सदाचारों में दानशीलता का महत्व निर्विवाद है। इस्लाम में जक़ात फ़र्ज़ है तो हिन्दुत्व में पुण्यकर्म। बुद्धिजीवी इसे कहते हैं जरूरतमंद की मदद!!
इस बात को सभी मानते है कि दान देकर जताना नहीं चाहिए, दाएं हाथ से दो तो बाएं हाथ को खबर भी न हो। वैसे तो दान देकर शुक्रगुजारी पाने की अपेक्षा निर्थक है। लेकिन दाता भले न चाहे, लेने वाले को अहसान फ़रामोश बिककुल नहीं होना चाहिए, जब वह अहसानफ़रामोश बनता है तो, न केवल दाता का दान देने का हौसला पस्त होता है, बल्कि दान का महत्व भी घट जाता है।
जैसे नमाज जक़ात आदि हम पर फ़र्ज़ है,और जब हम इन्हें अदा कर रहे हो, तब उसका महिमावर्धन भी करते है,क्यो? क्योकि इस शुभ कर्म को देखकर अन्य लोग भी प्रोत्साहित हो। और ऐसे फ़र्ज़वान की प्रशंसा भी करते है,ताकि उसका व अन्य का हौसला बुलंद रहे। भले उसका फ़र्ज़ था, पर मालिक ने उसे मुक़रर तो किया है, अपनी रहमतों के लिये। साथ ही इन अच्छे कार्यो में कोई बाधक बनता है, दान के महत्व को खण्डित करने का प्रयास करता है वह भी दोष का भागी बनता है। ईष्या व द्वेष ग्रसित होकर जो पुण्य कर्म को छोटा व निरुत्साहित करता है,वह भी गुनाह है।मालिक की आज्ञानुसार नेकीओं के प्रसार को अवरूद्ध करना नाफ़र्मानी है।
इस बात को सभी मानते है कि दान देकर जताना नहीं चाहिए, दाएं हाथ से दो तो बाएं हाथ को खबर भी न हो। वैसे तो दान देकर शुक्रगुजारी पाने की अपेक्षा निर्थक है। लेकिन दाता भले न चाहे, लेने वाले को अहसान फ़रामोश बिककुल नहीं होना चाहिए, जब वह अहसानफ़रामोश बनता है तो, न केवल दाता का दान देने का हौसला पस्त होता है, बल्कि दान का महत्व भी घट जाता है।
जैसे नमाज जक़ात आदि हम पर फ़र्ज़ है,और जब हम इन्हें अदा कर रहे हो, तब उसका महिमावर्धन भी करते है,क्यो? क्योकि इस शुभ कर्म को देखकर अन्य लोग भी प्रोत्साहित हो। और ऐसे फ़र्ज़वान की प्रशंसा भी करते है,ताकि उसका व अन्य का हौसला बुलंद रहे। भले उसका फ़र्ज़ था, पर मालिक ने उसे मुक़रर तो किया है, अपनी रहमतों के लिये। साथ ही इन अच्छे कार्यो में कोई बाधक बनता है, दान के महत्व को खण्डित करने का प्रयास करता है वह भी दोष का भागी बनता है। ईष्या व द्वेष ग्रसित होकर जो पुण्य कर्म को छोटा व निरुत्साहित करता है,वह भी गुनाह है।मालिक की आज्ञानुसार नेकीओं के प्रसार को अवरूद्ध करना नाफ़र्मानी है।
पानी बढे जो नाव में, घर में बढे जो दाम।
दोनों हाथ उडेलिये, यही अक़्ल का काम॥
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जवाब देंहटाएंमाननीय,
जवाब देंहटाएंआजकल फर्ज अदायगी करता ही कौन है ,खैर आपने पोस्ट में बहुत अच्छी बात उठाई
धन्यवाद
हाँ ये सुज्ञ का अर्थ क्या होता है?
सुविज्ञ का अर्थ तो पता है सुज्ञ नहीं सुना
आभार,अलका जी,
जवाब देंहटाएंआपके पठन से यह लेख सार्थक हुआ।
सुज्ञ का अर्थ है जिसे सरलता से बोध हो,समझ ले। सुबोध ही समझ लिजिये।
सुविज्ञ का दावा ठोक नहिं सकता।
achhe vichar.
जवाब देंहटाएंबहुत मार्गदर्शी और सुंदर लेख. और शुक्रिया सुज्ञ का अर्थ बताने के लिए. और आभारी हू मेरे ब्लॉग पर आने और अच्छी टिपण्णी देने के लिए.
जवाब देंहटाएं@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंमैं आपको हम सबके साझा ब्लॉग का member और follower बनने के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ, कृपया इससे जुडें, इसे आप जैसे लोगों की आवश्यकता है
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महक
@सुज्ञ जी ,
जवाब देंहटाएंइस common blog के लिए अपनी e -mail id और सहमति प्रदान करने के लिए आपका बहुत-२ शुक्रगुजार हूँ
मैंने ब्लॉग के members की list में आपकी e -mail id डाल दी है ,अब आपकी e -mail id पर इसका invitation आया होगा, कृपया इसे स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें
आपके सहयोग के लिए एक बार फिर बहुत-२ धन्यवाद
महक
सुज्ञ जी ,
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महक
दान और भिक्षा मे फर्क बताने की किरपा करे ?
जवाब देंहटाएंदान लेने का पात्र कोन है ?
दान देने से पहले क्या ये सोचा जाना जरूरी है की आप के दिए गए धन का सदुपयोग होगा की नहीं |
http://sciencemodelsinhindi.blogspot.com/
दर्शन ज़ी,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम तो धन्यवाद,आपने हमारे सुज्ञद्वार पर दर्शन देकर हमें कृतार्थ किया।
दान और भिक्षा मे फर्क :-
दान के कई रूप और कई भाव प्रकार है। धन,वस्तु,पशु,धान्य आदि के द्वारा दान होता है,इसके अलावा,विद्यादान,ज्ञानदान,अभयदान आदि कई प्रकार से हो सकता है।
भिक्षा हमेशा धान्यादि भोजन सामग्री से होती है,वस्तुतः आज के भीख के अर्थ में नहिं जो श्रम के आलस्य से मांगी जाती है। बल्कि भिक्षा उन साधु-सन्तों को प्रदान की जाती है,जो भोजन उत्पादन से निर्माण में सम्भावित हिंसा एवं संग्रह के दोष से बचने के प्रयोजन से प्राप्त की जाती है।
प्रत्येक जरूरतमंद दान पानें का अधिकारी है।
न केवल दान देने से पहले सोचा जाना जरूरी है बल्कि परखा जाना भी जरूरी है,अन्यथा दान,उसके उद्देश्य के निष्फ़ल होने की सम्भावनाएं रहती है,जैसे आप से दान लेकर उस राशी का उपयोग कोई दूसरो का हक़ छिनने हेतु करे। जीवदया के हेतु दान लेकर कोई जंगल-वन आदि साफ़ करने पर लगाये। और हमारा दान अधिक हिंसा का कारण बने।
nice post
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर विचार।
जवाब देंहटाएंइन विचारों से अवगत कराने हेतु आभार।
कृपया मेरी मेल आईडी zakirlko@gmail.com पर संपर्क करने का कष्ट करें, जिससे 'तस्लीम' का चित्र पहेली विजेता प्रमाण पत्र आपको मेल से भेजा जा सके।
बहुत मार्गदर्शी और सुंदर लेख.
जवाब देंहटाएंमंगलवार 08/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
आभार, विभा जी
हटाएंमंगलवार 08/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
विभा जी, आपका बहुत बहुत आभार!!
हटाएंसत्य कथन ... अज कल दुनिया में दुराचार बढ़ रह कारन यही लोग सदाचार भूल रहे है .. स्वार्थ परक हो रहे है ..लिए हुआ अहसान को भुला देते है .. उत्तम विचार :)
जवाब देंहटाएंआभार, सुनिता जी!!
हटाएंपानी बढे जो नाव में, घर में बढे जो दाम।
जवाब देंहटाएंदोनों हाथ उडेलिये, यही अक़्ल का काम॥
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें