26 जुलाई 2010

सत्य-क्षमा

चलिये चल कर देखिये, सच का दामन थाम ।
साहस का यह काम है, किन्तु सुखद परिणाम ॥1॥

धर्म तत्व में मूढता, संसार तर्क में शूर ।
दुखदायक कारकों पर!, गारव और गरूर? ॥2॥

क्षमा भाव वरदान है, वैर भाव ही शाप ।
परोपकार बस पुण्य है, पर पीडन ही पाप ॥3॥

9 टिप्‍पणियां:

  1. आप तो भारतीय तत्वक्ज्ञान से युक्त कबिता लिख रहे है ,
    बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  2. बहुत अच्छी शिक्षा दी गई है इस रचना में...धन्यवाद!

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  3. अरुणा जी,
    प्रोत्साहन के लिये आभार

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  4. बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद रचना ! आपकी भाषा और शैली प्रशंसनीय है !

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  5. इन्द्र जी,
    ब्लोग नामों की व्यस्तता के बीच आपने दर्शन दिये,अच्छ लगा !!

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  6. बहुत अच्छी शिक्षा दी गई है इस रचना में...धन्यवाद!

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