15 दिसंबर 2010

गंतव्य की दुविधा



यात्री पैदल रवाना हुआ, अंधेरी रात का समय, हाथ में एक छोटी सी टॉर्च। मन में विकल्प उठा, मुझे पांच मील जाना है,और इस टॉर्च की रोशनी तो मात्र पांच छः फ़ुट ही पडती है। दूरी पांच मील लम्बी और प्रकाश की दूरी-सीमा अतिन्यून। कैसे जा पाऊंगा? न तो पूरा मार्ग ही प्रकाशमान हो रहा है न गंतव्य ही नजर आ रहा है। वह तर्क से विचलित हुआ, और पुनः घर  में लौट आया। पिता ने पुछा क्यों लौट आये? उसने अपने तर्क दिए - "मैं मार्ग ही पूरा नहीं देख पा रहा, मात्र छः फ़ुट प्रकाश के साधन से पांच मील यात्रा कैसे सम्भव है। बिना स्थल को देखे कैसे निर्धारित करूँ गंतव्य का अस्तित्व है या नहीं।" पिता ने सर पीट लिया……
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36 टिप्‍पणियां:

  1. ओह! दुविधा तो सही है आखिर बिना देखे बेचारा जाये कहाँ जैसे ज़िन्दगी भर हर रास्ता देखा हो बिना देखे ही और तब ही उस पर चला हो……………जब कुछ ना करना हो तो बहुत तर्क याद आ जाते हैं।

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  2. कर्महीन लोग ही तर्क का सहारा लेते है।
    जो कर्मषील है वो साधनो की परवाह नही करते अपनी राह पर बढ जाते है और मंजिल को पाते है

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  3. बहुत अच्छी सार्थक प्रस्तुति .......

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  4. दुविधा तो वास्तविक है... हम तो भगवान् भरोसे कभी कभी बिना टॉर्च के ही चल देते हैं....

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  5. हा हा हा .. सही है . सच में ... आनंद आ गया पढ़ के :))

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  6. दुबिधा उन्हे होती हे जो कर्म नही करना चाहते, कर्मशील तो पहाड काट कर भी रास्ता बना लेते हे. धन्यवाद

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  7. पिता ने सही सिर पीट लिया ....

    जैसे जैसे आगे बढ़ता टॉर्च कि रोशनी भी आगे के ६ फुट दिखाती ...दूर घना अन्धकार दिखाई देता है पर हाथ में लालटेन ले कर चलते जाओ तो मार्ग प्रशस्त रहता है ...

    प्रेरित करती अच्छी पोस्ट

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  8. संगीता जी,दीदी

    आपने सही बोध प्रस्तूत किया।

    हमारी बुद्धि और विवेक रूपी टॉर्च से जितना भी ज्ञान प्रकाशित होता है,बस बढते चलो आगे का अज्ञान अंधकार भी दूर होता चला जायेगा।

    आभार

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  9. वाह!......चंद शब्दों में बड़ी बात कह दी आपने.

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  10. बहुत खूब सुज्ञ जी , ऐसे ज्ञानी अक्सर मिलते हैं ...शुभकामनायें

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  11. शायद ज्ञान की रोशनी में चलना उसने अभी सीखा नहीं

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  12. सुन्दर बोधकथा। जब राह पर चले ही नही तो रास्ता है य नही कैसे पता चलेगा। बधाई।

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  13. बहुत खूब अक्सर हम लक्ष्य या मंजिल की और कुछ दूर चलकर ही लौट आते है! आपने अपनी इस छोटी सी कथा के माध्यम से गहरी बात कही!आभार .....

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  14. वन्दना गुप्ता जी,
    दीपक सैनी जी,
    सलील जी,
    गौरव जी,
    और नागरिक जी।

    कथा का उसके बोध में व्याख्या देने के लिये, और सराहना के लिये आभार

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  15. कविता रावत जी,
    शेखर सुमन जी,
    राज भाटिया जी,
    अंशुमाला जी,
    वीना जी,

    आभार आपनें पढा सराहा और सार प्रस्तूत किया।

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  16. वन्दना महतो जी,
    सतीश सक्सेना जी,
    कुँवर कुशुमेश जी,
    निर्मला कपिला जी,
    अमरजीत जी,

    आभार,
    होता यह है कि हम हमारे ज्ञान की अल्प सीमा मानकर अनंत ज्ञान की तरफ़ गति करना छोड देते है। ज्ञानियों द्वारा सूचित लक्ष्य पर हम संशयवादी बन जाते है। और सत्य से सदैव अनभिज्ञ ही रहते है।

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  17. .

    यदि ऐसा विवेकहीन यात्री मोटर गाड़ी से भी जाता
    तब भी वह लौट आता.
    मन की गाड़ी में खोखले तर्क जब आ बैठते हैं
    तब सारथी विवेक उतर भागता है.

    .

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  18. प्रतुल वशिष्ठ जी,

    सही फरमाया आपने। आभार

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  19. इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
    आकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
    क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  20. अकेले ही होती है जीवन की शुरुआत शक्ति है पास तो ज़माना देगा साथ ! अपनी कम्ज़ोरी को छुपाने के लिए तर्क तो कई दिए जा सकते हैं !

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  21. सुग्य जी,

    टार्च का प्रकाश भले ही ज्यादा दूर तक न पहुँच पाए मगर आपकी लघु कथा ने मन बीथिका को प्रकाशित कर दिया !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  22. सुज्ञ भाई, बहुत गहरी बात कह दी आपने इस छोटी सी कथा के माध्‍यम से। बधाई स्‍वीकारें।

    आपसे एक बात पूछना चाहूँगा, कोई नाराजगी है क्‍या।
    ---------
    आपका सुनहरा भविष्‍यफल, सिर्फ आपके लिए।
    खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्‍या जानते हैं?

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  23. @वन्दना जी,
    -पोस्ट का चर्चा मंच पर चर्चा के लिये आभार

    @जगदीश बाली जी,
    -सराहना के लिये आभार

    @आशुतोष मिश्र जी,
    -शुभकामनाओं के लिये आभार

    @ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी,
    -मर्म प्रकाशित करने के लिये आभार

    @ज़ाकिर भाई,
    -बधाई के लिये शुक्रिया!!
    नहिं मित्र, कोई नाराजगी नहिं है

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  24. achee laghu katha है ... सोचने और samajhne की shakti का prayog कुछ log नहीं karte हैं ... ..

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  25. जिसके पास विवेक ही न हो , उसकी तो इश्वर भी मदद नहीं कर सकता।

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  26. प्रतुल जी की बात से सहमत ...... मौजूदा कमेंट्स में से सबसे सार्थक विचार लगा ....

    @सुज्ञ जी

    नया ज्ञान [पोस्ट] कब मिलेगा ? :)

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  27. वाह, बोध कथा जैसी. मुक्तिबोध का 'एक लालटेन के सहारे'

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  28. इतने संक्षेप में कितनी बड़ी बात कह दी आपने...

    कितना बड़ा सीख दे दिया....यदि इस सीख को स्मरण में जागृत रखा जाय तो जीवन पार है...

    बहुत ही प्रभावित किया है आपकी लेखनी ने..

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  29. बहुत ही प्रेरक अभिव्‍यक्ति ...।

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  30. मन मै आगे जाने की चाह होती तो टोर्च की भी जरुरत न पड़ती ......... अच्छी प्रस्तुति

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  31. सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
    यह हमारी आकाशगंगा है,
    सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
    कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
    आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
    किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
    मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
    आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
    मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
    उनमें से एक है पृथ्वी,
    जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
    इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
    भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
    मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
    भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
    एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
    नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
    शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
    यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
    -डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

    नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...

    जय हिंद...

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  32. सच है जो वर्तमान में नहीं जी सकते वे भविष्‍य की दौड़ में भी पीछे छूट जाते हैं। सब कुछ एक साथ ही प्राप्‍त होने की चाहना व्‍यक्ति को कही का नहीं छोड़ती। अच्‍छी और सार्थक कथा।

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