एक दिन आचानक किसी संत से उसका सम्पर्क हुआ। वह संत से उक्त अशुभ विचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करने लगा। संत ने कहा अच्छा, अपना हाथ दिखाओं, हाथ देखकर संत भी चिंता में पड गये। संत बोले बुरे विचारों से मैं तुम्हारा पिंड तो छुडा देता, पर तुम्हारे पास समय बहुत ही कम है। आज से ठीक एक माह बाद तुम्हारी मृत्यु निश्चित है, इतने कम समय में तुम्हे कुत्सित विचारों से निजात कैसे दिला सकता हूं। और फ़िर तुम्हें भी तो तुम्हारी तैयारियां करनी होगी।
वह व्यक्ति चिंता में डूब गया। अब क्या होगा, चलो समय रहते यह मालूम तो हुआ कि मेरे पास समय कम है। वह घर और व्यवसाय को व्यवस्थित व नियोजीत करने में लग गया। परलोक के लिये पुण्य अर्जन की योजनाएं बनाने लगा, कि कदाचित परलोक हो तो पुण्य काम लगेगा। वह सभी से अच्छा व्यवहार करने लगा।
जब एक दिन शेष रहा तो उसने विचार किया, चलो एक बार संत के दर्शन कर लें। संत ने देखते ही कहा 'बडे शान्त नजर आ रहे हो, जबकि मात्र एक दिन शेष है'। अच्छा बताओ क्या इस अवधि में कोई सुरा-सुंदरी की योजना बनी क्या ? व्यक्ति का उत्तर था, महाराज जब मृत्यु समक्ष हो तो विलास कैसा? संत हंस दिये। और कहा वत्स अशुभ चिंतन से दूर रहने का मात्र एक ही उपाय है “मृत्यु निश्चित है यह चिंतन सदैव सम्मुख रखना चाहिए,और उसी ध्येय से प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करना चाहिए”।
इलाहाबाद में मालगाड़ी के डिब्बों पर बहुत सई बातें और गालियाँ भी लिखी देखी हैं बचपन में... किंतु एक दिन सफेद चॉक से लिखी ये इबारत ज़ेहन में घर कर गई...
जवाब देंहटाएंमृत्यु का सतत स्मरण ही अमरता का रह्स्य है.
अब मृत्यु से भय नहीं होता. सोचताह्हूँः
मौत आएगी तो एक पल की न मोहलत देगी
साँस लेने की न कम्बख़त इजाज़त देगी
जीते जी किसलिए फिर आपको नाशाद करें
ज़िंदगी एक भी पल क्यूँ तेरा बरबाद करें.
लम्हा लम्हा यही इकरार किया है मैंने!
ज़िंदगी तुझसे बहुत प्यार किया है मैंने!
मृत्यु सत्य है यही बात समझ में आ जाय मनुष्य -मनुष्य हो जाय.
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी बहुत शिक्षा प्रद कथा है सम सामयिक है अध्यात्मिक भी,सोशल भी,सामाजिक भी कितना वर्णन करू,समाज को समझाने क़े लिए बहुत अच्छी कहानी क़े लिए ,
बहुत-बहुत धन्यवाद.
बहुत ही उत्तम कोटि का सन्देश
जवाब देंहटाएंव्यक्ति आस्तिक हो या नास्तिक अगर अंतिम सत्य म्रत्यु को याद रक्खे तो गलत कार्य वो करेगा ही नही .
सुन्दर सन्देश के लिए आप का बहुत बहुत आभार
व्यक्ति यह स्मरण रखे तो कई तरह की परेशानियों से निजात पा सकता है..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विचार महात्माजी
जवाब देंहटाएंऔर सबसे बड़ी बात कि हम हमारा जीवन तो दूसरों के अहित में ही निकाल देतें है !!!!!!!
और जब कुछ समझ में आने लगता है हम काल के ग्रास बन चुके होते हैं .
देश हित में नीचे किये गए लिंक का लेख पढ़ कर सोचे की क्या हमारा भविष्य सुरक्षित है ?
जवाब देंहटाएंrahulworldofdream.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html
सुन्दर सन्देश के लिए आप का आभार !!!
जवाब देंहटाएंइसके विपरीत भी एक तरीक़ा है। वह यह कि जिससे मुक्ति पानी हो,उसे साक्षी भाव से देखें। आप उसे जितना गहरे पकड़ना चाहेंगे,वह उतनी ही तेज़ी से आपसे दूर भागेगा। एकदम प्रयोगसिद्ध।
जवाब देंहटाएंshikshaatmak sundar laghukatha.
जवाब देंहटाएंसलिल जी,
जवाब देंहटाएंसुबेदार जी,
अभिषेक जी,
अमित जी,
दिव्या जी,
राधारमण जी,
अरविंद जी,
आपकी सराहना मेरे लिये धरोहर है।
बात तो सही कही है संत ने पर .... इंसान की सोच ऐसी है की मृत्यु के द्वार पर बैठ कर भी वो सोचता है अभी कुछ समय और है उसके पास ... बहुत ही अच्छी बोध-कथा है ...
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