14 जनवरी 2011

कटी पतंग

तंग, उँचा आसमान छूने के लिए अधीरदूसरी पतंगो को मनमौज से झूमती इठलाती देखकर मायुस। वह एक नियंत्रण की डोर से बंधी हुईसधे अनुशासन के आधार से उडती-लहराती, फ़िर भी परेशान। आसमान तो अभी और शेष थाशीतल समीर के उपरांत भी, अन्य पतंगो का नृत्य देख उपजीर्ष्या, उसे झुलसा रही थी। श्रेय की अदम्य लालसा और दूसरो से उँचाई पाने की महत्वाकांक्षा ने उसे बेकरार कर रखा था। स्वयं को तर्क देती, हाँ! प्रतिस्पर्धा ही तो उन्नति की सीढी है

किन्तु,फ्फ!! यह डोर बंधन!! डोर उसकी स्वतंत्रता में बाधक थी। अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति के लिए, वह दूसरी पतंगो की डोर से संघर्ष करने लगी। इस घर्षण में उसे भी अतीव आनंद आने लगा। अब तो  वह डोर से बस मुक्ति चाहती थी । अनंत आकाश में स्वच्छंद विचरण करना चाहती थी।

निरंतर घर्षण से डोर कटते ही, वह स्वतंत्र हो गई। सूत्रभंग के झटके ने उसे सहसा उंचाई की ओर धकेला, वह प्रसन्न हो गईकिन्तु यह क्या? वह उँचाई तो क्षण मात्र की थी। अब स्वयंमेव उपर उठने के सारे प्रयत्न विफल हो रहे थे। निरूपाय-निराधार डोलती हुई वह नीचे गिर रही थी। सांसे हलक में अटक गई थी, नीचे गहरा गर्त, बडा डरावना भासित हो रहा था। उसे डोर को पुनः पाने की प्रबल इच्छा जगी, किन्तु देर हो चुकी थी, डोर उसकी दृष्टि से ओझल हो चुकी थी। अन्तत: धरती पर गिर कर धूल धूसरित हो गई, पतंग

38 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत श्रेष्‍ठ चिंतन। डोर का बंधन हमें कठपुतली के समान लगता है लेकिन जब ये ही छूट जाती है तब कुछ नहीं रहता। सहारे की आवश्‍यकता तो रहती ही है बस उसके रूप बदल जाते हैं।

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  2. बेहतरीन बात इस बिम्ब के माध्यम से...जीवन सीख!!!

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  3. लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

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  4. बहुत ही सारगर्भित बात कह दी है, पतंग के बहाने...जितना भी ऊँचा उड़ लें...आधार ना छूटे.
    मकर संक्रांति की शुभकामनाएं

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  5. समझने लायक,सुन्दर,सारगर्भित पोस्ट .
    लोहड़ी,मकर संक्रांति और पोंगल की आपको भी हार्दिक बधाई.

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  6. सारगर्भित पोस्ट .
    आपको मकर सक्रांति की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

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  7. काफी कुछ कहा समझा जा रह है | आप को भी मकर संक्रांति की शुभकामनाये |

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  8. सशक्त और वैचारिक प्रस्तुति ....सक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें

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  9. बहुत उत्तम तरह का जीवन दर्शन. बधाई...

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  10. बहुत विचारणीय पोस्ट ...समझ बढ़ाने में सहायक ....शुक्रिया आपका

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  11. सुज्ञ जी ....सार्थक लेखन के लिए बधाई। चन्द पंक्तियों के माध्यम से आपने जीवन की हकीकत बयां कर दी।

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  12. • सृष्टि को एक नई प्रविधि से देखने की तरक़ीब है यह आलेख।

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  13. सार्थक लेखन, पंतग के माघ्यम से

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  14. प्रकृति में सर्वत्र परस्पर निर्भरता है। इससे इतर जीवन संभव नहीं।

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  15. वाह!!! पतंग के माध्यम से क्या ज़बरदस्त सीख दी आपने...

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  16. मकर संक्रांति पर अच्‍छी बोध कथा.

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  17. आपकी दिल को छू गयी , लोहड़ी, मकर संक्रान्ति पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

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  18. kahan uchaiyon pe le jakar.....jamin pe patak diye

    kahan se itne achhe nagine chun ke late hain bhai.

    pranam.

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  19. .

    संस्कृत भाषा में 'पतंग' का अर्थ पक्षी और सूर्य आदि से है. जबकि
    हिंदी भाषा में 'पतंग' का अर्थ वायु में उड़ने वाला कागज़ी खिलौना है.

    .

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  20. .

    पतंग अर्थात जिसके अंग पतित होते हों अथवा गिरते हों.
    पतंग का सम्पूर्ण अर्थ है ...... जिसके अंग क्षरणशील हों.

    .

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  21. .

    इस कारण पतंग कइयों का संबोधनसूचक हुआ करता था :
    — पक्षी ..... [जिनके अंग (पंख) निरंतर झड़ते रहते हैं.]
    — सूर्य ..... [जिसकी पतित (गिरती) किरणों से ऊर्जा पाकर सम्पूर्ण सौर्यमंडल संचालित है.]
    — फतिंगा ..... [जिसके अंग/पंख झड़ते ही मृत्यु हो जाती है]
    — शरीर ..... [जिसका निरंतर क्षय होता है.]
    — जल ..... [जिसका स्वभाव ही निचली सतह पर फिसलना है... पतित होना है.]

    .

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  22. .

    — नौका ..... [जो तट पर खड़े (गिरे) लोगों को पार लगाती है अथवा पतितों का उद्धार करती है.] ..... अब 'पतवार' का अर्थ आप स्वयं लगाएँ..
    [ध्यान रहे पत का अर्थ लज्जा और प्रतिष्ठा भी होता है, केवल गिरना ही नहीं.]
    — मक्खी [गंध के वशीभूत होकर गंधित वस्तु पर चिपके (गिरे) रहने वाले छोटे जीव]
    — कृष्ण का एक नाम [क्योंकि वे ऐसे व्यक्ति थे जिसने सदैव स्वयं को अहंकार से गिराया] सुदामा का प्रकरण हो या फिर कुब्जा से प्रेम का अथवा अर्जुन के सारथी बनने का.
    — महुआ [वृक्ष.. जिसके पतित फलों से बनी शराब पीने वालों को मस्ती में विभोर (शिष्टता से गिरा देती) करती है.
    — पिशाच ..... [भयावह अतीत जो निरंतर हतोत्साहित करता (उत्साह को गिराता) है.
    — घोडा ..... [दौड़कर दूरी को घटाने (गिराने) वाला जीव]
    — स्फुलिंग/ चिनगारी ..... [जलकर गिरने वाला अंश]

    .

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  23. .

    ... किन्तु वर्तमान में 'पतंग' का रूढ़ अर्थ 'हवा में उड़ने वाली गुड्डी' और पतंगे का अर्थ फतिंगे से लिया जाता है.
    तुलसीदास जी का मुझे एक अर्धविस्मृत दोहा याद आ रहा है.
    "उदित उदयगिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग.
    ........................................ लोचन भंग.
    [कृपया जिस सज्जन को याद हो मुझे याद करायें]

    .

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  24. .

    दोहे का अर्थ भी काफी आनंद देगा, जिसे नहीं पता हो वह आस-पास से पूछे.
    मैं भी पिताजी के पास जाकर इस दोहे को पूरा पताकर विस्मृति को पक्की स्मृति में बदलता हूँ.

    .

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  25. प्रतुल जी,

    पतंग के विभिन्न अर्थ, भावार्थ और व्याख्या तो शानदार प्रस्तुत की। आभार!!

    इस कथा पर भी कुछ कहिए न…

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  26. .

    लो जी पता कर आया....
    "उदित उदयगिरी मंच पर, रघुवर बालपतंग.
    बिकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन भृंग.
    सुज्ञ जी के इस चिंतन-यज्ञ में हमारी भी सभी को शुभकामनाएँ.

    कथा पर अभी कुछ कहता हूँ. बस दो मिनट ...

    ..

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  27. प्रतुल जी,

    ब्लॉग-जगत के आकाश पर जोरदार पतंगबाजी चल रही है। सारे विचारक वहीं व्यस्त है।

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  28. .

    कटी पतंग ने अहंकार और अतीव महत्वाकांक्षा की परिणति को अपने हाल-चाल से बयाँ कर दिया.
    जो नियमों की डोर से बँधा है वही सुखी है.
    स्वतंत्रता का सही अर्थ भी यही कि स्वयं पर शासन करना अथवा स्वयं को नियमों से बाँधना, मतलब ये कि खुद को उसूलों के खूँटे से बाँधना.
    इस कथा ने ही मुझसे इतना श्रम करवाया है कि पतंग के अर्थ करने में जुटा हूँ. पतंग के सभी सन्दर्भ खोल-खोलकर देख रहा हूँ.
    आपको इस प्ररक कथा के लिये साधुवाद.

    .

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  29. प्रतुल जी,

    शानदार अर्थघटन किया, सभी पाठको ने भी जोरदार सारयुक्त प्रतिभाव दिए।

    गौरव जी आते तो मजा दुगुना हो जाता…

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  30. आप सभी का आभार, इस प्रस्तुतिकरण की सराहना के लिये।

    अब आप इसे 'सुबोध' पर भी पढ सकते है:
    http://sugya-subodh.blogspot.com/

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  31. पतंग के माध्यम से बहुत गहन दर्शन प्रस्तुत कर दिया आपने..बहुत सुन्दर

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  32. बिल्कुल सही यथार्थ का वर्णन किया है आपने। बाकी प्रतुल ने तो इतनी व्याख्या कर दी है पतंग कि कि अब बार बार पढ़ने पर इस यथार्थ चिंतन के अनेकार्थ निकलने लगेंगे .....बेहतर है....पर यर्थाथ वही है जो इस में है......

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  33. आज आपकी पतंग हमें खींच लायी यहाँ ठहर जाने के लिए ...शुक्रिया

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  34. डोर के माध्यम से कितना कुछ कह दिया आपने .. ये सच है की अनुशासन की डोर में बंध कर ही मंजिल पाई जा सकती है ...

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