एक ब्लॉगर कपडे सिलवाने के उद्देश्य से दर्जी के पास गया। दर्जी अपने काम में व्यस्त था। उसे व्यस्त देखकर वह उसका निरिक्षण करने लगा, उसने देखा वह सुई जैसी छोटी चीज को सम्हाल कर अपने कॉलर में लगा देता और कैंची को वह अपनें पांव तले दबाकर रखता था।
दर्जी दार्शनिक था, उसनें कहा- वैसे तो उद्देश्य यह है कि आवश्यकता होने पर सहज उपल्ब्ध रहे, किन्तु यह वस्तुएँ अपने गुण-स्वभाव के कारण ही उपयुक्त स्थान पाती है। सुई जोडने का कार्य करती है अतः वह कॉलर में स्थान पाती है और कैची काटने का, जुदा करने का कार्य करती है अतः वह पैरो तले स्थान पाती है।
ब्लॉगर सोचने लगा कितना गूढ रहस्य है, सही तो है ब्लॉगर भी अपने इन्ही गुणो के कारण उचित महत्व प्राप्त करते है। जो लोग जोडने का कार्य करते है, ब्लॉगजगत में सम्मान पाते है। और जो तोडने का कार्य करते है, उन्हें कोई सभ्य ब्लॉगर महत्व नहीं देता।
दर्जी दार्शनिक था, उसनें कहा- वैसे तो उद्देश्य यह है कि आवश्यकता होने पर सहज उपल्ब्ध रहे, किन्तु यह वस्तुएँ अपने गुण-स्वभाव के कारण ही उपयुक्त स्थान पाती है। सुई जोडने का कार्य करती है अतः वह कॉलर में स्थान पाती है और कैची काटने का, जुदा करने का कार्य करती है अतः वह पैरो तले स्थान पाती है।
ब्लॉगर सोचने लगा कितना गूढ रहस्य है, सही तो है ब्लॉगर भी अपने इन्ही गुणो के कारण उचित महत्व प्राप्त करते है। जो लोग जोडने का कार्य करते है, ब्लॉगजगत में सम्मान पाते है। और जो तोडने का कार्य करते है, उन्हें कोई सभ्य ब्लॉगर महत्व नहीं देता।
जैसे गुण वैसा स्थान, अनावश्यक हाय-तौबा मचाने का क्या फायदा?
कैंची, आरा, दुष्टजन जुरे देत विलगाय !
सुई,सुहागा,संतजन बिछुरे देत मिलाय !!
सुई,सुहागा,संतजन बिछुरे देत मिलाय !!
एक अच्छी पोस्ट सकारात्मक पहल .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही आप ने इस कहावत के जरिये, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची बात !
जवाब देंहटाएंvhaan hnsraaj bhaayi bhut bdaa flsfaa aapne hmen sikha diya shukriya . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त सन्देश देती हुई ये पोस्ट मुझे बहुत प्यारी लगी,सुज्ञ जी.
जवाब देंहटाएंबड़ी सटीक और सही बात .
वक़्त की नजाकत को समझते हुए प्रेरणादायक विचार , जीवन में ढालने योग्य ...आपका बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक कह रहे हैं आपक ! शुभकामनायें भाई जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सन्देश !
जवाब देंहटाएंतभी तो कहा गया है ----
कैंची, आरा, दुष्टजन जुरे देत विलगाय !
सुई,सुहागा,संतजन बिछुरे देत मिलाय !!
आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .
जवाब देंहटाएं* किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?
हाँ ! क्यों नहीं !
कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.
सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.
इसमें भी एक अच्छी बात है.
अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?
सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.
पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.
सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.
आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.
बिल्कुल सही बात कही किन्तु हर व्यक्ति को उसके नजरिये से देखिये तो उसे लगता है की वो सही ही कर रहा है | क्या कोई खुद को गलत मानता है क्या |
जवाब देंहटाएंअंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंभले न कैंची स्वयं को सुई समझे,उपयोग करने वाला तो बेहतर जानता है,कौन क्या कर रहा है।
अमित जी,
जवाब देंहटाएंआपका यह छंद साभार पोस्ट में सम्मलित कर रहा हूँ।
धन्यवाद इस शानदार टिप्पणी के लिये।
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जवाब देंहटाएंसूई न केवल सिलती ही है बल्कि कपडे कस जाने पर उन्हें उधेड़कर दोबारा सिलती भी है. — कुछ ब्लोगर ऐसे भी तो हो सकते हैं. सूई का बेसिक काम सिलने का ही है.
सूई और कैंची से आपने ब्लोगर्स स्वभावों के कपडे क़तर दिए.
कमाल का है यह प्रसंग. पसंद आया.
यहाँ आप सूई और कैंची से स्वभाव बता रहे हैं.
दूसरी तरफ संजय अनेजा जी 'प्याज़' से तुलना कर रहे हैं.
लगता है कि 'ब्लोगर-स्वभाव' पर शोध चल रहा है.
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सुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की जितनी तारीफ़ की जाय कम है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
very fantastic post. Small but interesting and with a moral message.
जवाब देंहटाएंसटीक बात की है सुज्ञ जी, बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
अंधविश्वासी तथा मूर्ख में फर्क।
मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।
सटीक बात की है.... बधाई।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है ब्लोगर जब जोड़ने और तोड़ने में लग जाते हैं तो अपने लेखन कर्म से विमुख हो जाते हैं। इसलिए जोड़ने, तोड़ने , सम्मान और अपमान से अलग रहकर, बस साहित्य की सेवा करनी चाहिए ब्लोगर्स को।
आभार।
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सार्थक पोस्ट... आपने सही कहा है, लेकिन हर इंसान अपने स्वभाव के मुताबिक़ ही तो काम करता है...
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी! अनमोल वचन!! रहीम ने भी सुई को तलवार के ऊपर बतलाया है! वैसे एक और गुण है सुई में, वो सबको एक आँख से देखती है, समदर्शी है!!
जवाब देंहटाएंsugya jee.... sachmuch ek gahari baat kahi aapne... blog jagat ke logon ke saamne unke bhale kee baat ek uttam udaharan ke sath prastut kee hai aapne...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही और सच्ची बात्।
जवाब देंहटाएंसही कहा जी
जवाब देंहटाएंइस प्रेरक पोस्ट के लिये आभार
प्रणाम स्वीकार करें
Very meaningful post. Congratulations Sir ji.....
जवाब देंहटाएं'ब्लोगर और दर्जी' की लघु कथा में सुन्दर सन्देश है .
जवाब देंहटाएंआभार.
सुन्दर सन्देश देता हुआ सार्थक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर एवं गहन भावों के साथ प्रेरक प्रस्तुति ...नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संदेश,आभार। नववर्ष की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंक्या बात है सुज्ञ जी, बिल्कुल आनन्द देने वाली बात कह दी। बहुत ही अच्छी प्रेरक बात।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपने तो इस लघुकथ्य के जरिये ब्लागजगत का दर्शन दिखला दिया
अच्छी सीख देने वाली पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
जवाब देंहटाएंacchhee soch darshaati है आपकी पोस्ट ... बहुत अच्छा लिखा है ...
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