गिरते हुए गैर पर हँसना बड़ा आसान है।
थाम ले जो हाथ गिरते आदमी का,
बस आदमी होता वही इन्सान है॥
तन को निर्मल बना दे वह नीर होता है।
शान्ति से सहन करे वह धीर होता है।
क्रोध करने वाले में छिपी है कायरता,
समभावी क्षमाशील ही नर-वीर होता है॥
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प्रिय बंधुवर सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंसस्नेहाभिवादन !
कैसे हैं ? आशा है, सपरिवार स्वस्थ-सानन्द हैं ।
आपके यहां आ कर पढ़ कर चला जाता हूं , यह सोच कर कि वापस आ'कर विस्तार से लिखूंगा । … लेकिन अवसर निकल जाता है ।
आपकी हर पोस्ट में मानवता की भावनाओं से ओत-प्रोत समाज के लिए उपयोगी और चरित्र-निर्माण की प्रेरणा प्रदान करने वाली सामग्री होती है । … और इसलिए आप बधाई एवम् साधुवाद के पात्र हैं ।
~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बस एक ही शब्द है कहने के लिए...
जवाब देंहटाएंलाजवाब.....
सुज्ञ जी! बहुत ही सुंदर परिभाषा!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत ही गजब ।
जवाब देंहटाएंजीवनोपयोगी सुन्दर रचनाएँ.
जवाब देंहटाएंरचनात्मक अर्थ और परिभाषा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया सद्वचन सुज्ञ जी ! शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंशान्ति से सहन करे वह धीर होता है।
जवाब देंहटाएंक्रोध करने वाले में छिपी है कायरता,
इन दो लाईनों से थोडा सहमत नहीं हु क्योकि ये बात हर बार हो ये जरुरी नहीं है | मतलब हर बार सहना धीरज नहीं होता है वो कमजोरी और कायरता भी हो सकती है और हर बार सहन करना अत्याचार करने वाले को बढ़ावा भी देता है | और हमें तो भ्रष्टाचारियो, अत्याचारियों नेताओ कइयो उनके कम के कारण क्रोध आता है तो क्या वो कायरता है |
अंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंप्रथम दृष्टि में यही सही लगता है। किन्तु हम गहरा चिंतन करें तो पाएंगे……वाकई वहाँ कायरता छिपी है।
भ्रष्टाचारियो, अत्याचारियों पर मात्र क्रोध भ्रष्टाचार अनाचार का इलाज़ नहीं है। सार्थक प्रयास और सुनियोजित जाग्रति ही इन्हे न्यूनाधिक दूर करने का इलाज है। ऐसा पुरूषार्थ हम कर नही सकते इसलिये क्रोध कर जिम्मेदारियों से मुक्त हो लेते है।
अत्याचारी के समक्ष क्रोध दर्शाने पर, यदि अत्याचारी कमजोर हुआ तब तो सहम जायेगा। अन्यथा क्रोध का बदला क्रोध की एक श्रंखला निर्मित होगी। समस्या स्थाई हल से दूर हो जायेगी।
हमें कमजोर न मान लिया जाय,इस डर मिश्रित मनस्थिति में, अनिर्णायक क्रोध, कायरता नहीं तो क्या है।
सार्थक प्रश्न के लिये आभार!!
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक संदेश ...।
जवाब देंहटाएंप्रेरक मुक्तक देने के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंअनमोल वचन
जवाब देंहटाएंEk insaan hi insaan ko samajh sakta hai .........hai na !!...anmol baten kahte ho sir..:)
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत अनमोल वचन कहे आप ने धन्यवाद
जवाब देंहटाएंश्री सुज्ञजी,
जवाब देंहटाएंअनमोल विचारों का खजाना आपके पास हमेशा ही दिखाई देता है ।
नजरिया परिवार में शामिल होने पर आपको बहुत-बहुत धन्यवाद... आभार...
iske bhi asar hote hain .... dhire dhire.
जवाब देंहटाएंpranam.
प्रेरक प्रस्तुति के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर सुंदर सुंदर बातें पढने को मिलती हैं, अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएं---------
बोलने वाले पत्थर।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
जय श्री कृष्ण...आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब लिखा है। आपका ब्लॉग हर किसी के पढ़ने लायक़ है।
जवाब देंहटाएंआपको इन पंक्तियों के लिए तथा साथ में मकर संक्रांति के अवसर पर शुभकामनाएँ।
सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, जो आप मेरे इन विचारो को सकरात्मक रूप में लेते है नहीं तो लोगों के ऐसे विचार अपनी आलोचना लगने लगती है | नेताओ पर क्रोध आने पर क्या करे ज्यादातर तो हम उनका कुछ कर ही नहीं पाते है कुछ करने के लिए पांच साल इंतजार कर लेते है |
अंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंयकिन मानिये संयत रहने और सौजन्यता से विचार रखने के लिये मुझे भी श्रम करना पडता है। उपयुक्त शब्द चयन,और स्पष्ठ संदेश के लिये वाक्य नियोजन (गढना)।
आपकी इस टिप्पणी से मेरे श्रम को पुरस्कार मिल गया।
बहुत ही सुन्दर एवं अनमोल वचन
जवाब देंहटाएंसुंदर सधे शब्दों की प्रेरणादायी अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंसक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......सादर
जवाब देंहटाएंसुन्दर शिक्षा समेटे इस खूबसूरत कविता के लिये आपका आभार सुज्ञ जी!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जी।
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