यत्न करें असीम, कहां निभ पाती है मैत्री।
अपेक्षाएं है अनंत, बडी नादां होती है मैत्री।
निश्छल नेह मिले कहां, मात्र दंभ पे चलती है मैत्री।
दमन के चलते है दांव, छल को ही छलती है मैत्री।
मित्रता आयेगी काम, अपेक्षाओं पे चलती है मैत्री।
जब भी पडते है काम, स्वार्थी बन लेती है मैत्री।
_______________________________________________
_______________________________________________
आज के युग का एक कड़वा सच!!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंमैंने तो अपने मित्रों को हमेशा प्यार किया, कभी कोई अपेक्षा ही नहीं रखी। मुझे अपने एक तरफ़ा प्यार पर गर्व है। और अपने मित्रों के साथ मैत्री पर। ...आभार।
.
@मित्रता आयेगी काम, अपेक्षाओं पे चलती है मैत्री!
जवाब देंहटाएंमैं इस बात को पूरी तरह नहीं समझ पाया हूँ ....आप [या कोई भी पाठक] जब भी समय मिले इसे कुछ खुल कर बताइये :)
यहाँ मैत्री मतलब फ्रेंडलीनेस और मित्रता मतलब फ्रेंडशिप ही है ना ?? :)
मैत्री और मित्रता (फ्रेंडशिप)समानार्थक है।
जवाब देंहटाएं@मित्रता आयेगी काम, अपेक्षाओं पे चलती है मैत्री!
अर्थात, दोस्ती किसी दिन काम आयेगी, मात्र इसी अपेक्षा पर आज मित्रता चलती है। पर खरे वक्त में स्वार्थ आडे आ जाता है।
मित्रता आयेगी काम, अपेक्षाओं पे चलती है मैत्री।
जवाब देंहटाएंयही सच है
दोस्ती किसी दिन काम आयेगी, मात्र इसी अपेक्षा पर आज मित्रता चलती है। पर खरे वक्त में स्वार्थ आडे आ जाता है।
जवाब देंहटाएं@सुज्ञ जी
आपकी उपरोक्त पंक्तियों से पूर्णतः सहमत हूँ
लगा जैसे कुछ अधूरा रह गया यहाँ ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमित्रता आयेगी काम, अपेक्षाओं पे चलती है मैत्री।
जवाब देंहटाएंजब भी पडते है काम, स्वार्थी बन लेती है मैत्री।
सुन्दर पंक्तियां ।
अपेक्षाओं पे चलती है मैत्री!
जवाब देंहटाएं@ मित्रता आयेगी काम, अपेक्षाओं पे चलती है मैत्री।
जवाब देंहटाएंजब भी पडते है काम, स्वार्थी बन लेती है मैत्री।
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी
तिन्हहिं विलोकत पातक भारी।
(रामचरित मानस ४/८)
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंहाँ .. अब मुझे कंसेप्ट [जो आप कहना चाहते हैं ] क्लीयर हुआ
बस एक ही लाइन पर मामला अटका था
कम शब्दों में लिखी गयी गहन अर्थ वाली इस पोस्ट के लिए आभार
जो भी सीखा है याद रखूंगा :)
.... बहुत अच्छे समझाया आपने और अमित जी की टिपण्णी ने भी
जवाब देंहटाएं[सुधार ]
जवाब देंहटाएं*बहुत अच्छे से समझाया ....
चैतन्य जी,
जवाब देंहटाएंदिव्या जी,
गौरव जी,
वर्मा जी,
महक जी,
सतीश जी,
सदा जी,
संजय जी,
अमित जी,
उत्साहवर्धन के लिये आभार॥
मैत्री निः स्वार्थ
जवाब देंहटाएंकणुआ सच .
कितनी अच्छी और सच्ची बात कही है आपने...बड़ी मुश्किल से मगर दोस्त मिलते हैं...
जवाब देंहटाएंनीरज
सत्य वचन
जवाब देंहटाएंजहाँ मित्रता है वहाँ इन चीज़ों का क्या काम .... सच्ची मित्रता स्वार्थ पर नही चल सकती ....
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है बहुत आपकी ....
मैंने तो अपने मित्रों को हमेशा प्यार किया, कभी कोई अपेक्षा ही नहीं रखी। मुझे अपने एक तरफ़ा प्यार पर गर्व है। और अपने मित्रों के साथ मैत्री पर।
जवाब देंहटाएंThanks Zeal for beautiful message.
अच्छी रचना... मित्रता को समझने में सहायक ..
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द सच का बखान है.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना.
आदरयोग्य सुज्ञ,
जवाब देंहटाएंमैं तो अपनी लापरवाही के कारण आपको भुला ही बैठा था, एक लाइन का आपका कमेन्ट कहीं दिल पर छू गया , स्नेह के लिए आभार !
Love wants no wall - जहां मिट गई है मंदिर-मस्जिद के बीच की दीवारमेरे ब्लॉग पर पढ़ें
जवाब देंहटाएं@सुज्ञ जी स्नेह के लिए आभार यह लेख़ मेरे उन दोस्तों के नाम जिन्होंने मेरा साथ हर मुश्किल मैं, हर बुरे वक़्त मैं दिया
जवाब देंहटाएंसुज्ञ @ आपने कहा हम अपने रिश्तों का चुनाव नहिं कर सकते पर दोस्ती चुन सकते हैं।
जवाब देंहटाएंमित्र मेरा भी यही माना है की जो तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढाए, उससे इनकार करना एक बड़ा नुकसान है. और सुज्ञ जी इस दुनिया मैं क्या रखा है, कुछ दिन हैं, प्यार , ईमानदारी,वफ़ा और शांति सी जी ले जो इंसान वही सफल है. आपके प्रेम सन्देश और दोस्ती का मैं स्वागत करता हूँ, आशा है