- आजीविका कर्म भी धर्म-प्रेरित चरित्र युक्त करना चाहिए।
- जीवन निर्वाह के साथ साथ जीवन निर्माण भी करना चाहिए।
- परिवार का निर्वाह गृहस्वामी बनकर नहीं बल्कि गृहन्यासी (ट्रस्टी) बनकर निस्पृह भाव से करना चाहिए।
- सत्कर्म से प्रतिष्ठा अर्जित करें व सद्चरित्र से विश्वस्त बनें।
- कथनी व करनी में समन्वय करें।
- कदैया (परदोषदर्शी) नहिं, सदैया (परगुणदर्शी) बने।
- सद्गुण अपनानें में स्वार्थी बनें, आपका चरित्र स्वतः परोपकारी बन जायेगा।
- इन्द्रिय विषयों व भावनात्मक आवेगों में संयम बरतें।
- उपकारी के प्रति कृतज्ञ भाव और अपकारी के प्रति समता भाव रखें।
- भोग-उपभोग को मर्यादित करके, संतोष चिंतन में उतरोत्तर वृद्धि करनी चाहिए।
- आय से अधिक खर्च करने वाला अन्ततः पछताता है।
- कर्ज़ लेकर दिखावा करना, शान्ती बेच कर संताप खरीदना है।
- प्रत्येक कार्य में लाभ हानि का विचार अवश्य करना चाहिए, फिर चाहे कार्य ‘वचन व्यवहार’ मात्र ही क्यों न हो।
- आजीविका-कार्य में जो साधारण सा झूठ व साधारण सा रोष विवशता से प्रयोग करना पडे, पश्चाताप चिंतन कर लेना चाहिए।
- राज्य विधान विरुद्ध कार्य (करचोरी, भ्रष्टाचार आदि) नहीं करना चाहिए। त्रृटिवश हो जाय तब भी ग्लानी भाव महसुस करना चाहिए।
सत्य, सुन्दर, सारगर्भित
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति जीवन में उतारने योग्य ...
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित सीख ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंऐसे सद्गुणों व सद्विचारों से जीवन जिसका अलंकृत हो, उससे ज्यादा भाग्यशाली कौन होगा. अच्छी सीख मिलती है आपके पोस्ट में आकर. सबको अमल करने की कोशिश भी करुँगी, मैं इतना तो मानती हूँ अब भी मुझमे बदलाव की जरूरत है.
जवाब देंहटाएंगौरव जी,
जवाब देंहटाएंडॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
संगीता जी दीदी,
आभार आपका इस सराहाना के लिये।
वन्दना !!!जी,
जवाब देंहटाएंसभी को बदलाव की आवश्यक्ता होती ही है, आखिर हमारा उद्देश्य उत्थान है उतरोत्तर उत्थान!!
आज फ़िर कुछ खास बातें सीखने को मिलीं... जो हमारे रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए बहुत ज़रूरी हैं...
जवाब देंहटाएंसत्य, सुन्दर, सारगर्भित
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर हमेशा नई ज्ञानपूर्ण बातें सीखने को मिलती है आभार आपका
जवाब देंहटाएंज्ञानपूर्ण बातें
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति जीवन में उतारने योग्य ...
सुंदर विचार ...
जवाब देंहटाएंसद्गुण अपनानें में स्वार्थी बनें, आपका चरित्र स्वतः परोपकारी बन जायेगा।
जवाब देंहटाएंसारी बातें जीवन में धारण करने वाली हैं ...शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है
पूजा जी,
जवाब देंहटाएंअमित जी,
दीपक सैनी जी,
अर्चना तीवारी जी,
केवल राम जी,
इस प्रस्तूति को सराहने के लिये आपका आभार।
एक एक बात अनुकरणीय!
जवाब देंहटाएंअनुकरणीय संदेश देती हुई सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस सभी बातों का पालन करना आसान नहीं पर अगर शुरुआत भी हो सके तो कितना अछा हो ....
जवाब देंहटाएंसत्य, सुन्दर, सारगर्भित
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना के लिए आपका, आत्मीय धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसत्य वचन.
जवाब देंहटाएंउपयोगी विचार ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंनासवा जी की बात को आगे बढ़ाते हुये...
जब यही सब पालन करना है, तो ज़िन्दगी में लुत्फ़ ही क्या रहा..?
भाई लोग पकड़-धकड़ कर मुझे पागलखाने न पहुँचा दें, तो ग़नीमत मानियेगा ।
प्रत्यक्षम किं प्रमाणम ? इनमे से कई सूत्र मैंने अपने जीवन में उतार रखा है, यकीन मानें क्रैक या हाफ़-माइँड माना जाता हूँ !
जीवन को अपने पूर्णता की और अग्रसर करने हेतु उत्तम विचार.......
जवाब देंहटाएंयदि अपना ले तो धरा स्वर्ग से भी अच्छी हो जाए .
साधुवाद
डा. अमर कुमार जी,
जवाब देंहटाएंआपका आना हर्षित कर गया, यह चाहत थी कई दिनो से!!, आभार बंधु!!
@प्रत्यक्षम् किं प्रमाणम्…॥ ?
गुणग्राहक हमेशा अर्ध-पागलो में खपते है, संवेदनशील लोग सनकी कहे जाते है। और सद-गुणवानो को तो विक्षिप्त ही करार दे दिया जाता है। क्योकि अधिसंख्य लोग सहज पतन को सामान्य व्यवहार की तरह लेते है, जबकि गुणो को स्वीकार करना तो बहाव के विपरित दृढ आस्था से तैरना है, जैसे बिना किसी दृष्यमान लाभ के कठोर परिश्रम करना। ऐसा कठिन कार्य सनकी ही कर पाते है। इसीलिये यह मुहावरा बना है शायद कि बैठे ठाले ‘कौन कहे आ बैल मुझे मार’
लेकिन कोयल काले रंग के उल्हाने से गाना क्यों छोडे!
जवाब देंहटाएंयह श्रंखला बहुत अच्छी और दुर्लभ है, बचपन में अधिकतर दुकानों पर लटके पोस्टर से ही ऐसे विचार और ज्ञान मिलता था ! सवाल अपने जीवन में उतारने का नहीं, कम से कम पढ़कर व्यवहार में लाने की सोंचे तो सही ...
केवल सोचने मात्र से भी प्रकाश दिखेगा !
बहुत दिन बाद आ पाया ..आगे शिकायत नहीं दूंगा ! आप यकीनन अच्छा कार्य कर रहे हैं सुज्ञ !
हार्दिक शुभकामनायें !
संतुलित जीवन हेतु बेहद अनुकरणीय दिशा निर्देश. आभार.
जवाब देंहटाएंसुंदर विचार।
जवाब देंहटाएंजैसे पानी की बूदें पत्थर पर भी छेद कर देती है वैसे ही अच्छे विचार पढ़ते-पढ़ते कुछ तो मन शुद्ध हो ही जाएगा। आपकी प्रयास वंदनीय है।
सुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित और जीवनोपयोगी विचार हैं !
आज ऐसे ही चिंतन की आवश्यकता है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सामयिक बात
जवाब देंहटाएंब्लागिंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला आधिकारिक रपट
@सलिल जी,
जवाब देंहटाएं@महेन्द्र वर्मा जी,
@दिगम्बर नासवा जी,
@अरविन्द जी
@अरविन्द जांगिड जी,
@विरेन्द्र जी,
@दिव्या जी,
@दीपक डुडेज़ा जी,
@सतीश जी,
@सुब्रमणियन जी,
@देवेन्द्र जी,
@मर्मज्ञ जी,
@गिरिश जी 'मुकुल'
आप सभी का आभार, सराहना के लिये।
हर वाक्य में सुन्दर सारगर्भित सन्देश छुपा है....जीवन में उतारने योग्य
जवाब देंहटाएंआपने जो भी मार्ग बताया ..उसपर चलकर ही स्वयं के उत्थान का आकलन किया जा सकता है . प्रेरक .पोस्ट
जवाब देंहटाएंजानने और सीखने योग्य बातें |दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंआशा