घर |
प्रेम और विश्वास ही घर की नींव है।
स्वावलम्बन ही घर के स्तम्भ है।
अनुशासन व मर्यादा ही घर की बाड़ है।
समर्पण घर की सुरक्षा दीवारें है।
परस्पर सम्मान ही घर की छत है।
अप्रमाद ही घर का आंगन है।
सद्चरित्र ही घर का आराधना कक्ष है।
सेवा सहयोग ही घर के गलियारे है।
प्रोत्साहन ही घर की सीढ़ियां है।
विनय विवेक घर के झरोखे है।
प्रमुदित सत्कार ही घर का मुख्यद्वार है।
सद्चरित्र ही घर का आराधना कक्ष है।
सेवा सहयोग ही घर के गलियारे है।
प्रोत्साहन ही घर की सीढ़ियां है।
विनय विवेक घर के झरोखे है।
प्रमुदित सत्कार ही घर का मुख्यद्वार है।
सुव्यवस्था ही घर की शोभा है।
कार्यकुशलता ही घर की सज्जा है।
संतुष्ट नारी ही घर की लक्ष्मी है।
जिम्मेदार पुरुष ही घर का छत्र है।
समाधान ही घर का सुख है।
आतिथ्य ही घर का वैभव है।
हित-मित वार्ता ही घर का रंजन है।
_______________________________________
हंसराज जी! एक एक सीख यथार्थपरक! मानो घर बनाने की एक एक ईंट हो!!
जवाब देंहटाएंअप्रमाद ही घर का आंगन है।
जवाब देंहटाएंसुव्यवस्था ही घर की शोभा है।
सुन्दर रेखांकन ..
चेतन्य जी,
जवाब देंहटाएंआपने मेरे मनोबल रूपी घर में एक मजबूत ईंट का योगदान दिया।
आभार
वर्मा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना मेरे लिये उत्तम संबल होती है।
वाह क्या कहने -घर सु - परिभाषित !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,
बहुत ही शानदार तरीके से आपने एक सुन्दर हँसते-खेलते घर को परिभाषित किया है।
ऐसा ही होना चाहिए।
आभार।
.
अरविंद मिश्र जी,
जवाब देंहटाएंआपने कहा, सुपरिभाषित! मेरा श्रम सफ़ल हुआ।
दिव्या जी,
जवाब देंहटाएंआपके समर्थन से मेरा यह घर खिल उठा।
घर की नयी परिभाषा अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंमकान और घर में अंतर स्पष्ट कर दिया आप ने
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
hnsraaj bhayi bura mt manna aapne itna kuch likh diyaa he ke mere pas is mamle men tippni krne ke liyen shbd nhin bche hen bhut khub likhaa he mzaa aa gya baar baar ise pdhte rhne ko ji chahta he. akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंघर की नींव और छत जिनसे बनी है, घर में प्रवेश लेने वालों का ध्यान फिर से उस ओर ले जाओ.
इस घर के बाहर एक पट्टिका लगाओ कि "प्रशंसा करने से पहले छत को निहारो, नींव को कमज़ोर मत होने दो".
तभी यह घर दिव्य होगा और इस घर के समक्ष सरोवर में कमल खिलेंगे.
.
ईश्वर इस सारे ब्रह्माण्ड का राजा है। इन्सानों को उसी ने पैदा किया और उन्हें राज्य भी दिया और शक्ति भी दी। सत्य और न्याय की चेतना उनके अंतःकरण में पैवस्त कर दी। किसी को उसने थोड़ी ज़मीन पर अधिकार दिया और किसी को ज़्यादा ज़मीन पर। एक परिवार भी एक पूरा राज्य होता है और सारा राज्य भी एक ही परिवार होता है। ‘रामनीति‘ यही है। जब तक राजनीति रामनीति के अधीन रहती है, राज्य रामराज्य बना रहता है और जब वह रामनीति से अपना दामन छुड़ा लेती है तो वह रावणनीति बन जाती है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी क्षमा करियेगा टिप्पड़ी कही की कही लग गयी ----
जवाब देंहटाएंअपने माकन और घर में अंतर बताया है माकन को घर बनाना ही भारतीय परंपरा है
धन्यवाद
मकान तो सब बना लेते हैं, घर बनाने वाले बिरले ही होते हैं...कविता में जीवन दर्शन निहित है।
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंबिल्कूल सही कहा ये सारी चीजे जहा होती है वही मकान घर बनता है |
सारी ईंटे इकट्ठी कर दी. बस नेक नियति के गारे की जरुरत है अब.
जवाब देंहटाएंरचना एक सीख भी दे जा रही है, बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंवाह! यह घर -- स्वर्ग सा घर होगा! सबका घर ऐसा हो!! भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
जवाब देंहटाएंपक्षियों का प्रवास-१
वाह बेहतरीन रचना... अपने सौ फीसदी सच कहा, एक-एक बात मोती की तरह है... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाव है सुग्यजी घर में ही शांति मिलती है मकान(भवन) में नहीं दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएँ, कहीं भी रह आयें इन्सान की पनाहगाह घर ही होती है. 'मकान' तभी 'घर' होता है जब उसमें रहने वाले उसे सही मायनों में घर बनाना चाहते हों. कोई भी घर ' तेरा-मेरा घर' होने पर घर नहीं बल्कि मकान बन जाता है. घर जब ' हमारा घर' बनता है तभी 'घर' सार्थक होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सही !!
जवाब देंहटाएंवाह वाह ………………जहाँ इन सब का समावेश हो सच मे वो ही घर है……………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसंतुष्ट नारी ही घर की लक्ष्मी है।
जवाब देंहटाएंजिम्मेदार पुरुष ही घर का छत्र है।
इससे दो बातें तो साफ़ हो गई , एक यह कि पुरुष कम ही संतुष्ट होते है, और नारियां कम जिम्मेदार :)
गोदियाल जी,
जवाब देंहटाएंमुद्दा मत उछालो, (नाकारात्मक वचन न कहो)वैसे भी यहां ब्लोग जगत में जीवन के दो आवश्यक अंगों को अलग अलग ग्रूप में बांटा जा रहा है।
@एक यह कि पुरुष कम ही संतुष्ट होते है, और नारियां कम जिम्मेदार
###नारी को संतुष्ट रखना पुरूष का कर्तव्य है, और पुरूष को जिम्मेदार बनाए रखना नारी का फ़र्ज़.
क्षमायाचना सहित, आभार!!
काश ब्लाग जगत में भी एक छत मिल जाये !
जवाब देंहटाएंयह रचना घर में दीवाल पर टांगने लायक है मेरी हार्दिक शुभकामनायें हंसराज भाई
bahut sarthak ...yadi yah sab ho to makaan ho ya na ho ghar zaroor ban jayega ...
जवाब देंहटाएंदीदी,
जवाब देंहटाएंआपका ही इंतज़ार कर रहा था, आपने आकर घर के द्वार पर मंगल तोरण लगा दिया।
आभार।
सुज्ञ जी @ बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति , आज ऐसे घर ही तो नहीं मिलते, मकान बहुत से बन जाया करते हैं. हर एक पंक्ति पे तारीफ करने को दिल चाहता है. बहुत दिनों बाद कुछ ऐसा पढने को मिला जो दिल को भा गया.
जवाब देंहटाएंAasan lafzon men badi baat kah dee aapne.
जवाब देंहटाएं..............
यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?
एक अच्छे घर के सारे लक्षण आपने बता दिए ... लाजवाब कविता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएं