॥लक्ष्य॥
लक्ष्य है उँचा हमारा, हम विजय के गीत गाएँ।
चीर कर कठिनाईयों को, दीप बन हम जगमगाएं॥
तेज सूरज सा लिए हम, ,शुभ्रता शशि सी लिए हम।
पवन सा गति वेग लेकर, चरण यह आगे बढाएँ॥
हम न रूकना जानते है, हम न झुकना जानते है।
हो प्रबल संकल्प ऐसा, आपदाएँ सर झुकाएँ॥
हम अभय निर्मल निरामय, हैं अटल जैसे हिमालय।
हर कठिन जीवन घडी में फ़ूल बन हम मुस्कराएँ॥
हे प्रभु पा धर्म तेरा, हो गया अब नव सवेरा।
प्राण का भी अर्ध्य देकर, मृत्यु से अमरत्व पाएँ॥
-रचनाकार: अज्ञात
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हम न रूकना जानते है, हम न झुकना जानते है।
जवाब देंहटाएंहो प्रबल संकल्प ऐसा, आपदाएँ सर झुकाएँ॥
yahi vichar hamare man men hona chahiye .bahut sundar
"तेज सूरज सा लिए हम, शुभ्रता शशि सी लिए हम।
जवाब देंहटाएंपवन सा गति वेग लेकर, चरण यह आगे बढाएँ॥"
सारी प्रकृति के गुण [सूरज,शशि,पवन] साथ है , अब कौन रोकेगा ? :)
बेहद सुन्दर और ऊर्जावान विचार हैं :)
हम न रूकना जानते है, हम न झुकना जानते है ।
जवाब देंहटाएंहो प्रबल संकल्प ऐसा, आपदाएँ सर झुकाएँ ॥
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...सुज्ञ जी आभार
@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएं"अज्ञात" कोई "पेन नेम" तो नहीं है ??
अब रचनाकार का नाम जानने की रुचि बढ़ रही है :)
हंस राज जी! अगर यह किसी अज्ञात कवि की रचना है और यथावत उद्धृत की गई है तब तो ठीक है.किंतु यदि आपने इसे पुनः टाइप किया है तो कठिन और कठिनाई को सुधार लें. पूरी कविता एक स्फूर्ति प्रदान करती है. किसी भी व्यक्ति में इसको पढने के उपरांत अवसाद जाता रहता है! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुनील जी,
जवाब देंहटाएंगौरव जी,
महेन्द्र जी,
बेहद शुक्रिया!!
चैतन्य जी,
जवाब देंहटाएंइसे पुनः टाइप किया था, यह मेरी ही ॠटि थी। सुधार लिया गया।
मित्र ऐसे ही सदैव इंगित करें, अभी और सहायता की आवश्यकता रहेगी।
गौरव जी,
रचनाकार को अज्ञात ही दिखाना एक आदेश है।
इस कविता में कुछ ऐसा है जो देर तक सोचने पर मज़बूर करता हई
जवाब देंहटाएंमनोज
राजभाषा हिन्दी
हंसराज जी! बहुत सा ऐसा अज्ञात लोग हैं जो न जाने केतना मोती हमलोग के लिये छोड़ गए हैं... ई कबिता भी अईसा ही एक मोती है.. चैतन्य जी के सलाह पर कबिता में सुधार हो गया है, कृपया शीर्षक भी सुधार लें.. धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली कविता..
जवाब देंहटाएं"लक्ष्य है उँचा हमारा, हम विजय के गीत गाएँ।
जवाब देंहटाएंचीर कर कठिनाईयों को, दीप बन हम जगमगाएं॥"
कहते हैं कि विश्वास मानव मन का सच्चा सेनापति होता है, जो उसकी आत्म क्षमताओं को निरन्तर बढ़ाते हुए उत्साह व आशा को बनाये रखता है.....
ये कविता मन के उसी विश्वास को पुख्ता कर रही है......अत्योतम!
आभार्!
एक सुंदर भाव पूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंati sunder abhivyakti
जवाब देंहटाएंहे प्रभु पा धर्म तेरा, हो गया अब नव सवेरा।
जवाब देंहटाएंप्राण का भी अर्ध्य देकर, मृत्यु से अमरत्व पाएँ॥
जय हो !!
"हम न रूकना जानते है, हम न झुकना जानते है।
जवाब देंहटाएंहो प्रबल संकल्प ऐसा, आपदाएँ सर झुकाएँ॥"
aisa hi ho...
sabhi ko prerit karti praarthna...
kunwar ji,