कारण समान रूप से भी प्रभावी हो।<br />मैं गुरू नहिं, मित्र हूँ। अपने ज्ञानावरण के क्षयोपशम से उत्तर दे रहा हूँ, तथ्य सर्वज्ञ गम्य!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-1003165354975646532010-11-12T13:09:37.855+05:302010-11-12T13:09:37.855+05:30@"मेरा विश्वास जितना कर्म और पुरुषार्थ पर है ...@"मेरा विश्वास जितना कर्म और पुरुषार्थ पर है उतना भाग्य पर नहीं है|"<br /><br />अन्शुमाला जी,<br /><br />वस्तुतः इन पांच कारण ही ज्ञेय (जानने योग्य)है, कर्म व पुरुषार्थ बस<br />उपादेय (अर्थार्त व्यवहार में लाने योग्य) है। बात महत्व देने की नहिं, कर्म(कृतकर्म नहिं) और पुरुषार्थ ही हमारे हाथ है अत: हमें उसे अच्छा करने पर ध्यान देना उचित है।<br /><br />समय और स्वभाव के अस्तित्व से आप सहमत है, उसी तरह ही भाग्य के अस्तित्व को मानना है,उसके भरोसे बैठे रहने से कोई लाभ नहिं, होनहार जब जैसा होगा होता रहेगा, मुझे उससे क्या? बस कभी कभी किस्मत के संयोग आते है तो आयेगें, उल्टे होंगे तो होंगे। बस यही अभिप्राय होता है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-5083417593277581782010-11-12T11:22:10.856+05:302010-11-12T11:22:10.856+05:30विभिन्न वाद की संक्षिप्त जानकारी अच्छी लगी। आभा...विभिन्न वाद की संक्षिप्त जानकारी अच्छी लगी। आभार।Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-49754557925559241192010-11-12T11:19:11.328+05:302010-11-12T11:19:11.328+05:30अगर आप उदाहरण ने देते तो शायद सभी बातो को अच्छे से...अगर आप उदाहरण ने देते तो शायद सभी बातो को अच्छे से समझना मुश्किल हो जाता | इसलिए धन्यवाद | फिर भी मेरा विश्वास जितना कर्म और पुरुषार्थ पर है उतना भाग्य पर नहीं है | क्योकि लगता है जब हम भाग्य पर ज्यादा भरोसा करते है तो कर्म और पुरुषार्थ को करने में थोड़े ढीले हो जाते है और काम के सफल ना होने पर भाग्य को दोष देने लगते है | और समय तथा वस्तु का स्वभाव तो अपना महत्व रखते ही है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-82339862454451251182010-11-12T10:36:35.916+05:302010-11-12T10:36:35.916+05:30"काल" और "नियति" में मुझे हमेश..."काल" और "नियति" में मुझे हमेशा से हल्का फुल्का कन्फ्यूजन रहा है <br /><br />साधारण सा कन्फ्यूजन तो उक्त पांचो में होगा ही, हमारी मेघा की सीमाएं है। और विषय, गूढता का उद्घाटन। रहस्यों का प्रकटिकरण।<br /><br />काल: समय होने पर व्यक्ति बूढा होता है। जीर्ण होता है।<br />नियति: समय पर या समय से पूर्व बुढापे के लक्षण आ जाना उसकी नियति थी।<br /><br />(उदाहरण परफेक्ट नहिं है,मात्र समझने के संकेत रूप है।)सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-83115450343483214762010-11-12T10:16:47.133+05:302010-11-12T10:16:47.133+05:30@अगर इस लेख के सन्दर्भ में देखें तो कृष्ण ने गीता ...@अगर इस लेख के सन्दर्भ में देखें तो कृष्ण ने गीता में सभी बातों को छुआ है ऐसा मेरा मानना है.<br /><br />गौरव जी,<br /><br />श्रीमद्भगवदगीता में श्री कृष्ण नें इन पंच कारणो (समवाय) के समन्वय को ही निर्देशित किया है। लेकिन व्यख्याकारों नें अपनए अपने मंतव्य अनुसार किसी किसी को एकांत कारण बता दिया है।<br /><br />प्रस्तूत लेख धर्म-शास्त्रों से ग्रहित तत्वज्ञान ही है, मेरी स्थापना नहिं।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-36894567285845240682010-11-12T00:18:10.852+05:302010-11-12T00:18:10.852+05:30उम्दा लेख , अच्छा लगा ।उम्दा लेख , अच्छा लगा ।palashhttps://www.blogger.com/profile/09020412180834601052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-43150486770096898792010-11-11T22:01:36.956+05:302010-11-11T22:01:36.956+05:30@सुज्ञ जी
ये बात तो ठीक है की इन पाँचों में से (...@सुज्ञ जी <br /><br />ये बात तो ठीक है की इन पाँचों में से (काल,स्वभाव,नियति,कर्म,पुरुषार्थ)किसी एक को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता <br /><br />मेरी जिज्ञासाएं/कन्फ्यूजन शायद ये है<br /><br />01 ये कैसे पता चले की किस परिस्थिति में कौन [काल या नियति में से] कौन प्रभावी है कौन गौण ?<br />जैसे चाहें तो "पांडवों के वन में भटकने" वाली बात को और एक उदाहरण अपनी ओर से भी दे सकते हैं [जैसे आपको सुविधा हो ]<br /><br />02 निर्दोष को भी सजा मिले तब कौन [काल या नियति में से] प्रभावी, कौन गौण होता है ??<br /><br />03 क्या ये संभव है की पाँचों (काल,स्वभाव,नियति,कर्म,पुरुषार्थ) में से कोई एक हमेशा प्रभावी ही रहता हो ??<br /><br />मैं आपको गुरु और मित्र मानते हुए ये जिज्ञासाएं रख रहा हूँ [जब आपकी सुविधा हो उत्तर दीजियेगा]एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-31882657970244624722010-11-11T21:08:36.196+05:302010-11-11T21:08:36.196+05:30@बहुत बढ़िया विश्लेषण...धन्यवाद...@बहुत बढ़िया विश्लेषण...धन्यवाद...भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-53567954819667051282010-11-11T21:02:05.664+05:302010-11-11T21:02:05.664+05:30सुज्ञ जी,
"काल" और "नियति" मे...सुज्ञ जी,<br /><br />"काल" और "नियति" में मुझे हमेशा से हल्का फुल्का कन्फ्यूजन रहा है <br /><br />आप जब भी आयें .. इस कन्फ्यूजन के "अँधेरे" को दूर करके मुझे भी ज्ञान का "प्रकाश" दीजियेगा<br /><br />और हाँ ये आपके लेख के दृष्टिकोण का विरोध नहीं है , वो हमेशा की तरह परफेक्ट ही है [जैसा मैंने पहली टिपण्णी में कहा है ]मैं अपने ही दृष्टिकोण को ही सुधारना या समझना चाहता हूँ आपके सहयोग से <br /><br /><br />शुभरात्रि :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-22038245254198026452010-11-11T20:48:29.335+05:302010-11-11T20:48:29.335+05:30शेष कल, आभारशेष कल, आभारसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-34211211093599782862010-11-11T20:47:33.495+05:302010-11-11T20:47:33.495+05:30@ जैसा कर्म वैसा ही फ़ल बताकर कर्म सिद्धांत को रेख...@ जैसा कर्म वैसा ही फ़ल बताकर कर्म सिद्धांत को रेखांकित करते है।<br /><br />सुज्ञ जी,<br />अगर इस लेख के सन्दर्भ में देखें तो कृष्ण ने गीता में सभी बातों को छुआ है ऐसा मेरा मानना हैएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-18246597002537733472010-11-11T20:46:38.769+05:302010-11-11T20:46:38.769+05:30गौरव जी,
चार समवाय (काल,स्वभाव, नियति, कर्म) रुपी...गौरव जी,<br /><br />चार समवाय (काल,स्वभाव, नियति, कर्म) रुपी नाट्यज्ञान हमारे पास है। और पुरूषार्थ रुपी अभिनय हमारे हाथ।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-11190878368223697882010-11-11T20:44:07.455+05:302010-11-11T20:44:07.455+05:30@इन कथन में 'नियति' प्रमुख है,काल व अन्य स...@इन कथन में 'नियति' प्रमुख है,काल व अन्य समवाय गौण<br /><br />सुज्ञ जी,<br /><br />काल से बड़ा कोई नहीं। यमराज भी उनके कहे अनुसार चलते हैं। उगना, खिलना, पकना, झरना काल के खेल हैं। प्राचीन मान्यता है कि स्वर्ग में न बुढ़ापा है और न ही मृत्यु। कठोपनिषद् के अनुसार स्वर्ग प्राप्ति का साधन अग्नि-विद्या है। <br /><br />http://vhv.org.in/story.aspx?aid=3140एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-21854235171025658732010-11-11T20:41:26.801+05:302010-11-11T20:41:26.801+05:30@'अर्जुन को अपना कर्म करने को भी प्रेरित करते ...@'अर्जुन को अपना कर्म करने को भी प्रेरित करते हैं'<br /><br />वे जैसा कर्म वैसा ही फ़ल बताकर कर्म सिद्धांत को रेखांकित करते है।<br />यहां कर्म को प्रमुखता देकर अन्य समवाय को गौण ले रहे है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-67219372653179151972010-11-11T20:37:36.117+05:302010-11-11T20:37:36.117+05:30@"उनकी मृत्यु कब होगी और उसके बाद उनकी कब्र क...@"उनकी मृत्यु कब होगी और उसके बाद उनकी कब्र को खोदा जायेगा"<br />@श्री कृष्ण थे वे स्वयं कितने वर्ष वन में भटके (वे यह भी जानते थे उनकी मृत्यु कैसे होगी, फ़िर भी जो नियत था हुआ)<br /><br />इन कथन में 'नियति' प्रमुख है,काल व अन्य समवाय गौण।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-54149095032188753962010-11-11T20:35:10.349+05:302010-11-11T20:35:10.349+05:30सुज्ञ जी,
आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा रहेगी :...सुज्ञ जी, <br /><br />आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा रहेगी :)एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-52271713091323503562010-11-11T20:31:54.254+05:302010-11-11T20:31:54.254+05:30इस युग में भी ये तो कहा ही गया है ना ...
"हम...इस युग में भी ये तो कहा ही गया है ना ...<br /><br />"हम सब रंगमच की कठपुलियाँ ही हैं जिसकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है" <br /><br />मुझे लगता है.... <br /><br />अभिनय शायद हमारे हाथ में हो .... <br /><br /><b>वैसे भी कुंडली तो शरीर की होती है आत्मा की नहीं </b>एक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-66843932029635651962010-11-11T20:28:48.121+05:302010-11-11T20:28:48.121+05:30मैं एक बात समझ पाया हूँ की इस बात को भगवान् श्री क...मैं एक बात समझ पाया हूँ की इस बात को भगवान् श्री कृष्ण ने सही तरीके से मिलाया था वे पहले ही अर्जुन से कहते हैं की सब कुछ पहले ही घटित चुका है , सभी महारथी काल कलवित हो चुके हैं लेकिन साथ ही अर्जुन को अपना कर्म करने को भी प्रेरित करते हैं ये सभी बातों का मिश्रण है और हमें गीता के रूप में उपलब्ध भीएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7546054676355588576.post-26835846142150079312010-11-11T20:28:03.231+05:302010-11-11T20:28:03.231+05:30मानसिक परेशानी फल की इच्छा से उत्त्पन्न होती है [अ...मानसिक परेशानी फल की इच्छा से उत्त्पन्न होती है [अक्सर दूसरे को मिले फल की इच्छा से :)) ] या कभी कभी साधन सम्पन्नता के अति आत्मविश्वास से .. ये बात सोचने की है की काल की गति को समझना मुश्किल है जिनके मित्र, सलाहकार स्वयं श्री कृष्ण थे वे स्वयं कितने वर्ष वन में भटके यहाँ तक की श्री कृष्ण ने भी सभी दुःख उठाये और समय आने पर ही प्रतिक्रिया दीएक बेहद साधारण पाठकhttps://www.blogger.com/profile/14658675333407980521noreply@blogger.com