ब्लॉग अथवा चिट्ठा एक जालस्थान है, जो आपको विचार और जानकारी साझा करने के लिये त्वरित सक्षम बनाता है। चिट्ठो में दिनांक अनुक्रम से लेख-प्रविष्ठियां होती हैं। यह डायरी की तरह लिखा जाने वाला आपके विचारो का सार्वजनिक पत्र है। आपका सार्वजनिक किया हुआ व्यक्तिगत जालपृष्ठ है।
ब्लॉग को मात्र निजि डायरी मानना नितांत गलत है। अब वह किसी भी दृष्टिकोण से निजि डायरी नहीं रही। भला, कोई रात-बेरात, किसी अन्य के अध्यन-कक्ष में अपनी निजि डायरी छोड जाता है कि अगला पढकर अपने प्रतिभाव देगा?
ब्लॉग अब केवल डायरी ही नहीं, पुस्तक से भी आगे बढकर है। यह लेखक-पाठक के सीधे संवाद का प्रभावशाली माध्यम है। ब्लॉग आज अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन कर उभरा है । यह न केवल विचार -विमर्श के लिये प्रभावशाली हैं, बल्कि सामान्य से विचारो की सरल प्रस्तूति का इकलौता माध्यम है। ब्लॉग लेखन निजि विचारो पर भी चर्चा के क्षेत्र खोलता है। इतना ही नहीं विचारो को परिष्कृत परिमार्जित करने के अवसर उपलब्ध कराता है। यहां तक कि स्थापित विचारो को पूर्ण परिवर्तित कर देने का माद्दा भी रखता है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर तथ्यपूर्ण सूचनाएं सहज ही उपलब्ध होती है।
लोगों को पहले किसी भी विषय पर तार्किक सारगर्भित दृष्टिकोण सहज उपलब्ध नहीं थे, अथाग श्रम और अध्यन के बाद भी वस्तुस्थिति संशय पूर्ण रहती है। समाचार-पत्र, दूरदर्शन भी प्रति-जिज्ञासा शान्त करने में असमर्थ है। अन्तर्जालीय ब्लॉग माध्यम ऐसी तमाम, प्रति-प्रति-जिज्ञासाओं को शान्त करने में समर्थ है।
निस्संदेह हिंदी ब्लॉगजगत का विकास संतोषजनक नहीं है अभी हमारे देश में अन्तरजाल की पहूँच और ब्लॉग अभिरूचि अपर्याप्त है। आज दायरा छोटा है, यह निरंतर विकासगामी है। किन्तु हिंदी ब्लोगर अपर्याप्त साधन व सूचनाओं के भी समाज और देश हित में जन चेतना जगाने में तत्पर है। हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप देने में हिन्दी ब्लोगर्स की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। हिन्दी ब्लॉगिंग के शानदार भविष्य की शुरुआत हो चुकी है, हिन्दी ब्लॉग लेखन में आज साहित्यिक सृजनात्मकता, नियोजित प्रस्तुतीकरण, गंभीर चिंतन-विवेचन, समसामयिक विषयों पर सूक्ष्मदृष्टि, , सामाजिक कुरितियों पर प्रहार आदि सफल गतिविधियाँ दृष्टिगोचर हो रही हैं।
ब्लॉग एक सार्वजनिक मंच का स्वरुप ग्रहण कर चुका है, इस मंच से जो भी विचार परोसे जाते हैं पूरी दुनिया द्वारा आत्मसात होने की पूरी संभावनाएं है। ऐसे में ब्लोगर की जिम्मेदारी और भी बढ जाती है वह सामाजिक सरोकार के परिपेक्ष में लिखे तो सुधार की अनंत सम्भावनाएं है। हर ब्लॉगर अनुकूलता अनुसार अपना वैचारिक योगदान अवश्य दे। हिन्दी ब्लॉगिंग की विकासशील स्थिति में भी किये गये प्रयास, एक सुदृढ समर्थ वातावरण निर्मित करेंगे। इस माध्यम से एक विलक्षण वैचारिक विकास सम्भव है। जीवन मूल्यो को नये आयाम और उसकी पुनः स्थापना सम्भव है।
ब्लॉगिंग ज्ञानतृषा का निदान ही नहीं, ज्ञान का निधान है।
आपके विचारो से एकदम सहमह हँू।
जवाब देंहटाएंब्लाग एक बेहतरीन जरिया है अपने विचारो को दूसरो तक पहुचाने का
आपके इस छोटे से आलेख ने ब्लॉग विधा का ऐसा चित्रण किया है जो सुग्राफ्य भी है और तथ्यपरक भी! धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंआपने ब्लॉग के महत्व को ठीक प्रकार से ब्याख्या किया है यह किसी भी विषय का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना भी इसकी विशेषता है इसलिय ब्लॉग को ब्याक्तिगत न समझकर सामाजिक ,राष्ट्रीय दृष्टि कोड से ही देखना चाहिए.
जवाब देंहटाएंब्लाग बेहद महत्वपूर्ण हो चुके हैं.
जवाब देंहटाएंब्लॉग एक सार्वजनिक मंच का स्वरुप ग्रहण कर चुका है.
जवाब देंहटाएंस्वागतेय. अगर इस दौर में कुछ अनावश्यक और अवांछित आता भी है तो इससे सार्थक ब्लॉगिंग का महत्व कम नहीं हो जाता, बढ़ता ही है.
जवाब देंहटाएंस्वस्थ ब्लागिंग की कामना करते हैं और उम्मीद करते हैं की इस वर्ष कुछ अच्छा और सुखद पढने को मिलेगा ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं"ब्लॉग अब केवल डायरी ही नहीं, पुस्तक से भी आगे बढकर है"
जवाब देंहटाएंब्लॉग को सही तरह से व्याख्यायित करके आपने एक अच्छे ब्लॉगर होने का फ़र्ज़ निभाया है.बधाई
अपसे पूरी तरह सहमत हैं। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंब्लाग निजि डायरी के अतिरिक्त सब कुछ है। यहाँ आप चाहें तो अपनी निजता परोस दें और चाहें तो अपना ज्ञान। यहॉं से लेना चाहों तो अकूत ज्ञान का भण्डार ले लो या फिर केवल झूठी प्रसंशा। अपार सम्भावनाएं हैं यहॉं।
जवाब देंहटाएं@ब्लॉग को मात्र निजि डायरी मानना नितांत गलत है।
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,
पूरी तरह सहमत हूँ आपकी बात से
मुझे लगता है आजकल ब्लोगिंग में लेखक/लेखिकाएं वे मुद्दे उठाते हैं जिन्हें समझने की ना तो उनमें क्षमता है ना उनका विश्लेषण करने के लिए उनके पास समय [ऊपर से अहंकार का ओवर फ्लो अलग ].....सिर्फ कमेन्ट पाने या खुद को बौद्दिक रूप से संपन्न दिखाने जैसे कारणों या इच्छाओं की पूर्ति के लिए के लिए लेखन का ये खेल खेला जाता है ..मुझे पूरी उम्मीद इस आपके इस लेख पर बहुत बड़े विचार आने वाले हैं जिन्हें देने वाले स्वयं उनका पालन करने में असमर्थ होंगे
और हाँ ....
जवाब देंहटाएंमेरे कुछ विचार यहाँ पढ़ें
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2010/11/blog-post_14.html?showComment=1289754094102#c1007387247461791521
गौरव जी,
जवाब देंहटाएं@सिर्फ कमेन्ट पाने या खुद को बौद्दिक रूप से संपन्न दिखाने जैसे कारणों या इच्छाओं की पूर्ति के लिए के लिए लेखन का ये खेल खेला जाता है
>> मात्र तुच्छ स्वार्थो भरी मानसिकता से खेल खेलने वाले इन्ही प्रयासो में विवादग्रस्त होकर अन्तत: महत्व खो देंगे।
एक प्राकृतिक नियम है, कमजोर स्वतः पिछड जाता है, दूसरा इकोनोमिक नियम है मांग और पूर्ति का। यदि सार्थक मांगे उठती है तो सार्थक पूर्ति ही होगी। भ्रांत पूर्ति का मार्केट खत्म हो जायेगा।
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंआपके दिए लिंक वाले आपके विचार पहले पढ चुका था, पर आज के इस लेख के भी विषयानुकूल है।
ब्लॉगरीय परिपक्वता जरूरी है।
CHARAIWETI-CHARAIWETI
जवाब देंहटाएंSADAR
"प्राकृतिक नियम" पढ़ कर "कमजोर" के रूप में "सार्थक लेख" ही याद आ रहे थे पर साथ ही दिए "इकोनोमिक नियम" को पढ़ कर मन को शांति मिली और मन में उठने वाले प्रश्नों का समाधान हुआ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
सहमत हे जी आप से, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामना
भाई मैंने तो इसे डायरी कभी माना ही नहीं।
जवाब देंहटाएंक्योंकि मैं डायरी लिखता ही नहीं।
आपकी डायरी कोई पढता है क्या? ..!
आप पढने देते हैं?
मेरे लिए तो ब्लॉगिंग डायरी लिखने के अलावा सब कुछ है।
मनोज जी,
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने,लेखन दिनांक अनुक्रम में होने मात्र से कैसे इसे डायरी कहें।