9 जनवरी 2013

मायावी ज्ञान

एक गांव में सप्ताह के एक दिन प्रवचन का आयोजन होता था। इसकी व्यवस्था गांव के कुछ प्रबुद्ध लोगों ने करवाई थी ताकि भोले-भाले ग्रामीणों को धर्म का कुछ ज्ञान हो सके। इसके लिए एक दिन एक ज्ञानी पुरुष को बुलाया गया। गांव वाले समय से पहुंच गए। ज्ञानी पुरुष ने पूछा - क्या आपको मालूम है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? गांव वालों ने कहा - नहीं तो...। ज्ञानी पुरुष गुस्से में भरकर बोले - जब आपको पता ही नहीं कि मैं क्या कहने जा रहा हूं तो फिर क्या कहूं। वह नाराज होकर चले गए।

गांव के सरपंच उनके पास दौड़े हुए पहुंचे और क्षमायाचना करके कहा कि गांव के लोग तो अनपढ़ हैं, वे क्या जानें कि क्या बोलना है। किसी तरह उन्होंने ज्ञानी पुरुष को फिर आने के लिए मना लिया। अगले दिन आकर उन्होंने फिर वही सवाल किया -क्या आपको पता है कि मैं क्या कहने जा रहा हूं? इस बार गांव वाले सतर्क थे। उन्होंने छूटते ही कहा - हां, हमें पता है कि आप क्या कहेंगे। ज्ञानी पुरुष भड़क गए। उन्होंने कहा -जब आपको पता ही है कि मैं क्या कहने वाला हूं तो इसका अर्थ हुआ कि आप सब मुझसे ज्यादा ज्ञानी हैं। फिर मेरी क्या आवश्यकता है? यह कहकर वह चल पड़े।

गांव वाले दुविधा में पड़ गए कि आखिर उस सज्जन से किस तरह पेश आएं, क्या कहें। उन्हें फिर समझा-बुझाकर लाया गया। इस बार जब उन्होंने वही सवाल किया तो गांव वाले उठकर जाने लगे। ज्ञानी पुरुष ने क्रोध में कहा - अरे, मैं कुछ कहने आया हूं तो आप लोग जा रहे हैं। इस पर कुछ गांव वालों ने हाथ जोड़कर कहा - देखिए, आप परम ज्ञानी हैं। हम गांव वाले मूढ़ और अज्ञानी हैं। हमें आपकी बातें समझ में नहीं आतीं। कृपया अपने अनमोल वचन हम पर व्यर्थ न करें। ज्ञानी पुरुष अकेले खड़े रह गए। उनका घमंड चूर-चूर हो गया।

1 जनवरी 2013

फ़ास्ट ट्रैक न्यायपीठों के गठन की माँग को लेकर जनहित याचिका का समर्थन


आज नैतिक जीवन-मूल्यों की प्रतिस्थापना बेहद जरूरी हो गई है। सम्पूर्ण समाज में चरित्र, संयम व सदाचारों के प्रति अटल निष्ठा और पूर्ण आस्था आवश्यक है। ऐसे श्रेष्ठ नैतिक जीवन मूल्यों के पोषण के लिए, जिस तरह उत्कृष्ट चरित्र का महिमा वर्धन आवश्यक है उसी तरह निकृष्ट कर्मों के प्रति निरूत्साह के लिए दुष्कृत्यों की घृणा निंदा भी नितांत ही आवश्यक है। पापभीरूता के बिना दुष्कृत्यों के प्रति पूर्ण अरूचि नहीं होती। त्वरित न्याय व्यवस्था, समाज में दुष्कर्मों के प्रति भय सर्जन का प्रमुख अंग है। इस प्रकार कठोर दंड, भय और बदनामी के साथ साथ सामान्य जन को विकारों और दुष्कर्मों से सजग व सावधान भी रखता है।

मेरा लोकतंत्र के सभी स्तम्भों से अनुरोध है कि प्रथम दृष्टि सिद्ध बलात्कार मामलों के त्वरित निष्पादन हेतु, फ़ास्ट ट्रैक न्यायपीठों का शीघ्रातिशीघ्र गठन हो. यह उपाय समाज में व्याप्त इस दूषण को काफी हद तक दूर करने में सहायक सिद्ध होगा. अंततः हिंसा व अपराध मुक्त समाज ही तो हमारा ध्येय है।

श्री गिरिजेश राव द्वारा, ‘फ़ास्ट ट्रैक न्यायपीठों की स्थापना’ को लेकर प्रस्तावित जनहित याचिका का मैं भी पूरजोर समर्थन करता हूँ।

आप भी भारी संख्या मेँ समर्थन कर इस ज्वलंत आवश्यक्ता को बल प्रदान करिए.........

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