~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ संतान सुयोग्य न होने पर धन संचय बेकार है [इसलिए बचपन में संस्कारों को प्राथमिकता दी जाती है ] क्षमा के बिना सारी उपासनाएं बेकार हैं [क्षमा का गुण क्षमतावान को ही शोभा देता है ] व्यवहार में लाये बिना ज्ञान बेकार है [जैसे भोजन बिना पचाए ] सत्संग ने बिना जीवन ही अर्थहीन है [That is why it is “Better to be alone than in bad company] ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
'ज्ञान' की मेरी व्याख्या सीमातीत है,अनंत है। सभी के लिये व्यवहार में लाना असम्भव। अबोध को बेकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। 'विद्या' से मेरी व्याख्या व्यवहारिक विद्या है सीमित भी, उसे भी यदि हम व्यवहार में न ला सकें तो विद्या बेकार है।
@सुज्ञ जी आपकी बात तो ठीक है .. और व्यवहारिक भी... पर ये भी बताएं की इनमें से महत्वपूण क्या है ? ज्ञान या विद्या ? मानवता के फायदे वाले एंगल से सोचना है
महत्व तो दोनों का है, विद्या जीवनावश्यक होते हुए भी आखिर तो ज्ञान का ही अंग है,विद्या से ही बुद्धि विवेक उपार्जित करते हुए ज्ञान की अनंत सीमाओ पर गति सम्भव है।
मैं एक विचार या सोच बता रहा हूँ , इससे अज्ञान भी झलक सकता है आप भी जानते ही हैं इस विषय में तो मैं आपको उत्तर देने की स्थिति में नहीं हो सकता [लोजिकली] सिर्फ अपना दृष्टिकोण ही बता सकता हूँ जिसे सही या गलत आपको बताना है
अगर समयाभाव की वजह या निष्कर्ष के अभाव में ये चर्चा अधूरी रह जाती है तो मैं भी सुज्ञ जी का बात को ही सही मानूंगा, मैं उनके सामने विद्यार्थी जैसा ही हूँ | ये मेरा सौभाग्य ही है की सुज्ञ जी जैसे विद्वान मुझ जैसे अल्पज्ञानी से इतनी चर्चा कर रहे हैं
अगर समयाभाव या निष्कर्ष के अभाव में ये चर्चा अधूरी रह जाती है तो मैं भी सुज्ञ जी की बात को ही सही मानूंगा, मैं उनके सामने विद्यार्थी जैसा ही हूँ | ये मेरा सौभाग्य ही है की सुज्ञ जी जैसे विद्वान मुझ जैसे अल्पज्ञानी से इतनी चर्चा कर रहे हैं| अभी तक सुज्ञ जी की बात ही ज्यादा सही और व्यवहारिक है| ये मानने में कोई दुविधा नहीं है |
हिंदी में भावार्थ- जिस ज्ञान को आचरण में प्रयोग न किया जाये वह व्यर्थ है। अज्ञानी पुरुष हमेशा ही संकट में रहता हुआ ऐसे ही शीघ्र नष्ट हो जाता है जैसे सेनापति से रहित सेना युद्ध में स्वामीविहीन स्त्री जीवन में परास्त हो जाती है। चाणक्य नीति
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ऋते ज्ञानान्न मुक्ति: -ज्ञान बिना मुक्ति नही होती । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ सा विद्या या विमुक्तये - मनुष्य को मुक्ति दिलाये वही विद्या है ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ विद्या ददाति विनयम ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ज्ञानेन हीन: पशुभि: समान: ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ जिस प्रकार एक प्राणदायक औषधी भी बिना सेवन किए केवल नाम स्मरण करने से रोगी को कोई लाभ नहीं पहुंचा सकती,ठीक उसी प्रकार बिना व्यवहारिक ज्ञान के, पढे गए वेद शास्त्र भी व्यर्थ हैं.)
बिना व्यवहारिकता के समस्त ज्ञान व्यर्थ है http://dharmjagat.panditastro.com/2009/01/blog-post_30.html ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Knowledge without Practice is useless, Practice without knowledge is dangerous ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Knowledge without practice is like a glass eye, all for show, and nothing for use. Swinnock ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Knowledge is a treasure, but practice is the key to it. Thomas Fuller ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Source : Knowledge without practice is like a glass eye, all for show, and nothing for use. Swinnock | Quotes | Dictionary of Quotes - quotes ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Knowledge is of no value unless you put it into practice. Heber J. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Source : Knowledge without practice is like a glass eye, all for show, and nothing for use. Swinnock | Quotes | Dictionary of Quotes - quotes ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अज्ञ: सुखमाराध्य: सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ:। ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि तं नरं न रञ्जयति।
अर्थात जो अज्ञानी है उसे सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। जो विशेष बुद्धिमान् है उसे और भी आसानी से अनुकूल बनाया जा सकता है।किन्तु जो मनुष्य अल्प ज्ञान से गर्वित है उसे स्वयं ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते, मनुष्य की तो बात ही क्या है? श्री: भतृ्र्हरि नीतिशतक
मैं भी दोनो को सही मानता हूँ, मैं किसी एक का भी महत्व कम नहीं कर रहा,बल्कि ज्ञान को विद्या से विस्तृत मान रहा हूँ। जैसे सम्पूर्णता में हम शिक्षा कहते है,किन्तु विद्यार्थी वाणिज्य, विज्ञान या कला विशेष के विषय में पारंगत बनता है। जिस विषय में शिक्षा पाई, उस क्षेत्र में यदि वह असफल रहता है, तो कहने को तो हम कह देते है कि तेरी शिक्षा बेकार गई किन्तु उचित यह कहना है कि तेरा वह विषय विशेष पढना बेकार गया। क्योकि शिक्षा(सम्पूर्णता में) कभी व्यर्थ नहीं जाती। (यह मात्र उदाहरण है,यहाँ शिक्षा को ज्ञान की तरह और विषय विशेष को विद्याओं की तरह देखें।) मेरा आशय यही है कि विशाल ज्ञान के विद्या प्रभाग बनाए ही इसलिये गये है कि वे सरलता से व्यवहार में आ सके। तथापि जब हम व्यवहार में नहीं लाते…………तो यह कहना अर्थ समर्थ है कि……… "व्यवहार में लाये बिना विद्या निष्फल है।"
एक तो हूबहू व्यवहार में लाना, और दूसरा उपयोग में लेना……
उसी वाणिज्य के प्रोफ़ेसर के उदाहरण से…
एक व्यक्ति व्यापार प्रबंधन(MBA)का अध्यन कर पारंगत बनता है,अब एक तो वह स्वयं व्यापार करने लगता है, यह हुआ उस विद्या को हूबहू व्यवहार में लाना। दूसरा हुआ वह प्रबंधक की सेवाएं दे,यह हुआ मिश्रित व्यवहार। तीसरा वह प्रोफ़ेसर बन जाय व अन्य को व्यापार प्रबंधन सिखाने का कर्म करे, यह हुआ उपयोग।
अर्थार्त: ज्ञान व्यवहार में न आते हुए भी उपयोगी ही रहता है।
@सुज्ञ जी एक बात तो शुरू से मानता आया हूँ और अब भी कहूँगा आपके प्रस्तुतिकरण में कोई त्रुटी नहीं है वो एकदम स्पष्ट है
लेकिन ....
@ज्ञान व्यवहार में न आते हुए भी उपयोगी ही रहता है
बस यहीं पर थोडा सा दृष्टिकोण का फर्क है ..सबसे अच्छी बात ये है की ये एक पूर्वाग्रह रहित चर्चा है .... चर्चा अच्छी चल रही है .. अगर यहाँ पर प्रतुल जी , अमित जी, वत्स जी जैसे कोई विद्वान भी शामिल हो पायें तो कुछ और दृष्टिकोण देखने को मिल सकते हैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस चर्चा में अगर कोई कमीं है तो वो है ... मेरा इस विषय में अल्पज्ञानी [समझने और समझाने दोनों में ] होना :)
सत्संग के उदाहरण से… सत्संग में उपदेशक कई तरह के गुणयुक्त उपदेश देता है, स्वयं की सीमाएं होने से व्यवहार में न भी ला पाए, फ़िर भी उसके द्वारा उपदेशित ज्ञान तो उपयोगी ही रहेगा।
अगर समयाभाव की वजह या निष्कर्ष के अभाव में ये चर्चा अधूरी रह जाती है तो मैं भी सुज्ञ जी का बात को ही सही मानूंगा, मैं उनके सामने विद्यार्थी जैसा ही हूँ | ये मेरा सौभाग्य ही है की सुज्ञ जी जैसे विद्वान मुझ जैसे अल्पज्ञानी से इतनी चर्चा कर रहे हैं
ज्ञान के बिना क्रिया .... निष्फल है, बेकार है. @ सही बात है.
सीधी बात — मुझे देवनागरी लिपि का ज्ञान है तभी तो आपके लेख पर पठन की क्रिया हो रही है. दृष्टांत — मोबाइल या किसी नवीनतम उपकरण को ओपरेट करने के लिए उसकी बुकलेट इसलिए साथ दी जाती है कि उसको संचालित करने का ज्ञान पा सकें.
दर्शन के बिना प्रदर्शन .... निष्फल है, बेकार है. @ उत्तम कथन. सीधी बात — बिना साक्ष्यों के मुकद्दमा लड़ने वाले हार ही जाते हैं. अधूरेपन के साथ प्रदर्शन करने वाले मदारी स्वयं की खिल्ली उडवाते हैं. दृष्टांत — प्रदर्शन वही प्रभावी होते हैं जो आचार-संहिताओं से बद्ध होते हैं. प्रदर्शनों के उद्देश्यों में उसका दर्शन निहित होता है. साधारण से साधारण धरना-प्रदर्शन यदि बिना पुष्ट कारणों के नहीं किये जाते तो वह भी निष्प्रभावी होते हैं. एक बार आर्यसमाज ने कनोट प्लेस में पञ्च-सितारा होटलों के आगे नव-वर्ष की पूर्व-संध्या पर विलासिता की संस्कृति के खिलाफ प्रदर्शन किया गया लेकिन प्रदर्शन के हुजूम में कुछ ऐसे युवक भी शामिल थे जो उज्जड थे, उनके आचरण से स्वयं ही विलासिता की बू आ रही थी. तो पुलिस का लाठीचार्ज होते देर नहीं लगी. हम सभी के हाथ-पाँव तोड़े गए.
इस कारण ही कहा गया है कि बिना दर्शन [साधारण अर्थ में उद्देश्य] के प्रदर्शन की भूल नहीं करनी चाहिये.
आचार के बिना प्रचार .... निष्फल है, बेकार है. @ निर्धानित नियम-कायदों पर स्वयं का आचरण यदि नहीं है तो उनका प्रचार निष्प्रभावी होगा. प्रायः प्रेरणा उनसे ही ली जाती है जिनके स्वयं के जीवन में प्रचारित बातों का समावेश दिखता है.
समता के बिना साधना .... निष्फल है, बेकार है. @ यदि मन के भीतर ... भेद और अभेद, सुख और दुःख, राग और द्वेष आदि में समता का भाव जागृत नहीं हुआ ....... तो की जाने वाली साधना व्यर्थ है. साधक जन उन भावों को साधते देखे जाते हैं जो उनको बंधन में बाँधे रहते हैं.
शील के बिना शृंगार .... निष्फल है, बेकार है. @ आज उन आँखों की ज़रूरत है जिसे इस कथन को स्वीकार करते लज्जा न आती हो. शृंगार के स्थायित्व के लिए शील की अनिवार्यता आज भी है. मुझे लगता है इस विषय पर विरेन्द्र सिंह चौहान [पत्रकार] जी कुछ नया और अच्छा बता पायेंगे.
जिस विषय पर आपकी स्वयं आस्था न हो, आपके तर्क निष्प्रभावी होंगे। @ ओ ..... अच्छा इस तरह से समझना था. ठीक ही तो है. फिर भी इस विषय पर एक लम्बी चर्चा तय रही. बाद में कभी.
जरा गौरव जी की सार्थक चर्चा पर कुछ प्रकाश भी डालें। @ मित्र गौरव का क्षेत्र एकाउंट और व्यापार रहा है शायद. मुझे उनकी कुछ टिप्पणियाँ समझने में अधिक समय लग रहा था इस कारण उनके विचार काफी कुछ समझकर केवल अपनी बात ही रखना मुझे श्रेयस्कर लगा.
बढ़िया, आवश्यक और सार्थक सूक्तियां ! काश हम सब लोग इनमें आनंद लेना सीख लें ! सादर !!
जवाब देंहटाएंबढिया विचार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचार...
जवाब देंहटाएंसोलह आने सच है जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर विचार
बहुत सुंदर और प्रभावी विचार
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंसारी पंक्तियाँ चुने हुए बेशकीमती मोती हैं जिन्हें अगर मनुष्य जीवन में उतार ले तो जीवन धन्य हो जाय !
साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ज्ञान के बिना क्रिया।
जवाब देंहटाएंसमता के बिना साधना।
ये दो ठीक से समझ नहीं आया |
अंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंजीवन-क्रिया(कर्म)हो,या फिर धार्मिक-क्रियाएं। ज्ञान के बिना प्रतिफ़ल नहीं देती।
जीवन-साधना हो चाहे आध्यात्मिक साधना, समता भाव के बिना सफल नहीं होती।
बहुत सुंदर विचार लगे, ग्रहण करने योग्या धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसत्य , सुन्दर, सारगर्भित
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंमैं भी कुछ बोलूं क्या ? :)
स्वागत है, मेरे चर्चा-बंधु :))
जवाब देंहटाएं~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जवाब देंहटाएंसंतान सुयोग्य न होने पर धन संचय बेकार है
[इसलिए बचपन में संस्कारों को प्राथमिकता दी जाती है ]
क्षमा के बिना सारी उपासनाएं बेकार हैं
[क्षमा का गुण क्षमतावान को ही शोभा देता है ]
व्यवहार में लाये बिना ज्ञान बेकार है
[जैसे भोजन बिना पचाए ]
सत्संग ने बिना जीवन ही अर्थहीन है
[That is why it is “Better to be alone than in bad company]
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुज्ञ जी, बहुत अच्छी बात कही। बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
कादेरी भूत और उसका परिवार।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंसार्थक है।
किन्तु,
व्यवहार में लाये बिना ज्ञान बेकार है
की जगह,
व्यवहार में लाये बिना विद्या बेकार है
नहीं होना चाहिए?
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंकृपया इस सुधार का आधार भी बताएं तो मुझे समझने में सुविधा होगी
'ज्ञान' की मेरी व्याख्या सीमातीत है,अनंत है। सभी के लिये व्यवहार में लाना असम्भव। अबोध को बेकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
जवाब देंहटाएं'विद्या' से मेरी व्याख्या व्यवहारिक विद्या है सीमित भी, उसे भी यदि हम व्यवहार में न ला सकें तो विद्या बेकार है।
शायद मैं स्पष्ठ हो पाया होउं……
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंआपकी बात तो ठीक है .. और व्यवहारिक भी... पर ये भी बताएं की इनमें से महत्वपूण क्या है ? ज्ञान या विद्या ? मानवता के फायदे वाले एंगल से सोचना है
महत्व तो दोनों का है, विद्या जीवनावश्यक होते हुए भी आखिर तो ज्ञान का ही अंग है,विद्या से ही बुद्धि विवेक उपार्जित करते हुए ज्ञान की अनंत सीमाओ पर गति सम्भव है।
जवाब देंहटाएंसंभवतया ये अपेक्षाकृत अध्ययन वाला दृष्टिकोण रहा होगा यानी
जवाब देंहटाएं"ज्ञानी ही अपने ज्ञान का उपयोग ना करे"
ये स्थिति अपेक्षा कृत बहुत बुरी है
पिछले प्रश्न
जवाब देंहटाएं@इनमें से महत्वपूण क्या है ?
को cancel कर देते हैं
यह विधान कहाँ से व्यक्त हुआ?
जवाब देंहटाएं"ज्ञानी ही अपने ज्ञान का उपयोग ना करे"
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंज्ञानी अपने उपार्जित ज्ञान को अन्य के सपुर्द करता है, यह भी उपयोग माना जायेगा। जबकि उसने व्यवहार में न लाया।
जैसे वाणिज्य का प्रोफेसर,वाणिज्य-कर्म (व्यवहार) न करते हुए भी विद्यार्थी को वाणिज्य-कर्म की विद्या दे देता है।
मैं एक विचार या सोच बता रहा हूँ , इससे अज्ञान भी झलक सकता है
जवाब देंहटाएंआप भी जानते ही हैं इस विषय में तो मैं आपको उत्तर देने की स्थिति में नहीं हो सकता [लोजिकली]
सिर्फ अपना दृष्टिकोण ही बता सकता हूँ जिसे सही या गलत आपको बताना है
@ज्ञानी अपने उपार्जित ज्ञान को अन्य के सपुर्द करता है, यह भी उपयोग माना जायेगा। जबकि उसने व्यवहार में न लाया।
जवाब देंहटाएंकोई बिना व्यवहार में लाये कैसे सिखाता है .. मुझे भी जानना है :)
@जैसे वाणिज्य का प्रोफेसर,वाणिज्य-कर्म (व्यवहार) न करते हुए भी विद्यार्थी को वाणिज्य-कर्म की विद्या दे देता है।
Impossible !!!
एक सामान्य क्लास रूम शिक्षा में कुछ चुने हुए उदाहरणों पर प्रयोगात्मक कार्य किये जाते हैं
जवाब देंहटाएंexamples :
ब्लेक बोर्ड पर बेलेंस शीट बनाना या मेंढक का ओपरेशन
आज अच्छा उलझाया आपने :))
जवाब देंहटाएंमेरी भी सीमाएं है गौरव जी,
जवाब देंहटाएंकई व्याख्याएं सार संक्षेप व्यक्त नहीं हो पाती।
कभी प्रश्न के भावार्थ हम तक सही नहीं पहूंच पाते तो कभी अभिव्यक्ति दुरस्त नहीं होती।
@Impossible !!! ????
प्रोफेसर बिना व्यापार किये, व्यापार विद्या देता ही है।
हाँ .....बस यही से फंडे की बात आती है
जवाब देंहटाएंलेखा शास्त्र के फंडे हैं ये तीन ...
RULE 1 : Debit the Receiver, Credit the Giver.
RULE 2 : Debit what comes in, Credit what goes out.
RULE 3 : Debit all expenses & losses, Credit all incomes & gains.
अब प्रोफ़ेसर ने हर उदाहरण न भी समझाया तो भी इन फंडों से काम चल जाता है ... है ना !
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंउलझ तो मैं पडुंगा!!:))
प्रयोग उस विद्या को व्यक्त मात्र करते है,अतः विद्या स्वरूप ही है, साक्षात व्यवहार (कर्म) नहीं।
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंअब ऑफलाईन होता हूँ, आपके पास समय और इच्छा हुई तो रात या फ़िर प्रात: विषय को आगे बढाएंगे।
'टिप्पणी के बिना पोस्ट' पर क्या राय है.
जवाब देंहटाएं@सभी से
जवाब देंहटाएंअगर समयाभाव की वजह या निष्कर्ष के अभाव में ये चर्चा अधूरी रह जाती है तो मैं भी सुज्ञ जी का बात को ही सही मानूंगा, मैं उनके सामने विद्यार्थी जैसा ही हूँ | ये मेरा सौभाग्य ही है की सुज्ञ जी जैसे विद्वान मुझ जैसे अल्पज्ञानी से इतनी चर्चा कर रहे हैं
@सभी से
जवाब देंहटाएंअगर समयाभाव या निष्कर्ष के अभाव में ये चर्चा अधूरी रह जाती है तो मैं भी सुज्ञ जी की बात को ही सही मानूंगा, मैं उनके सामने विद्यार्थी जैसा ही हूँ | ये मेरा सौभाग्य ही है की सुज्ञ जी जैसे विद्वान मुझ जैसे अल्पज्ञानी से इतनी चर्चा कर रहे हैं| अभी तक सुज्ञ जी की बात ही ज्यादा सही और व्यवहारिक है| ये मानने में कोई दुविधा नहीं है |
राहुल जी,
जवाब देंहटाएंठीक ही तो है,
'टिप्पणी के बिना पोस्ट'
निष्फल है, निस्सार है।:)
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंविद्यालय शिक्षक के लिए "कर्मभूमि" है और शिक्षण कार्य "कर्म"
खैर ...... इस बात से चर्चा की दिशा बदल रही है . दोबारा शुरू से शुरू करते हैं
ये वाला उत्तर देने से बचना चाहता था ....... अंतिम लाइन की वजह से लेकिन क्या कोई भी [आप मित्रों के अलावा ] मेरी इस भावना को समझेगा क्या ?
जवाब देंहटाएंहर्त ज्ञार्न क्रियाहीनं हतश्चाऽज्ञानतो नर।
हर्त निर्नायकं सैन्यं स्त्रियो नष ह्यभर्तृकाः ।।
हिंदी में भावार्थ- जिस ज्ञान को आचरण में प्रयोग न किया जाये वह व्यर्थ है। अज्ञानी पुरुष हमेशा ही संकट में रहता हुआ ऐसे ही शीघ्र नष्ट हो जाता है जैसे सेनापति से रहित सेना युद्ध में स्वामीविहीन स्त्री जीवन में परास्त हो जाती है।
चाणक्य नीति
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जवाब देंहटाएंऋते ज्ञानान्न मुक्ति: -ज्ञान बिना मुक्ति नही होती ।
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सा विद्या या विमुक्तये - मनुष्य को मुक्ति दिलाये वही विद्या है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
विद्या ददाति विनयम
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ज्ञानेन हीन: पशुभि: समान:
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जिस प्रकार एक प्राणदायक औषधी भी बिना सेवन किए केवल नाम स्मरण करने से रोगी को कोई लाभ नहीं पहुंचा सकती,ठीक उसी प्रकार बिना व्यवहारिक ज्ञान के, पढे गए वेद शास्त्र भी व्यर्थ हैं.)
बिना व्यवहारिकता के समस्त ज्ञान व्यर्थ है
http://dharmjagat.panditastro.com/2009/01/blog-post_30.html
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Knowledge without Practice is useless, Practice without knowledge is dangerous
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Knowledge without practice is like a glass eye, all for show, and nothing for use. Swinnock
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Knowledge is a treasure, but practice is the key to it. Thomas Fuller
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Source : Knowledge without practice is like a glass eye, all for show, and nothing for use. Swinnock | Quotes | Dictionary of Quotes - quotes
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Knowledge is of no value unless you put it into practice. Heber J.
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Source : Knowledge without practice is like a glass eye, all for show, and nothing for use. Swinnock | Quotes | Dictionary of Quotes - quotes
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ज्ञान के बारे में ये भी देखें ......
जवाब देंहटाएंअज्ञ: सुखमाराध्य: सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञ:।
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि तं नरं न रञ्जयति।
अर्थात जो अज्ञानी है उसे सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। जो विशेष बुद्धिमान् है उसे और भी आसानी से अनुकूल बनाया जा सकता है।किन्तु जो मनुष्य अल्प ज्ञान से गर्वित है उसे स्वयं ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते, मनुष्य की तो बात ही क्या है?
श्री: भतृ्र्हरि नीतिशतक
दोनों ही बातें सही है सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंमैं भी दोनों बातों को सही बता रहा हूँ
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंआपने ज्ञान और विद्या दोनों को रेखांकित करने के लिये जो संदर्भ प्रस्तुत किये सभी परम सत्य है। मैं भी यही मानता हूँ।
मूल प्रश्न है कि ज्ञान और विद्या दोनों में बारीक सा अर्थ-भेद क्या है?
जवाब देंहटाएंऔर व्यवहार में लाने के मायने क्या है?
मैं भी दोनो को सही मानता हूँ, मैं किसी एक का भी महत्व कम नहीं कर रहा,बल्कि ज्ञान को विद्या से विस्तृत मान रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंजैसे सम्पूर्णता में हम शिक्षा कहते है,किन्तु विद्यार्थी वाणिज्य, विज्ञान या कला विशेष के विषय में पारंगत बनता है। जिस विषय में शिक्षा पाई, उस क्षेत्र में यदि वह असफल रहता है, तो कहने को तो हम कह देते है कि तेरी शिक्षा बेकार गई किन्तु उचित यह कहना है कि तेरा वह विषय विशेष पढना बेकार गया। क्योकि शिक्षा(सम्पूर्णता में) कभी व्यर्थ नहीं जाती।
(यह मात्र उदाहरण है,यहाँ शिक्षा को ज्ञान की तरह और विषय विशेष को विद्याओं की तरह देखें।)
मेरा आशय यही है कि विशाल ज्ञान के विद्या प्रभाग बनाए ही इसलिये गये है कि वे सरलता से व्यवहार में आ सके। तथापि जब हम व्यवहार में नहीं लाते…………तो यह कहना अर्थ समर्थ है कि………
"व्यवहार में लाये बिना विद्या निष्फल है।"
अब व्यवहार के मायने क्या है?
जवाब देंहटाएंएक तो हूबहू व्यवहार में लाना, और दूसरा उपयोग में लेना……
उसी वाणिज्य के प्रोफ़ेसर के उदाहरण से…
एक व्यक्ति व्यापार प्रबंधन(MBA)का अध्यन कर पारंगत बनता है,अब एक तो वह स्वयं व्यापार करने लगता है, यह हुआ उस विद्या को हूबहू व्यवहार में लाना। दूसरा हुआ वह प्रबंधक की सेवाएं दे,यह हुआ मिश्रित व्यवहार। तीसरा वह प्रोफ़ेसर बन जाय व अन्य को व्यापार प्रबंधन सिखाने का कर्म करे, यह हुआ उपयोग।
अर्थार्त: ज्ञान व्यवहार में न आते हुए भी उपयोगी ही रहता है।
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंयह मेरी अल्पज्ञतानुसार निष्कर्ष है,समझना समझाना सर्वथा दोषमुक्त नहीं हो सकता। विषय तो स्पष्ठ है, प्रस्तुतिकरण में मेरी त्रृटियां मानें।
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंएक बात तो शुरू से मानता आया हूँ और अब भी कहूँगा आपके प्रस्तुतिकरण में कोई त्रुटी नहीं है वो एकदम स्पष्ट है
लेकिन ....
@ज्ञान व्यवहार में न आते हुए भी उपयोगी ही रहता है
बस यहीं पर थोडा सा दृष्टिकोण का फर्क है ..सबसे अच्छी बात ये है की ये एक पूर्वाग्रह रहित चर्चा है .... चर्चा अच्छी चल रही है .. अगर यहाँ पर प्रतुल जी , अमित जी, वत्स जी जैसे कोई विद्वान भी शामिल हो पायें तो कुछ और दृष्टिकोण देखने को मिल सकते हैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस चर्चा में अगर कोई कमीं है तो वो है ... मेरा इस विषय में अल्पज्ञानी [समझने और समझाने दोनों में ] होना :)
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंविद्वान मित्रो को मेल कर दिया था। हम चर्चावानों की यह विडम्बना है। सारे मित्र व्यस्त रहते है। उनकी ब्लॉग पर बहुत कम उपस्थिति देखी जाती है।
@ज्ञान व्यवहार में न आते हुए भी उपयोगी ही रहता है
जवाब देंहटाएं@"बस यहीं पर थोडा सा दृष्टिकोण का फर्क है"
सत्संग के उदाहरण से…
सत्संग में उपदेशक कई तरह के गुणयुक्त उपदेश देता है, स्वयं की सीमाएं होने से व्यवहार में न भी ला पाए, फ़िर भी उसके द्वारा उपदेशित ज्ञान तो उपयोगी ही रहेगा।
@सभी से
जवाब देंहटाएंअगर समयाभाव की वजह या निष्कर्ष के अभाव में ये चर्चा अधूरी रह जाती है तो मैं भी सुज्ञ जी का बात को ही सही मानूंगा, मैं उनके सामने विद्यार्थी जैसा ही हूँ | ये मेरा सौभाग्य ही है की सुज्ञ जी जैसे विद्वान मुझ जैसे अल्पज्ञानी से इतनी चर्चा कर रहे हैं
.
जवाब देंहटाएंज्ञान के बिना क्रिया .... निष्फल है, बेकार है.
@ सही बात है.
सीधी बात — मुझे देवनागरी लिपि का ज्ञान है तभी तो आपके लेख पर पठन की क्रिया हो रही है.
दृष्टांत — मोबाइल या किसी नवीनतम उपकरण को ओपरेट करने के लिए उसकी बुकलेट इसलिए साथ दी जाती है कि उसको संचालित करने का ज्ञान पा सकें.
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जवाब देंहटाएंअतः यह सिद्ध है कि पहले ज्ञान फिर क्रिया.
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जवाब देंहटाएंदर्शन के बिना प्रदर्शन .... निष्फल है, बेकार है.
@ उत्तम कथन.
सीधी बात — बिना साक्ष्यों के मुकद्दमा लड़ने वाले हार ही जाते हैं. अधूरेपन के साथ प्रदर्शन करने वाले मदारी स्वयं की खिल्ली उडवाते हैं.
दृष्टांत — प्रदर्शन वही प्रभावी होते हैं जो आचार-संहिताओं से बद्ध होते हैं. प्रदर्शनों के उद्देश्यों में उसका दर्शन निहित होता है.
साधारण से साधारण धरना-प्रदर्शन यदि बिना पुष्ट कारणों के नहीं किये जाते तो वह भी निष्प्रभावी होते हैं.
एक बार आर्यसमाज ने कनोट प्लेस में पञ्च-सितारा होटलों के आगे नव-वर्ष की पूर्व-संध्या पर विलासिता की संस्कृति के खिलाफ प्रदर्शन किया गया लेकिन प्रदर्शन के हुजूम में कुछ ऐसे युवक भी शामिल थे जो उज्जड थे, उनके आचरण से स्वयं ही विलासिता की बू आ रही थी. तो पुलिस का लाठीचार्ज होते देर नहीं लगी. हम सभी के हाथ-पाँव तोड़े गए.
इस कारण ही कहा गया है कि बिना दर्शन [साधारण अर्थ में उद्देश्य] के प्रदर्शन की भूल नहीं करनी चाहिये.
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जवाब देंहटाएंप्रदर्शन किया गया में 'गया' अतिरिक्त चला गया. उसे छोड़ कर पढ़ें.
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जवाब देंहटाएंश्रद्धा के बिना तर्क .... निष्फल है, बेकार है.
@ इस कथन पर बाद में चर्चा करेंगे. इसपर मुझे मतिभ्रम है.
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जवाब देंहटाएंआचार के बिना प्रचार .... निष्फल है, बेकार है.
@ निर्धानित नियम-कायदों पर स्वयं का आचरण यदि नहीं है तो उनका प्रचार निष्प्रभावी होगा. प्रायः प्रेरणा उनसे ही ली जाती है जिनके स्वयं के जीवन में प्रचारित बातों का समावेश दिखता है.
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प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक मिमांसा हो रही है। हर विचार सार्थक बहुविध अर्थ पाते जा रहे है।
अनंत आभार,
जरा गौरव जी की सार्थक चर्चा पर कुछ प्रकाश भी डालें।
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंश्रद्धा के बिना तर्क .... निष्फल है, बेकार है.
@ इस कथन पर बाद में चर्चा करेंगे. इसपर मुझे मतिभ्रम है.
जिस विषय पर आपकी स्वयं आस्था न हो, आपके तर्क निष्प्रभावी होंगे।
.
जवाब देंहटाएंनैतिकता के बिना धार्मिकता .... निष्फल है, बेकार है.
@ सत्य कथन ..... साथ ही स्पष्ट भी.
धारण योग्य बातें ही धर्म हैं. और ऎसी बातों से ही सामाजिक और आत्मिक नीतियों का निर्माण होता है.
सूत्र व्याख्या निरपेक्ष है.
.
.
जवाब देंहटाएंसमता के बिना साधना .... निष्फल है, बेकार है.
@ यदि मन के भीतर ... भेद और अभेद, सुख और दुःख, राग और द्वेष आदि में समता का भाव जागृत नहीं हुआ ....... तो की जाने वाली साधना व्यर्थ है.
साधक जन उन भावों को साधते देखे जाते हैं जो उनको बंधन में बाँधे रहते हैं.
.
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जवाब देंहटाएंदान के बिना धन .... निष्फल है, बेकार है.
@ इस कथन पर गहन चिंतन की आवश्यकता है. जिसे यह कथन भला प्रतीत हो वह सुरेश चिपलूनकर जी के मिशन में सहयोग करे.
.
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंआप दिव्य-ज्योति को भी अद्भुत आभा प्रदान कर रहे है।
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जवाब देंहटाएंशील के बिना शृंगार .... निष्फल है, बेकार है.
@ आज उन आँखों की ज़रूरत है जिसे इस कथन को स्वीकार करते लज्जा न आती हो.
शृंगार के स्थायित्व के लिए शील की अनिवार्यता आज भी है.
मुझे लगता है इस विषय पर विरेन्द्र सिंह चौहान [पत्रकार] जी कुछ नया और अच्छा बता पायेंगे.
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जवाब देंहटाएंजिस विषय पर आपकी स्वयं आस्था न हो, आपके तर्क निष्प्रभावी होंगे।
@ ओ ..... अच्छा इस तरह से समझना था. ठीक ही तो है. फिर भी इस विषय पर एक लम्बी चर्चा तय रही. बाद में कभी.
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शील और चरित्र समानार्थी है, विस्तृत रूप में लें तो भावार्थ होता है…
जवाब देंहटाएंआन्तरिक सुन्दरता (शील) के बिना बाहरी सजावट व्यर्थ है।
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जवाब देंहटाएंजरा गौरव जी की सार्थक चर्चा पर कुछ प्रकाश भी डालें।
@ मित्र गौरव का क्षेत्र एकाउंट और व्यापार रहा है शायद.
मुझे उनकी कुछ टिप्पणियाँ समझने में अधिक समय लग रहा था इस कारण उनके विचार काफी कुछ समझकर केवल अपनी बात ही रखना मुझे श्रेयस्कर लगा.
कार्यालय का समय हो रहा है. यहीं विराम लेता हूँ.
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जवाब देंहटाएंआन्तरिक सुन्दरता मतलब शील .... और इसके बिना बाहरी सजावट व्यर्थ है।
@ सहमत हूँ.
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दान के बिना धन .... निष्फल है, बेकार है.
जवाब देंहटाएंधन की निष्फलता में 'धरा रहने वाला धन' अर्थ अभिप्रेत है।
अत: ऐसा अतिरिक्त धन यदि दान(प्रदान) न किया जाय तो व्यर्थ ही जाएगा।
प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएं@ मित्र गौरव का क्षेत्र एकाउंट और व्यापार रहा है शायद.
व्यापार के उदाहरण की शरूआत मैने की थी,सम्भव है बंधु गौरव जी का क्षेत्र भी हो। मेरा क्षेत्र व्यापार ही है।:))