जब मैने अपना उपनाम ‘सुज्ञ’ चुना तो इतना गहन चिंतन किया कि इससे मेरा सम्पूर्ण व्यक्तिव ही प्रकट हो जाय। ‘सुज्ञ’= “सच्चा ज्ञान जो सुगमता से आत्मसात कर ले”। ‘सुविज्ञ’ नहिं जिससे विशेष ज्ञान होने का गर्व ध्वनित होकर पुष्ठ होता हो।
मैं सभी दर्शनों का विद्यार्थी हूं, सभी दर्शनों का गुणाभिलाषी हूं, वस्तूतः मैं गुणपूजक हूं।
मै धार्मिक सत्य वचनो का अनुकरण अवश्य करता हूं, महापुरूष मेरे आदर्श है। करोडों वर्षों के विचार मंथन व उत्पन्न ज्ञान- गाम्भीर्य से जो तत्व-रहस्य उनका उपदेश होता है। उन शुद्ध विचारों का मैं समर्थन करता हूं।
सुज्ञ को किसी धर्मसम्प्रदाय परंपरा में खण्ड खण्ड कर देखना असम्भव है। मैने कभी किसी नाम संज्ञा के धर्म को नहिं माना। पर जहां से सार ग्रहण करता हूं, उस दर्शन की एक विशेष शब्दावली है, जो उसकी पहचान स्थापित कर देती है। इस दर्शन में ऐसी जाति या धर्म-वाचक संज्ञा है ही नहिं, शास्त्रों में इस धर्म के लिये ‘मग्गं’ (मार्ग) शब्द ही आया है। और मार्गानुसरण कोई भी कर सकता है।
इसके सुक्षम अहिंसा अभिगम ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया, और अहिंसा ही इसका प्रमुख लक्षण है यही लक्षण इसे मुखारित कर जाता है। जैसे जैसे लोग कहते है इतनी सुक्षम अहिंसा सम्भव नहिं, सम्भावनाएं तलाशते हुए मैं, अहिंसा के प्रति और भी आस्थावान होता जाता हूं।
इसीलिये मानव उपयोग में क्रूरताजन्य पदार्थों, जिसके बिना आनंद से कार्य हो सकता है, मै विरोध करता हूं।
अतःबिना किसी लागलपेट के, किसी पूर्वाग्रह के मै कह सकता हूं, मैं सम्यग्दर्शनवान हूं। मैं इस सम्यग विचारधारा पर पूर्णरूप से श्रद्धावान हूं, अन्ततः मै सम्यग्दृष्टि हूं।
किताबें तो अपने आप में जड है, सर पर उठा घुमने से वह ज्ञान देने में समर्थ नहिं। उसमें उल्लेखित ज्ञान ही सत्य स्वरूप है, और ज्ञान चेतन का लक्षण है। और धर्म आत्मा का स्वभाव। इसलिये जब भी मेरे सम्मुख कोई ज्ञान-शास्त्र आये, मैं मेरे विवेक को छलनी और बुद्दि को सूप बना देता हूं, ‘सार सार को गेहि रहे थोथा देय उडाय’। यह विवेक परिक्षण विधि भी ‘सम्यग्दृष्टि’ की ही देन है। इसलिये मुझे यह चिंता कहीं नहिं रही कि, क्या सही लिखा है, क्या गलत। परिक्षण परिमाण जो हमारे पास है। इसीलिये मैने हींट-लाईन चुनी नीर-क्षीर विवेक।
(यह स्पष्ठिकरण है मेरी विचारधाराओं का, ताकि मेरे मित्र अनभिज्ञ या संशय-युक्त न रहे। ---सुज्ञ)
सबसे पहले तो
जवाब देंहटाएंनवरात्रा स्थापना के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएं
लेख पढ़ कर आनंद आ गया
पर स्पष्टीकरण देख कर शंका हो रही है
कोई बात हुई है क्या ?? :)
यहाँ लोग हर कदम पर स्पष्टीकरण मांगेंगे ! कहाँ तक दोगे ? ...मगर पढ़ कर अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें !
ओह ! मैं अपना सवाल
जवाब देंहटाएं@ कोई बात हुई है क्या ??
वापस लेता हूँ
धन्यवाद :)
प्रसन्नता हुई!
जवाब देंहटाएंइतनी आत्मकेंद्रित अभिव्यक्ति तनिक अनुचित मानी जाती है अकादमियां में मगर ब्लॉग जगत के लिए बिलकुल सटीक है ...
जवाब देंहटाएंऔर हाँ आपका जब नाम मतलब उपनाम पहली बार देखा तो कुछ विचित्र सी अनुभूति हुयी -उसे बयान करने की अनुमति चाहता हूँ ...(आपने दे दी होगी ) ....प्रथम दृष्टि में यह नाम आई मीन उपनाम एकदम से अलग हट कर विशिष्ट सा लगा था -विज्ञ से तो पहले परिचित था विद से भी जिसका मतलब जानना होता है ..लेकिन सुग्य ...भाया था यह नाम ..
मगर फिर सहसा फितरती मन एक याद में खो गया ..हमारे यहाँ तोते को सुग्गा कहते हैं -आप जानते हैं सुग्गा एक प्रसिद्द पालतू पक्षी है जिसे लोग राम नाम कहना सिखाते हैं ...अब सुग्गा का अर्थ विन्यास क्या होगा ? सु मतलब सुन्दर तो सुन्दर गाने वाला -या सुन्दर ज्ञान रखने वाला (सुज्ञा!) मगर आपके ब्लॉग पर हंस का चित्र है तो आप सुग्गा नहीं हो सकते इसलिए नीर क्षीर विवेक वाले सुज्ञ हुए ...
मजा तो तब आये कोई सुज्ञा भी ब्लॉग जगत में मिल जाए और सुग्य और सुज्ञा का एक जोड़ /जोड़ा बने ..क्योंकि तोता मैना की कहानी अब पुरानी हो गयी :)
क्या समझे ?
चलिए ब्लागीय प्रलाप समझना कोई जरूरी तो नहीं !
गौरव जी,
जवाब देंहटाएंआभार, मित्र के मनोभावों तक आपने विचरण किया।
सतीश जी,
जवाब देंहटाएंबात तो आपकी सही है,
लेकिन आप और मैं दोनों ही भावातिरेक सदा बहते ही है।
अनुराग जी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रसन्नता बता रही,मैने आपके दिल में स्थान पाया।
अरविंद जी,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोगरीय विद्वान का यूं ही ब्लागीय प्रलाप कैसे हो सकता है? आपके कथन को समझने का प्रयास कर रहा हूं:)
॰"मजा तो तब आये कोई सुज्ञा भी ब्लॉग जगत में मिल जाए और सुग्य और सुज्ञा का एक जोड़ /जोड़ा बने ..क्योंकि तोता मैना की कहानी अब पुरानी हो गयी :)
क्या समझे ?"
॰
अरविंद जी,
आप जोडे बनाकर मज़ा लेने से बाज़ नहिं आयेगे।:)
आप तो वैज्ञानिक है, अलग बायलोजीकल प्रकृति के जोडे कहां बनाने बैठे? 'सुग्गा' और 'हंस'।:-))
इसीलिये आपके जोडे जुडे जोडे अजोड होते हुए भी जुड नहिं पाते।:)
तो तोता मैना ही कहाँ एक प्रजाति के हैं सुज्ञ ? कुछ साहित्यिक /कवि सत्य होते हैं -पोएटिक ट्रुथ -जरूरी नहीं वे वैज्ञानिक सत्य हों मगर ये दिल है की उन्हें ही मानता है !
जवाब देंहटाएंअरविंद जी,
जवाब देंहटाएं@मगर ये दिल है की उन्हें ही मानता है !
हां, ज्यों सरोज़ और अरविन्द(मकरंद);)
चलो जोड भी आपकी बेजोड है।
यथा नाम तथा गुण
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं@--अतःबिना किसी लागलपेट के, किसी पूर्वाग्रह के मै कह सकता हूं, मैं सम्यग्दर्शनवान हूं। मैं इस सम्यग विचारधारा पर पूर्णरूप से श्रद्धावान हूं, अन्ततः मै सम्यग्दृष्टि हूं।
वाह ! सुन्दर व्याख्या।
काफी समय से सोच रही थी आपसे पूछूँ इस विषय में। लेकिन आज तो स्वयं ही पूरी जानकारी मिल गयी। बहुत सुन्दर तरीके से समझाया है आपने।
आभार आपका।
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जब मैने अपना उपनाम ‘सुज्ञ’ चुना तो इतना गहन चिंतन किया कि इससे मेरा सम्पूर्ण व्यक्तिव ही प्रकट हो जाय। ‘सुज्ञ’= “सच्चा ज्ञान जो सुगमता से आत्मसात कर ले”।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .....!!
आपका स्पष्ट बादी बिचार जथा नामे तथा गुणे जैसा ही है अच्छी अभी ब्यक्ति ---बहुत बहुत द्धान्याबाद.
जवाब देंहटाएंआपकी स्पष्ट वादिता बहुत अच्छी लगी ... आपकी विचार शक्ति उत्तम है .. आपकी बारे में जानना अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंआप गुण्पूजक हैं और मैं गुणवान की तलाश मैं हूँ.
जवाब देंहटाएंआज तक मन में मंथन चलता था की आपके नाम का उचित अर्थ क्या है. आज मंथन खतम हुआ. शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआपके विचार आपका दर्शन बहुत अच्छा लगा.
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंआप ने विवेक का प्रयोग किया और अनवर जमाल के ब्लॉग पर न जाने की घोषणा की .आप की बात का और लोग भी अनुसरण करेगे .
सूअर से कुश्ती नही लड़नी चाहिए . इस के दो कारण है
(१)आप के कपडे गंदे हो जायेंगे .
(२)इस से भी बड़ा कारण यह है की सूअर को मज़ा आएगी
@ Mr. Sugy ! what a nice post ?
जवाब देंहटाएंand this comment also
@ मिस्टर अभिषेक ! आपकी सलाह हिरण्याक्ष ने नहीं मानी वह लड़ा था सुअर से और हार गया। मैंने बहुत पहले एक लेख लिखा था कि हिन्दू भाई किसी को गाली देने के लिए शब्दहीन हो चुके हैं क्योंकि हरेक शब्द से जो आकृति बनती है उसे वे साक्षात ईश्वर या देवी-देवता या उनकी सवारी मानते हैं । वह लेख आपके आगमन से पहले लिखा था लेकिन आपके पढ़ने योग्य है। वैसे भी उन्हें मना किया गया है गाली बकने से।
आत्मालाप भी जरूरी है..इससे कुछ हो न हो मन शुद्ध होता है।
जवाब देंहटाएं..अच्छी लगी यह पोस्ट।
भाई सुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंआपकी एक सीधी-सच्ची बात पर अरविन्द मिश्रा जी अपनी टिप्पणी में जो कुछ भी कह गये हैं, उसमें काफी कुछ अनर्गल प्रलाप-सा ‘भी’ भासित हो रहा है ...!
उनकी टिप्पणी का अनर्गल प्रलापीय अंश नीचे प्रस्तुत है। विद्वज्जन विचार करें-
"मजा तो तब आये कोई सुज्ञा भी ब्लॉग जगत में मिल जाए और सुग्य और सुज्ञा का एक जोड़ /जोड़ा बने ..क्योंकि तोता मैना की कहानी अब पुरानी हो गयी :)
क्या समझे ?
चलिए ब्लागीय प्रलाप समझना कोई जरूरी तो नहीं !"
इस उपर्युक्त कथनांश से श्री मिश्र जी स्वयं किस ‘अकादमियत’ का परिचय देकर गये हैं? ....हाऽऽऽ,हाऽऽऽ,हाऽऽऽ.....!!!!!