sundar
सचमुच जीवन एक सुयोग ही तो है !
अरविन्द जी,आपके आने से मन हर्षित हो गया।
बहुत सुन्दर!
@ साझा-निधि जग मानकर, यथा योग्य ही भोग ।सारे फसाद की जड़ ही आवश्यकता से अधिक संग्रह प्रवृत्ति है..........बेहतरीन ज्ञान
समीर जी,अमीत जी, सही फ़र्माया आपने, यह जगत हमारे सहित सभी जीवों की सम्पत्ति है।सम्पदा का हम दोहन न करें,आवश्यक उपयोग ही करें। यही भाव था।
sundar
जवाब देंहटाएंसचमुच जीवन एक सुयोग ही तो है !
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,आपके आने से मन हर्षित हो गया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएं@ साझा-निधि जग मानकर, यथा योग्य ही भोग ।
जवाब देंहटाएंसारे फसाद की जड़ ही आवश्यकता से अधिक संग्रह प्रवृत्ति है..........बेहतरीन ज्ञान
समीर जी,
जवाब देंहटाएंअमीत जी,
सही फ़र्माया आपने, यह जगत हमारे सहित सभी जीवों की सम्पत्ति है।
सम्पदा का हम दोहन न करें,आवश्यक उपयोग ही करें। यही भाव था।