26 अगस्त 2010

क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है


सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।
क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है॥

गुड की ढेली पाकर चुहा, बन बैठा पंसारी।
पंसारिन नमक पे गुड का, पानी चढा रही है॥

कपि के हाथ लगा है अबतो, शांत पडा वो पत्थर।
शांति भी विचलित अपना, कोप बढा रही है

 
हिंसा ने ओढा है जब से, शांति का चोला।
अहिंसा मन ही मन अबतो, बडबडा रही है॥

सियारिन जान गई जब करूणा की कीमत।
मासूम हिरनी पर हिंसक आरोप चढा रही है॥

सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।
क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है॥

34 टिप्‍पणियां:

  1. गुड की ढेली पाकर चुहा, बन बैठा पंसारी।
    पंसारिन नमक पे गुड का, पानी चढा रही है।

    सही बताइयें तो देश की येही स्तिथि है.......

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  2. अब का करी ससुर एही तो कलजुग बा

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  3. सही तकलीफ व्यक्त की है आपने , बेहतरीन सामयिक अभिव्यक्ति , मगर आप जैसे लोगों के होते फर्क आएगा ....
    शुभकामनायें !

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  4. जो आपने लिखा है ...बहुत सही कटाक्ष है...
    लेकिन सन्दर्भ क्या है..ई हम नहीं समझे हैं....

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  5. सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।
    क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है।!

    हँसराज जी, एक बेहद सामयिक एवं सटीक अभिव्यक्ति....
    अक्ल के अन्धों को छोड दिया जाए, तो जो कुछ भी यहाँ घट रहा है उसे तो एक आँख का अंधा भी बखूबी महसूस कर सकता है.....

    जवाब देंहटाएं
  6. सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।
    क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है।!

    हँसराज जी, एक बेहद सामयिक एवं सटीक अभिव्यक्ति....
    अक्ल के अन्धों को छोड दिया जाए, तो जो कुछ भी यहाँ घट रहा है उसे तो एक आँख का अंधा भी बखूबी महसूस कर सकता है.....

    जवाब देंहटाएं
  7. bhut khub aaj ki krurtaa or chdm yaani dohre kirdaar dohri soch kaa khub khulaasaa kiyaa he bdhaayi ho akhtar khan akela kota rajsthan

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  8. हिंसा ने ओढा है जब से, शांति का चोला।
    अहिंसा मन ही मन अबतो, बडबडा रही है।

    सियारिन जान गई जब करूणा की कीमत।
    मासूम हिरनी पर हिंसक आरोप चढा रही है।

    सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।
    क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है।




    @आदरणीय एवं प्रिय सुज्ञ जी

    आपने तो पूरी की पूरी हकीकत बयान कर दी अपनी इस एक रचना के ज़रिये, बहुतों को आईना दिखाने की काबिलियत है आपकी इस कविता में

    मेरी तरफ से आपको ढेरों बधाई

    और एक निवेदन भी- कृपया इस रचना को ब्लॉग-संसद पर भी publish करें

    आभार

    महक

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  9. गुड की ढेली पाकर चुहा, बन बैठा पंसारी।
    पंसारिन नमक पे गुड का, पानी चढा रही है।

    बखूबी, सुन्दर कटाक्ष किया है

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  10. सियारिन जान गई जब करूणा की कीमत।
    मासूम हिरनी पर हिंसक आरोप चढा रही है।
    क्या बात है ....!!
    सन्दर्भ दे दिया होता तो कविता और भी सार्थक हो जाती..
    (निर्मल हास्य )

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  11. कवि अपनी कविता का सन्दर्भ देता दिखा है कहीं. जरा ब्लॉग से ही उदहारण दें समझाएं मुझ जैसे कवितायेँ कम समझने वाले व्यक्ति को.

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  12. कवि के शुभचिंतक ही कुरेद रहे है,कवि के घाव? :)
    किस किस को बताएं हम दिल के छाले,
    दुआ कर रहे हैं दुआ करने वाले।

    कवि भुखे पेट भजन कर लेता है,पर यहां वहां मुंह नहिं मारता।
    भुखा रहकर भी भावनाएं समझे उसका नाम कवि।

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  13. .
    कवी सुज्ञ को हमारा नमन इस बढ़िया कविता के लिए। इसे पढ़कर एक ही ख़याल आया.... बिल्ली के संग बिल्ले भी अब भगवा अपना रहे हैं।
    .

    जवाब देंहटाएं
  14. मुझे आपका ब्लॉग बहुत बढ़िया लगा! बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!
    मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है !

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  15. गुड की ढेली पाकर चुहा, बन बैठा पंसारी।
    पंसारिन नमक पे गुड का, पानी चढा रही है
    हंस जी आपके ब्लॉग पर आज आ कर आनंद आ गया...क्या खूब लिखते हैं आप...वाह...बधाई स्वीकार करें..

    नीरज

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  16. दीपक जी,
    संचालक जी :विचार शून्य,
    सतीश सक्सेना,
    स्वप्न मंजूषा जी,
    पं.डी.के.शर्मा"वत्स" जी,
    अखतर साहब,
    महक जी,
    अनमिका जी,
    एम वर्मा जी,
    वाणी गीत जी,
    विरेंद्र सिंह चौहान जी,
    दिव्या जी,
    उर्मि चक्रवर्ती जी,
    संगीता स्वरुप जी (दीदी),
    नीरज गोस्वामी जी,
    कविता के भाव को सराहने के लिये आपका बहुत बहुत आभार

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  17. आजकल यही हाल है। क्या किया जाए।

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  18. बहुत अच्छा कबिता क़े माध्यम से आपने सटीक हमला किया है
    धन्यवाद

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  19. bahut hi sarthak rachna...vastusthiti ko darshati huye

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  20. पढ़ तो लिया,पर कहने को कुछ नहीं।

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  21. सोचने को मजबूर करती हुई रचना.....

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  22. सुबेदार जी,
    पी के सिंह जी,
    शाहनवाज़ जी,

    भाव को समझने के लिये आभार्।

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  23. राजेश जी,
    भाव पहूंच गया तो बस,सफ़ल हुआ कार्य।

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  24. कपि के हाथ लगा है अबतो, शांत पडा वो पत्थर।
    शांति भी विचलित अपना, कोप बढा रही है ...

    आज के हालात का सही विवेचन किया है ......बहुत खूब ......

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  25. पुनः पढ़ी आपकी कविता, बहुत अच्छी लगी। बहुत सुन्दर तरीके से अभिव्यक्ति ।

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  26. राजभाषा हिंदी संचलक श्री,
    एस एम जी,
    दिगम्बर नासवा जी,
    दिव्या जी
    मृदुला प्रधान जी,

    अभिव्यक्ति को संबल प्रदान करने के लिये आभार!!

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  27. बहुत ही सुन्दर ,
    देश की हालत आप ने कविता के माद्यम से एक दम सटीक वर्णित की है

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  28. सोचने को मजबूर करती हुई रचना.....

    जवाब देंहटाएं

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