सेवा और समर्पण का कोई दाम नहीं है।
मानव तन होने से कोई इन्सान नहीं है।
नाम प्रतिष्ठा की चाहत छोडो यारों,
बड़बोलो का यहां अब काम नहीं है।
***
बिना काम के यहाँ बस नाम चाहिए।
सेवा के बदले भी यहाँ इनाम चाहिए।
श्रम उठाकर भेजा यहाँ कौन खपाए?
मुफ़्त में ही सभी को दाम चाहिए॥
***
आलोक सूर्य का देखो, पर जलन को मत भूलो।
चन्द्र पूनम का देखो, पर ग्रहण को मत भूलो।
किसी आलोचना पर होता तुम्हे खेद क्योंकर,
दाग सदा उजले पर लगे, इस चलन को मत भूलो॥***
क्या बात हे जी बहुत सच सच लिख रहे हे आज कल , राम राम
जवाब देंहटाएंदाग, शुभंकर और छींटें सुंदर भी होते हैं.
जवाब देंहटाएंकविताओं के ज़रिये अच्छा व्यंग
जवाब देंहटाएंलग रहा है आपने आसपास के लोगों का चरित्र पढ़ रहे हैं ! आखिरी लाइने हमेशा याद रहेंगी आजके समय में यही सत्य है !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
सुज्ञ जी, आज तो अंदाज ही निराले है।
जवाब देंहटाएंश्रम उठाकर भेजा यहाँ कौन खपाए?
मुफ़्त में ही सभी को दाम चाहिए॥
किसी आलोचना पर होता तुम्हे खेद क्योंकर,
दाग सदा उजले पर लगे, इस चलन को मत भूलो॥
सत्य वचन
दाग सदा उजले पर लगे इस चलन को मत भूलो। एकदम सटीक है। बढिया हैं मुक्तक।
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जवाब देंहटाएंकिसी आलोचना पर होता तुम्हे खेद क्योंकर,
दाग सदा उजले पर लगे, इस चलन को मत भूलो॥
@ 'दाग' भी हाईलाइट हो जाता है उजले दामन पर लगकर.
'आलोचना' भी व्यर्थ की .. जी ही लेती है कुछ सिमटकर.
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जवाब देंहटाएंआहत मन को ... तसल्ली देने के लिये ये बातें अच्छी हैं.
अन्यथा मैंने देखा है
गदले चरित्र पर यदि कोई उजला दाग लग जाता है उसे वे मेडल बता घूमते हैं.
एक गेरुआ वस्त्र के भिखारी के पाँव इलाहाबाद में कभी इंदिरा गांधी ने छू लिये थे वह साधुओं की पंगत में बैठ गया था.
दरअसल वह अफीमची था, दाड़ी बड़ी होने के कारण उसे साधु समझ लिया गया था.
जीवन भर उसने इस प्रकरण को गाया. उसके लिये वह गदले वस्त्र पर मेडल की ही तरह था.
बाक़ी भिखारी उसका बेहद सम्मान करते रहे. [सत्य घटना]
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सच और सही बात कही आप ने
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंआश्चर्य !! आपकी सभी पोस्ट सभी को समझ में आ रही है उम्मीद है ब्लॉग जगत में अब कोई पंगा नहीं होगा :))
लेख पर कमेन्ट :
जवाब देंहटाएंशुरूआती दो पेराग्राफ बड़े मस्त लगे :)
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंउम्मीद है ब्लॉग जगत में अब कोई पंगा नहीं होगा :))
यह मेरी गारंटी थोडे ही है? :))
हां, यह विश्वास दिला सकता हूँ मैं, पंगा पड भी गया तो जल्द दूर हट जाउँगा।
@सुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंओहो,
ये बात तो सभी समझने वालों को सोचनी है :))
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंएक प्रश्न है ....
"सच हमेशा कड़वा होता है"
क्या ये सही है ? इस बारे में आप क्या सोचते हैं
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंयह सापेक्ष कथन है कि "सच हमेशा कड़वा होता है"
सच छुपाने में प्रयासरत के सामने वही सच उजागर किया जाय तो उसके लिये कडवा होगा।
आज हम झूठ के इतने अभ्यस्त हो गये हैं, सच दृष्टि में आते ही बेस्वाद या कडवा लगता है।
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंवाह ! एक दम सारगर्भित और सीधी मन तक पहुँचने वाली बात कही है आपने , हमेशा की तरह
कृपया एक बढ़िया सा "लाइफ का फंडा" मेरे ब्लॉग पर भी विचारों के रूप में दें तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंआपने सम्मान दिया, आपका आभार!! एक माइक्रो पोस्ट डालिये, कोई न कोई "लाइफ का फंडा" का डाल ही दुंगा। फिर पता नहीं सही बैठे या गलत्।:))
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंआपके विचार सटीक व सार्थक है। बस सिक्के का दूसरा पहलू है।
बहुत सुंदर और प्रेरक बातें। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएं‘मंहगाई मार गई..!!
सही कह रहे हैं। पर जीवन की आपाधापी में कौन किसकी सुनता है!
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी! चारों तरफ आपा धापी के माहौल में यहाँ आकर एक स्वर्गिक आनंद आता है!!
जवाब देंहटाएंसम्वेदना बंधु,
जवाब देंहटाएंआपकी इस एक टिप्पणी नें मेरा ब्लॉग लिखना सार्थक कर दिया।
आप जैसे मित्रो के कारण यह आस्था बनी रहती है कि सद्विचारों को लोग आज भी प्रोत्साहित करते है।
आप संरक्षक है जीवन-मूल्यों के।
बेहद भावपूर्ण रचना ...... सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदाग सदा उजले पर लगे, इस चलन को मत भूलो॥
जवाब देंहटाएंमगर इन नेताओ का क्या किया जाय , जो सफेद पोशाक मे अनगिनत अदृश्य दाग लगाने मे ही अपनी शान और समृद्धि समझते है ।
कुछ उनके लिये भी कहिये
बहुत अच्छा लगता है आपके ब्लाग पर..
जवाब देंहटाएं@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह से अभिभूत हूँ
लेकिन उलझा दिया आपने तो :)
इसका मतलब ये समझूँ की .......
"नो माइक्रो पोस्ट" मतलब "नो फंडा" !!
आप जैसे सभी मित्रों की टिप्पणियाँ मेरे लिए तो मेरी पोस्ट से ज्यादा मायने रखती हैं .. कहीं आप मेरी बातों को ज़बानी जमा खर्च तो नहीं समझ रहे ना !
समयाभाव की वजह से टिपण्णी करना भी जल्दी ही बंद करना पड़ सकता है
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंनहीं बंधु कोई अन्यार्थ न निकालें,मुझे प्रसन्न्ता ही होगी आपके विचार पढकर, और मनन के साथ प्रतिभाव देकर।
मतलब आप मेरी टिप्पणी को मेरे विचार नहीं मानते :)
जवाब देंहटाएंलो, करलो बात, लगता है आज प्रात: ही मुड लपेटे में लेने का है।:)
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