31 जुलाई 2014

रोटी का रहस्य


एक धनी परिवार की कन्या तारा का विवाह , एक सुयोग्य परिवार मे होता है , लड़का पढ़ा लिखा और अति सुन्दर लेकिन बेरोजगार था। परिवार की आर्थिक स्थति बहुत ही अच्छी थी जिसके कारण उसके माता -पिता उसे किसी भी कार्य करने के लिये नहीं कहते थे और कहते थे कि बेटा जिगर , तू हमारी इकलौती संतान है ,तेरे लिये तो हमने खूब सारा धन दौलत जोड़ दिया है और हम कमा रहे है, तू तो बस मजे ले । इस बात को सुनकर तारा बेहद चिंतित रहती मगर किसी से अपनी मन की व्यथा कह नहीं पाती ।

एक दिन एक महात्मा जो छ:माह मे फेरी लगाते थे उस घर पर पहुँच गये और बोले । माई एक रोटी की आस है तारा रोटी ले कर महात्मा फ़क़ीर को देने चल पड़ी ,सास भी दरबाजे पर ही खडी थी । महात्मा ने लड़की से कहा बेटी रोटी ताजा है या वासी तारा ने जबाब दिया कि महाराज रोटी बासी है। सास बही खडी सुन रही थी और उसने कहा हरामखोर, तुझे ताजी रोटी भी बासी दिखाई पड़ रही है । महात्मा चुप चाप घर से मुख मोड़ कर चल पड़ा और तारा से बोल़ा कि बेटी मे उस दिन वापस आऊंगा जब रोटी ताजा होगी । समय व्यतीत होता गया और तारा के पति को कुछ समय बाद रोजगार मिल गया। अब तारा बहुत खुश रहने लगी ।

कुछ दिन बाद महात्मा जी वापस फेरी लगाने आये और तारा के ससुराल जाकर रोटी मांगने लगे, महात्मा के लिये तारा रोटी लाती है । महात्मा जी का फिर बही सबाल था, बेटी रोटी ताजा है या बासी तारा ने जबाब दिया की महात्मा जी रोटी एक दम ताजी है,महात्मा ने रोटी ले ली और लड़की को खुशी से बहुत आशीर्वाद दिया। सास दरबाजे पर खडी सुन रही थी और बोली की हरामखोर, उस दिन तो रोटी बासी थी और आज ताजा वाह ! बहुत बढ़िया !

संत रुके और बोले अरी पगली ! तू क्या जाने, तू तो अज्ञानी है, तेरी बहू वास्तव मे बहुत होशियार है जब मे पहले आया था तो इसने रोटी को बासी बताया था क्योकि यह तुम्हारे जोड़े और कमाये धन से गुजारा कर रहे थे जो इनके लिये बासी था । मगर अब तेरा बेटा रोजगार पर लग गया है और अपनी कमाई का ताजा धन लाता है इसलिये तेरी बहू ने पहले बासी और अब ताजी रोटी बताई । माँ बाप का जुड़ा धन किसी ओखे- झोके के लिये होता है जो बासी होता है , काम तो अपने द्वारा कमाये ताजा धन से ही चलता है । सास महात्मा के पैरों मे गिर पड़ी और उसको ताजी - बासी का ज्ञान व अपनी बहू पर गर्व हुआ इसलिये मानव को हमेशा जुडे धन पर आश्रित नहीं रहना चाहिये वल्कि सदैव ताजे धन की ओर ललायित रहना चाहिये ,अगर हम जुडे धन पर ही आश्रित रहेंगे तो वो भी एक दिन खत्म हो जायेगा इसलिये हमे ताजा धन की आस करके सदैव प्रगति पथ पर निरंतर प्रवाह करना चाहिये ।

26 जुलाई 2014

मातृ-भक्ति की शक्ति


किसी समय चीन देश में होलीन नाम का एक नौजवान रहता था। वह अपनी मां का परमभक्त था। बूढ़ी मां की सेवा-चाकरी बड़े भक्ति-भाव से किया करता था। मां को किस समय, किस चीज की जरुरत पड़ेगी, इसका वह पूरा ख्याल रखता था।

एक बार हो-लीन के घर में एक चोर घुसा। जिस कमरे में हो-लीन सोचा था, उस कमरे में चोर के घुसते ही हो-लीन की नीद खुल गई। लेकिन चोर ताकतवर था। उसने हो-लीन को एक खम्बे से कसकर बांध दिया।

पास ही के कमरे में मां सोई थी। इस सारे झमेले में कहीं मां की नींद न खुल जाय, इस ख्याल से हो-लीन चुप ही रहा।

चोर ने उस कमरे में पड़ी एक पेटी खोली औरवह उसमें में सामान निकालने लगा। उसने हो-लीन का रेशमी कोट निकाला और एक चादर बिछाकर उस पर रख दिया। इस तरह वह एक के बाद एक सामान निकालता और रखता गया। हो-लीन सबकुछ चुपचाप देखता रहा।

इस बीच चोर ने पेटी में से ताम्बे काएक तसला बाहर निकला। उसे देखकर हो-लीन का गला भर आया और उसने कहा, "भाईसाहब, मेहरबानी करके यह तसला यहीं रहने दीजिये। मुझे सुबह ही अपनी मां के लिए पतला दलिया बनाना होगा और मां को देना होगा। तसला न रहा तो बूढ़ी मां को दलिए के बिना रह जाना पड़ेगा।

यह सुनते ही चोर के हाथ से तसला छूट गया। उसने भर्राई हुई आवाज में कहा, "मेरे प्यारे मित्र, तसला ही नही, बल्कि तेरा सारा सामान मैं यहीं छोड़े जा रहा हूं। तेरे जैसे मातृ-भक्त के घर से मैं तनिक-सी भी कोई चीज ले जाऊंगा तो मेरा सत्यानाश हो जायगा। तेरे घर की कोई चीज मुझे हजम नहीं होगी।"

यों कहकर और हो-लीन को बन्धन से मुक्त करके वह चोर धीमे पैरों वहां से चला गया।

सम्वेदनाएं प्रत्येक आत्मा को छूती अवश्य है, कुछ मूढ़ और जड उसकी आवाज को अनसुना कर दे्ते है तो कुछ को छू जाती है।

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