(विचारधाराओं पर वर्तमान में उपस्थित वाद विवाद को समर्पित दोहांजली।)
॥व्यर्थ वाद विवाद॥
बौधिक उलझे तर्क में, करकर वाद विवाद।
धर्म तत्व जाने नहीं, करे समय बर्बाद॥1॥
सद्भाग्य को स्वश्रम कहे, दुर्भाग्य पर विवाद ।
कर्मफ़ल जाने नहिं, व्यर्थ तर्क सम्वाद ॥2॥
कल तक जो बोते रहे, काट रहे है लोग ।
कर्मों के अनुरूप ही, भुगत रहे हैं भोग ॥3॥
कर्मों के मत पुछ रे, कैसे कैसे योग ।
भ्रांति कि हम भोग रहे, पर हमें भोगते भोग ॥4॥
ज्ञान बिना सब विफ़ल है, तन मन वाणी योग।
ज्ञान सहित आराधना, अक्षय सुख संयोग॥5॥
धर्म तत्व जाने नहीं, करे समय बर्बाद॥1॥
सद्भाग्य को स्वश्रम कहे, दुर्भाग्य पर विवाद ।
कर्मफ़ल जाने नहिं, व्यर्थ तर्क सम्वाद ॥2॥
कल तक जो बोते रहे, काट रहे है लोग ।
कर्मों के अनुरूप ही, भुगत रहे हैं भोग ॥3॥
कर्मों के मत पुछ रे, कैसे कैसे योग ।
भ्रांति कि हम भोग रहे, पर हमें भोगते भोग ॥4॥
ज्ञान बिना सब विफ़ल है, तन मन वाणी योग।
ज्ञान सहित आराधना, अक्षय सुख संयोग॥5॥
अच्छे दोहे हैं
जवाब देंहटाएंअच्छे और एकदम सटीक दोहे हैं...... बहुत-बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंक्या आपने स्वयं लिखें हैं?
शाह नवाज साहब,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
इन दोहो पर क्या और कोई क्लेम कर रहा है ?
कृपया नीचे लिखे लिंक पर मेरी टिप्पणी पढने का कष्ट करें :-
जवाब देंहटाएंhttp://www.janokti.com/2010/07/28/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8/comment-page-1/#comment-2286
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
अवश्य जीतू जी,
जवाब देंहटाएंआप की पदछाप का शुक्रिया!!
ज्ञानी उलझे तर्क में, कर कर वाद विवाद।
जवाब देंहटाएंधर्म तत्व जाने नहिं, करे समय बर्बाद॥1॥
सद्भाग्य को स्वश्रम कहे, दुर्भाग्य पर विवाद ।
कर्मफ़ल जाने नहिं, व्यर्थ तर्क सम्वाद ॥2॥
वाह्! अति सुन्दर दोहावली....जिसने धर्म तत्व जान लिया तो वो भला तर्क-वितर्क में क्यूं उलझेगा. वाद-प्रतिवाद तो वही करेगा जो अज्ञानी होगा....जिसकी आँखों पर माया भ्रम का पर्दा पडा है.
शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंआप गहरे पेठ, भाव पकड लाए,
आभार आपका, आपने मेरे भावों को आवाज दी।
कोई क्लेम नहीं कर रहा है भाई...... मुझे दोहे बहुत पसंद आए इसलिए कन्फर्म कर रहा था.... :-)
जवाब देंहटाएंशाह नवाज़ साहब,
जवाब देंहटाएंअन्यथा न लें,मैने भी अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकृति देने हेतू ही वह वाक्य रचना की थी कि 'कोई क्लेम नहीं कर रहा'
बधाई आपकी पसन्द भी सात्विक है,आपका आभार मित्र
एक आस्तिकता नास्तिकता विवाद पर मैने कुछ यह टिप्पनी की………
जवाब देंहटाएंमैं ईश्वर के भार को नहिं ढोता हूं,
फ़िर भी नास्तिकता का रोना नहिं रोता हूं।
मुझे पूर्ण भरोसा है मेरे,
कृत कर्म ही अनायास
मुझे असफ़लता दे जाते है।
आगे सफ़लता के विश्वास में,
शुभ कर्म किये जाता हूं।
मैं ईश्वर के भार को नहिं ढोता हूं,
फ़िर भी नास्तिकता का रोना नहिं रोता हूं।
व्यर्थ का वाद विवाद करने वाला ज्ञानी कहा हुआ वो तो अज्ञानी हुआ | कर्मो का फल कहा मिलता है देखिये देश के भ्रष्ट नेताओ अफसरों को सब के सब मजे से भोग रहे है इनको इनके कर्मो का फल कब मिलेगा क्या मरने के बाद ही | बहुत अच्छे दोहे |
जवाब देंहटाएंअन्शुमाला जी,
जवाब देंहटाएंकर्म सिद्धांत गहन है,इतना ही अटल भी।
भ्रष्ट नेताओ अफसरों के जो मजे हम देख रहे हैं सम्भव है उनके लिये भारी दुखों का प्रबंध हो रहा हो,वे किसी पूर्वकृत अच्छे कर्म का उपभोग कर उसे समाप्त कर रहे हों, क्षणिक दृश्यमान मज़े को सुख मान लेना भ्रम भी हो सकता है।
बाहर से घमंड व रूतबा दिखाने वाले अंदर से त्राहित भयभीत भी हो सकते है।
दोहों की प्रशस्ति के लिये आभार
पंडित जी,
जवाब देंहटाएंअन्शुमाला जी,
आपने ध्यान दिलाया तो 'ज्ञानी' शब्द दोहे में बदल रहा हूं।
यह वाकई त्रुटि थी। बहूत बहूत आभार।
आप तो बहुत ही अच्छे कबी लग रहे है धर्म क़े बिबाद पर कबिता क़े लिएबहुत-बहुत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
मुझे प्रोत्साहन का कोई भी अवसर नहिं जाने देते आप सुबेदार जी
जवाब देंहटाएंआभार व्यक्त करता हूं।
वाद विवाद पर अच्छा संवाद स्थापित किया है आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएं…………..
पाँच मुँह वाला नाग?
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
आभार जाकिर भाई।
जवाब देंहटाएंज्ञान बिना सब विफल है ...
जवाब देंहटाएंधर्म तत्त्व जाने नहीं ...करे समय बर्बाद ...
बहुत अच्छी ज्ञानवान रचना ...!
वाणी जी,
जवाब देंहटाएंआभार आपका