अप्रमाद-पुरूषार्थ
जब वक्त ही न रहा पास तो फिर क्या होगा?
लुट गई दौलते अहसास तो फिर क्या होगा?
कौन सी सुबह जलाओगे तमन्नाओं का चराग़?
शाम से ही टूट गई आस तो फिर क्या होगा?
सांस लेना ही केवल जिन्दगानी नहीं है।
उस बीस साल की उम्र का नाम जवानी नहीं है।
ज्योत बन जीना घड़ी भर का भी सार्थक,
जल के दे उजाला उस दीप का सानी नहीं है।
सजग करती पंक्तियां. ('धड़ी' को 'घड़ी' सुधार करने पर विचार कर लें)
जवाब देंहटाएंसही चेतावनी सुज्ञ जी ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंचेताने के लिय्रे धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंज्योत बन जीना धड़ी भर का भी सार्थक,
जवाब देंहटाएंजल के दे उजाला उस दीप का सानी नहीं है.
वाह वाह .
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
chintaniya prashn.....
जवाब देंहटाएंpranam.
बिल्कुल सही सोच। आभार।
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात कही है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
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जवाब देंहटाएंवाह भाई !
उचित उपदेश को कहती कमाल की कवितायी.
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वाह ! क्या बात कही है…………बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंसही बात है! समय चूकि पुनि का पछतानि!!
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी! जब यहाँ आता हूँ, ख़ाली हाथ नहीं जाता हूँ..
जवाब देंहटाएंकौन सी सुबह जलाओगे तमन्नाओं का चराग़?
जवाब देंहटाएंशाम से ही टूट गई आस तो फिर क्या होगा?
bahut hi bavpurn pratuti.......
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचार !
जवाब देंहटाएंज्योत बन जीना घड़ी भर का भी सार्थक,
जवाब देंहटाएंजल के दे उजाला उस दीप का सानी नहीं है------------ कितनी गहरी बात कह दी आपने!
बहुत सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंआप को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं!
जब वक्त ही न रहा पास तो फिर क्या होगा?
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा..सभी वक्त के गुलाम हैं..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनायें !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.....बहुत सुन्दर विचार......बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार................
बहुत सुन्दर रचना........... गहरी बात.... वाह
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