पुराने समय की बात है, रेगीस्तान क्षेत्र में रहनेवाले चार सौदागर मित्रों नें किसी सुविधाजनक समृद्ध जगह जा बसनें का फ़ैसला किया। और अपने गांव से निकल पडे। उन्हे एक नगर मिला जहाँ लोहे का व्यवसाय होता था। चारों ने अपने पास के धान्य को देकर लोहा खरीद लिया, पैदल थे अत: अपने सामर्थ्य अनुसार उठा लिया कि जहाँ बसेंगे इसे बेचकर व्यवसाय करेंगे।
आगे जाने पर एक नगर आया, जहां ताम्बा बहुतायत से मिल रहा था, लोहे की वहां कमी थी अतः लोहे के भारोभार, समान मात्रा में ताम्बा मिल रहा था। तीन मित्रों ने लोहा छोड ताम्बा ले लिया, पर एक मित्र को संशय हुआ, क्या पता लोहा अधिक कीमती हो, वह लोहे से लगा रहा। चारों मित्र आगे बढे, आगे बडा नगर था जहां चाँदी की खदाने थी, और लोहे एवं तांबे की मांग के चलते, उचित मूल्य पर चांदी मिल रही थी। दो मित्रों ने तो ताम्बे से चाँदी को बदल दिया। किन्तु लोह मित्र और ताम्र मित्र को अपना माल आधिक कीमती लगा, सो वे उससे बंधे रहे। ठीक उसी तरह जो आगे नगर था वहाँ सोने की खदाने थी। तब मात्र एक मित्र नें चाँदी से सोना बदला। शेष तीनो को अपनी अपनी सामग्री मूल्यवान लग रही थी
अन्ततः वे एक समृद्ध नगर में आ पहुँचे, इस विकसित नगर में हर धातु का उचित मूल्यों पर व्यवसाय होता था, जहाँ हर वस्तु की विवेकपूर्वक गणनाएँ होती थी।चारों सौदागरों ने अपने पास उपलब्ध सामग्री से व्यवसाय प्रारंभ किया। सोने वाला मित्र उसी दिन से समृद्ध हो गया, चाँदी वाला अपेक्षाकृत कम रहा। ताम्र सौदागर बस गुजारा भर चलाने लगा। और लोह सौदागर!! एक तो शुरू से ही अनावश्यक बोझा ढोता रहा और यहाँ बस कर भी उसका उद्धार मुश्किल हो गया।
क्या पता लोहा अधिक कीमती हो
जवाब देंहटाएंतभी तो कहते हैं ..वक़्त की नजाकत को समझते हुए विवेक से काम लेना चाहिए ...शुक्रिया आपका
समय पर लिये जाने वाले निर्णय का मोल.
जवाब देंहटाएंसीख देती हुई बढ़िया लघुकथा.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसमय के साथ अपने किये फैसलों का पुनर्मूल्यांकन किसी भी विवेकवान को आवश्यक होता है ! आपकी पोस्ट शिक्षाप्रद है और हर समय में लागू रहेगी ! शुभकामनायें !
इसी प्रकार की एक कहानी और थी जिसमे भाई आगे बढ़ते जाते है अंत में जो भाई हीरे मोती देख कर भी नहीं रुकता और आगे बढ़ता जाता है उसके सर पर लालचा का भार आ जाता है | अथ: अंत में कहानी की नैतिक शिक्षा क्या है स्पष्ट बताये कई बार एक जैसी कहानियो से कुछ अलग अलग ध्वनिया आती है |
जवाब देंहटाएंअंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंविद्वानों के बीच बोध कथा का इस तरह ही अंत लाया जाता है, ऐसी बोध कथाएं अलग अलग ध्वनियां भी प्रकट करे तो भी सार्थक संदेश दे जाती है।
आपने जिस कथा की और ईशारा किया है वह कहीं से भी 'लालच' का अर्थ प्रकट नहीं करती।
जहाँ तक मेरे अपने सार मंतव्य का उल्लेख करूं तो नैतिक बोध यह है कि "निरंतर विकासशील व्यवस्था में निकृष्ट विचारों से लगे न रहना चाहिए, और उत्तरोत्तर श्रेष्ठ योग्य उत्कृष्ट विचारों को अपनाते रहना चाहिए।"
बहुत ही सुन्दर सीख देती कथा !
जवाब देंहटाएंआपकी कथायें बड़ी सुन्दर होती हैं>.
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी..कहानी पसन्द आई। इसके पीछे छिपी हुई सीख को जीवन में उतारना चाहिए।
जवाब देंहटाएंएक अच्छी बोध कथा शिक्षा प्रद .
जवाब देंहटाएंवे रूढ़ीवादी परम्पराएँ जो बोझ होती जा रही हों उनको सामयिक ज्ञान के साथ पर्मार्जित करते रहना ही सच्चा ज्ञान है... सुज्ञ जी बहुत ही प्रेरक कथा!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचार, धन्यवाद इस कहानी के लिये
जवाब देंहटाएंकहानी की अलग तरह की व्याख्या की ओर सहज ध्यान जाता है.
जवाब देंहटाएंकहानी की अलग तरह की व्याख्या की ओर सहज ध्यान जाता है.
जवाब देंहटाएंpranam.
बहुत ही सुन्दर सीख देती कथा !
जवाब देंहटाएंसीख देती हुई बढ़िया लघुकथा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सीख देती कहानी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सीख देती लघुकथा कि हमें हमेशा ही नए श्रेष्ठतम विचारों को अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सीख दी आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसही वक्त पर सही निर्णय ज़रूरी ..... अच्छी लगी बोध कथा ....
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंऔर लोह सौदागर!! एक तो शुरू से ही अनावश्यक बोझा ढोता रहा और यहाँ बस कर भी उसका उद्धार मुश्किल हो गया।
@ अरे इन लौहा ढोने वालों के लिये ही तो आरक्षण-नीति बनी है. आज़ के प्रजातंत्र में आधे सुनहरे अवसर इन लौहा ढोने वालों के लिये ही तो हैं.
आप व्यर्थ चिंता करते हैं 'सोने वालों को नींद कहाँ आती है,
उल्लू बनकर जागते रहना होता लक्ष्मी के दर्शन को.
चांदी वाले भी रातभर चाँद देखकर ही दिन गुजार रहे हैं कि जरा सी झपकी लगे नहीं कि माल गायब.
मायावती जी लुहारों के उद्धार के लिये ही तो राजनीति में हैं. वो बात अलग है कि उनका मोह अब सोने-चांदी से हो चला है.
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bahut achchhi seekh deti katha .aabhar
जवाब देंहटाएंhttp://najariya.blogspot.com/2011/02/blog-post.html?showComment=1296629117381#c5379931873884056705
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी
मैंने उस दिन इस कथा की बात की थी जो आप ब्लॉग " नजरिया" में पढ़ा चुके है | आप की और उनकी कथा बहुत कुछ एक जैसी ही है किन्तु दोनों का सन्देश अलग अलग है |
बोध कथा के माध्यम से अच्छी सीख है. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंhttp://aatamchintanhamara.blogspot.com/
आपके विचारों का यहां स्वागत है ।
shikshaprad katha..
जवाब देंहटाएंbahut achchhi lagi .
निर्णय
जवाब देंहटाएंजब विवेकस्वरुप किया जाए
तब ही सफल रहता है ...
सन्देश प्रेषित करती हुई अच्छी रचना !
sunder bodh katha........... achchhi sjikh deti hui..
जवाब देंहटाएंयह कुछ हद तक प्रारब्ध का मामला भी प्रतीत होता है।
जवाब देंहटाएंNice story
जवाब देंहटाएंKindly visit http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com/
सार्थक सन्देश देती बोध कथा। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंलघुकथा अच्छी लगी। इस कहानी से बहुत कुछ शिक्षा मिलती है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश देती हुई बेहतरीन कहानी । इस प्रेरक प्रसंग के लिए आभार ।
जवाब देंहटाएंkahan hai aap....
जवाब देंहटाएंpranam.
है मौन क्यों वातावरण???
जवाब देंहटाएंआपकी अनुपस्थिति में आपकी पिछली पोस्टों का आनंद लिया, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंहमारे जिवन मैं लिऐ जाने वाले सभी र्निणय सही होगे ऐ होता नही पर सही समय पर लिया जाने वाले र्निणय सही होते है।
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