मानव है तो मानवता की कद्र कुछ कीजिए।
अभावग्रस्त बंधुओ पर थोडा ध्यान दीजिए।
जो सुबह खाते और शाम भूखे सोते है
पानी की जगह अक्सर आंसू पीते है।
आंसू उनके उमडता सैलाब हो न जाए।
और देश के बेटे कहीं यूं तेज़ाब हो न जाए।
इसलिए मैं लिखता अन्तिम दीन के लिए।
ब्लॉग मैं लिखता हूँ इस यकीन के लिए॥
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बहुत ही नेक काम के लिए लिखते हैं आप....
जवाब देंहटाएंहमेशा ही लिखते रहे...
नमन गुरुदेव.. इतना कुछ कहा है आपने कि अभिभूत हैं हम अभी तक... सचमुच ये विचार सच्चे मोतियों की तरह हैं..
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावना ...
जवाब देंहटाएंमानव है तो मानवता की कद्र कुछ कीजिए।
जवाब देंहटाएंअभावग्रस्त बंधुओ पर थोडा ध्यान दीजिए।
सही सीख देती सही कविता.
सुंदर विचार .... प्रभावी सोच
जवाब देंहटाएंविचार तो सुन्दर है पर यथार्थ में हम इसे लागु नहीं कर पाते है |
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है..
जवाब देंहटाएंशेखर जी,
जवाब देंहटाएंआना जी,
सम्वेदना बंधु,
सराहना के लिये आभार जी
संगीता स्वरुप जी,
जवाब देंहटाएंकुसुमेश जी,
डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
बहुत बहुत आभार प्रोत्साहन के लिये
अंशुमाला जी,
जवाब देंहटाएंभारतीय नागरिक जी,
आभार आपका,सराहना के लिए।
बहुत सुंदर विचार पेश किया आप ने कविता के रुप मे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छी बात है जी प्रयास यूं ही जारी रखें
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंआपका ये यकीन बरकरार रहे....
जो सुबह खाते और शाम भूखे सोते है
जवाब देंहटाएंपानी की जगह अक्सर आंसू पीते है।
आंसू उनके उमडता सैलाब हो न जाए।
और देश के बेटे कहीं यूं तेज़ाब हो न जाए ..
सच है जिस रफ़्तार से देश बदल रहा है .... संवेदनाएँ मार रही हैं ... जल्दी ही ऐसा हो जाएगा अगर नही जागे तो ...
प्रयास जारी रखिये।
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