जो सोते है उनकी किस्मत भी सोती है
श्रम से ही तो कल्पना साकार होती है
बंद कर बैठे रहे जो सारी खिड़कियां
भरी दोपहर उन घरो में रात होती है
रोशनी मांगने से उधार नहीं मिलती।
बैठे रहने से जीत या हार नहीं मिलती।
असफलताओ से निराश क्या होना?
पतझड के आए बिन बहार नहीं खिलती।
सपनो में खोना, छूना परछाई होता है।
पुरूषार्थ भरा जीवन ही सच्चाई होता है।
सोते हुओं की नाप लो तुम मात्र लम्बाई,
जगे हुओं का नाप सदैव उँचाई होता है॥
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पुरुषार्थ करना ही मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिये.. सत्य
जवाब देंहटाएंलंबाई और उंचाई शब्द का बढि़या प्रयोग.
जवाब देंहटाएंलहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
जवाब देंहटाएंहिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।
नन्ही चींटी जब दाना ले के चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साह्स भरता है,
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढना, न अखरता है,
आख़िर उसकी महनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
डुबकियां सिन्धु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर, खाली हाथ लौट आता है,
मिलते न सहज ही मोती पानी में,
बहता दूना उत्साह हैरानी में,
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो, नींद चैन की त्यागो तुम,
संघर्षों का मैदान, छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किए बिना ही जय जय कार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।
सावधानियां :
जवाब देंहटाएंशास्त्र विरुद्द पुरुषार्थ ना करें [अक्सर लोग यही करते हैं ]
एक अच्छी बात :
विद्वानों का मानना है
प्रारब्ध (पूर्व जन्म के कर्मों का फल) तो भोगना ही पड़ता है, लेकिन पुरुषार्थ से उसकी तीव्रता को कम किया जा सकता है
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर,विषयनुकूल
बच्च्न जी का यह सर्वाधिक प्रेरणादायक काव्य है।
जो वाकई चमत्कारी रूप से प्रभावित करता है।
शास्त्र विरुद्ध पुरुषार्थ कैसे परिभाषित किया जाय?
रोशनी मांगने से उधार नहीं मिलती।
जवाब देंहटाएंबैठे रहने से जीत या हार नहीं मिलती।
असफलताओ से निराश क्या होना?
पतझड के आए बिन बहार नहीं खिलती।
इसी उम्मीद में जिए जा रहे हैं , अच्छी व प्रेरणादयी कविता लगी , आभार ।
एक बार फिर प्रेरणादायक संदेश,
जवाब देंहटाएंअसफलताओ से निराश क्या होना?
पतझड के आए बिन बहार नहीं खिलती।
पुरूषार्थ ही सर्वोपरी है।
पुरुषार्थ का अर्थ, पुरुषों को समझाते तो अच्छा रहता भाई जी ....
जवाब देंहटाएंसतीश जी,
जवाब देंहटाएंभेद चेक कर रहे है, पुरूषों और पर-पुरूषों में………;))
सही कहा आप ने, कर्म पर भरोसा करने वाले ही जीवन में सब कुछ पाते है |
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं। पुरूषार्थ ही कालक्रम में चलकर प्रारब्ध बनता है।
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