25 जुलाई 2010

सुख-दुःख

दुख के दिनों की दीनता, सुख के दिनों का दंभ ।
मानवता की मौत सम,   तुच्छ बोध प्रारंभ ॥1॥

कर्म शत्रु   संघर्ष से,   जगे   सुप्त सौभाग ।
दुख में दर्द लुप्त रहे, सुख में जगे विराग ॥2॥


दरिद्रता में दयावान बन,   वैभव में विनयवान ।
सतवचनों पर श्रद्धावान बन, पुरूषार्थ चढे परवान ॥3॥

8 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी सीख दोहों के माध्यम से.

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  2. बहुत बढ़िया ..
    सीख देते दोहे

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  3. सुख में जगे विराग
    बेहतर

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  4. समीर जी,
    वर्मा जी,
    अरविन्द जी,

    आभार, प्रोत्साहन के लिए, आपार खुशी हुई आप पधारे।

    जवाब देंहटाएं
  5. आपका दोहा बहुत ही उपदेशनात्मक है
    बहुत अच्छा लगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. पारूल जी,
    सुबेदार जी,

    बहुत बहुत धन्यवाद!!

    जवाब देंहटाएं
  7. @ दरिद्रता में दयावान बन, वैभव में विनयवान ।
    अगर सब कोई ऐसा ही करें तो क्या ही अच्छा हो

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