ऐसा खोजुं मैं मित्र ब्लॉग जगत में………
- बुद्धु :जिसका अपमान हो और उसके मन को पता भी न चले।
- आलसी : किसी को चोट पहूंचाने के लिये हाथ भी न उठा सके।
- डरपोक : गाली खाकर भी मौन रहे।
- कायर : अपने साथ बुरा करने वाले को क्षमा कर दे।
- मूर्ख : कुछ भी करो, या कहो क्रोध ही न करे।
- कडका : जलसेदार गैरजरूरी खर्च न कर सके।
- जिद्दी : अपने गुणों पर सिद्दत से अड़ा रहे।
क्या कहा, आज के सतयुग में ये बदमाशियाँ मिलना दुष्कर है?
चलो शर्तों को कुछ ढीला करते है, जो इन पर चल न पाये, पर बनना तो ऐसा ही चाहते है, अर्थार्त : जिनकी वैचारिक अवधारणा तो यही हो।
मित्रता की अपेक्षा से हाथ बढाया है, कृप्या टिप्पणी से अपना मत अवश्य प्रकाशित करें……
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निराला अंदाज ,
जवाब देंहटाएंआप का कुछ भी कहने का अंदाज बहुत निराला है .अगर मैं सोच लू की मैं आप की पोस्ट नही पढूंगा तो मैं निश्चित ही हार जाऊंगा
सोचना पड़ेगा..
जवाब देंहटाएंइतनी ईमानदारी कहाँ कि इस पोस्ट में वर्णित किसी भी सम्वर्ग में स्वयम् को वर्गीकृत कर पाऊँ!!
जवाब देंहटाएंअरे मित्र 'सुज्ञ' जी ऐसा मित्र मैं भी बहुत दिनों से तलाश रहा था. आज जा के मिला है आप के रूप मैं.
जवाब देंहटाएंआपका कहने का अंदाज़ निराला है ... अलग है ... बातों में दम है ....
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट में नयापन है .
जवाब देंहटाएंअनूठी और बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई
शायद इसी को innovation कहते हैं.
कुँवर कुसुमेश
ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com
क्षमा करने वाला कायर तो नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंबाकी पर अभी विचार कर रही हूँ
मजेदार स्वगत कथन -हा हा !
जवाब देंहटाएंअगर सूक्ष्म दृष्टि से ना देखें तो सारी बातें सही है , मान गए आपको
जवाब देंहटाएंऔर "मूर्ख" शब्द की नयी "ब्लोग जगत परिभाषा"
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग पर आता जाता रहता हूँ और अभी तक फोलो नहीं किया था :))
मैं अभी तक मूर्ख था :))
गौरव जी
जवाब देंहटाएंबस मुझे मिल गया मित्र।
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जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह !!!....आज से ही ये सभी दुर्गुण खुद में पैदा करने की कोशिश करुँगी।
Smiles !
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जवाब देंहटाएंबुद्धु : जिसका अपमान हो और उसके मन को पता भी न चले।
@ ब्लॉग जगत में फिलहाल इस तरह के बुद्दू नहीं मिलते, नये किस्म के बुद्धिजीवी मिलते हैं जिनका अपमान न भी करो तो भी उन्हें की गयी 'आलोचना' अपमान लगने लगती है.
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जवाब देंहटाएंआलसी :किसी को चोट पहुँचाने के लिये हाथ भी न उठा सके।
@ इस जगत में ऐसे आलसी कतई नहीं हैं. यहाँ इतने चुस्त लोग हैं कि एक घंटे में १०० ब्लोगों पर 'प्रशंसासूचक' टिप्पणियाँ डाल आते हैं.
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जवाब देंहटाएंडरपोक : गाली खाकर भी मौन रहे।
@ डरपोक भी कोई नहीं मिलेगा. 'गाली' कुछ असभ्यतासूचक शब्दों में देते हैं तो कुछ पोलिश लगे साहित्यिक शब्दों में. मौन रहने वालों को तो तटस्थ कहते हैं. जो अपनी दुकानदारी चलाने में किसी से भी बिगाड़ना नहीं चाहते. यदि मैंने किसी की गाली का उत्तर प्रतिगाली से दिया तो उसके फोलोअर आगे से हमारे ब्लॉग पर आना छोड़ देंगे.... इस कारण.
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जवाब देंहटाएंकायर : अपने साथ बुरा करने वाले को क्षमा कर दे।
@ अपने साथ बुरा करने वाले को क्षमा करने की हिम्मत अभी मैंने नहीं पायी. रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है "क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो" इसके दो अर्थ किये जा सकते हैं. पहला अर्थ : क्षमा उस विषैले सर्प को शोभा देती है जो विषैला है. मतलब [सर्प पक्ष से] यदि विषैला सर्प हमें काटने से बक्श दे तो वह क्षमा कहलायेगी. [हमारे पक्ष से] यदि हम विषैले सर्प को मारने से बक्शते हैं तो वह क्षमा कहलायेगा. मतलब शक्तिशाली द्वारा कमज़ोर को बक्शना क्षमा कहलाती है. लेकिन कमज़ोर शक्तिशाली को माफ़ करता है तो वह कायरता कहलायेगी............. समझे मित्र.
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जवाब देंहटाएंमूर्ख : कुछ भी करो, या कहो क्रोध ही न करे।
ऐसे मूर्ख भरपूर मात्रा में ढूंढें जा सकते हैं, पारखी नज़र होनी चाहिए बस, जो तटस्थ बने रहने में भलाई मानते हैं. राष्ट्रीय सोच की पोस्टों पर साम्प्रदायिक सोच मढ़कर बचने वाले ब्लोगर आपको पहचानने आने चाहिए. आपको शांतिवादी, कपोत छोडू, अपनी अचकनों पर गुलाब लगाने वाले, मिसेस माउंटबेटन [परपत्नी] के दीवाने से दोस्ती करनी चाहिए.
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जवाब देंहटाएंकडका : जलसेदार ग़ैरजरूरी खर्च न कर सके।
@ आप तो वो शर्त रख रहे हैं जो आज़ के समय में हमारी शान के खिलाफ है मैं बिना जलसा किये अपनी बेटी की शादी कैसे कर दूँ. बर्थ-दे तक में मैं केक पर हज़ारों खर्च कर देता हूँ, गुब्बारों से पूरा घर पाट देता हूँ, खाना इतनी मात्रा में बचता है, कि फैकना पड़ता है. और आप उसे ग़ैर ज़रूरी कहते हैं. जाओ नहीं करनी आपसे दोस्ती.
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जवाब देंहटाएंजिद्दी : अपने गुणों पर सिद्दत से अडा रहे।
भई मैं तो बहुमुखी प्रतिभा की धनी हूँ. विविधता मेरा गुण है. एक गुण को लेकर अडिग रहना मेरे स्वभाव में नहीं. मैं कविता लिखूँगा, निबंध लिखूँगा, कहानी भी लिखूँगा, आलोचना भी करूँगा. अनुवाद भी कर लेता हूँ चाहे उसके लिये जुगत ही क्यों न करनी पड़े. अरे हाँ, मैं तो नृत्य भी कर लेता हूँ, दरअसल मैं 'एक पाठशाला का गुरु हूँ'. और साथ में मार्शल आर्ट मेरा शौक है. मेरी जिद किसी एक गुण के लिये बावरी नहीं है. हुआ ना कई नौकाओं में एकसाथ सवारी करने वाला.
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प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंअधिसंख्य गुण होना तो अच्छी बात है। और स्पष्ठवादिता भी तो गुण ही है। और उसी पर जिद्दी भी हो, अतः मेरे मित्र ही हुए ना।
और 'क्षमा वीरस्य भूषणम्' वह तो क्षमा के लिये शक्तिशाली को ही शोभा देती है।