4 अक्तूबर 2016

जड़मति- सम्मति

एक गाँव में एक महिला, तालाब पर पानी भरने गई। उसका पति भी स्नान और कपड़े धोने के उद्देश्य से उसके साथ था। गाँव का बुजर्ग सरपंच भी वहाँ था।

पानी भरती हुई महिला का पैर फिसला और वह तालाब में जा गिरी। हाथ पैर पटकने से वह किनारे से दूर हो गई। सरपंच ने उसके पति को हांक लगायी- " अरे बचाओ उसे।" पति ने लाचारी व्यक्त की, उसे तैरना नहीं आता था। तैरना तो सरपंच भी नहीं जानता था। अब क्या हो, किन्तु सहसा सरपंच को उपाय सूझा, तालाब में भैसें तैर रही थी। सरपंच ने उसके पति से कहा, "अपनी पत्नी को हांक लगाओ कि, 'भैस की पूँछ पकड़ ले' वह डूबने से बच जाएगी और भैस के साथ बाहर भी निकल आएगी।" उसके पति ने आवाज लगाई, "भैंस की पूँछ मत पकड़ना" सरपंच ने कुपित नज़रों से उसे देखा किन्तु तब तक महिला भैंस की पूँछ पकड़ चुकी थी।

सरपंच चिल्लाया, "भैंस की पूँछ छोड़ना मत" उसके पति ने सरपंच को चुप रहने का ईशारा करते हुए पत्नी को आवाज दी, "भैंस की पूँछ मत पकड़े रखना" और सरपंच की ओर मुखातिब हो धीरे से कहा, "वह मेरी पत्नी है, उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूँ, बड़ी तुनकमिजाजी है।आदेश तो किसी भी दशा में उसे मंजूर नहीं, जो बोलो उसके उलट ही व्यवहार करेगी"

उधर, देखते ही देखते उसकी पत्नी भैंस के साथ सकुशल बाहर आ गई।

सरपंच आवाक देखता ही रह गया!!

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