ब्लोग जगत में आपसी वैमनस्य का फ़ैलना बहुत ही दुखद है। इस तरह ब्लोग जगत का वातावरण खराब हो, उससे पहले ही सभी ब्लोगरों को जाग्रत हो जाना चाहिए और कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए। क्योंकि हिन्दी ब्लोग जगत का सौहार्दपूर्ण वातावरण हिन्दी ब्लोगिंग के अस्तित्व का प्रश्न है।
बे-शक ब्लोग आपकी निजि डायरी है, आप जो चाहें लिखने के लिये स्वतंत्र है, पर चुंकि आपके लेख सार्वजनिक रूप से प्रकाशित होते है, इसिलिये आपका नैतिक उत्तरदायित्व बनता है कि आपके लेखों से वैमनस्य न फ़ैले।
आपका अपने लेखों और पाठकों के प्रति इमानदार होना जरूरी है।
आपके धर्म प्रचार के ब्लोग हो सकते है, लेकिन इमानदारी इसमें हैं कि आपका पाठक आपके ब्लोग पर आते ही जान ले कि यह धर्म प्रचार का ब्लोग है और मुझे यहां से क्या जानकारी प्राप्त हो सकती है।
आप अपने धर्म के बारे में फ़ैली भ्रंतियों को दूर करने के लिये भी ब्लोग चलाएं, पर इन भ्रातियों को अपने अपने ध्रर्म-ग्रंथो के संदर्भो से दूर करें,अपनी अच्छाईयां बताएं, उससे अतिक्रमण न करें,
किसी धर्म विशेष की बुराईयां निकालना, अपने धर्म को बेहतर साबित करने का तर्क नहिं हो सकता। सच्चाई लोगों तक पहुंचाना चाहते है तो वह उदाह्रण दिजिये कि देखो ये लोग, धर्म में दिखाए फ़लां उपदेश का पालन करते है, इसलिये देखो कितने शांत,सह्र्दय, व मानवीय है। कथनी का ठोस उदाह्रण अनुकरण करने वालों की करनी से ही पेश होता है।
अपनी विधारधारा पर बेशक तर्क करो, पर तर्कों को कुतर्कों के स्तर तक न ले जाओ।
विरोधी विचारधारा का सम्मान करो, असहमति को भी आदर दो। सहमत करने के प्रयास करते हुए भी संयमित रहें। प्रयास विफ़ल होते देख, आवेश में आकर बहसबाज़ी पर न उतरें, चर्चा छोड दें, यह कोई हार जीत का प्रश्न नहिं न किसी मान का सवाल होता है।
एक बात हमेशा याद रखें कि कंई चीजों पर हजारों सालों से चर्चा हो रही है, कई विद्वान खप गये,निराकरण आज तक नहिं आया, वह आपसे भी आने वाला नहिं। ऐसे मामलों को मात्र सार्थक चर्चा तक ही सीमित रखें, क्यो व्यर्थ श्रम खोना व द्वेष बढाना।
सभी को मिलकर स्वघोषित आचार संहिता का निर्माण करना चाहिए।
बे-शक ब्लोग आपकी निजि डायरी है, आप जो चाहें लिखने के लिये स्वतंत्र है, पर चुंकि आपके लेख सार्वजनिक रूप से प्रकाशित होते है, इसिलिये आपका नैतिक उत्तरदायित्व बनता है कि आपके लेखों से वैमनस्य न फ़ैले।
आपका अपने लेखों और पाठकों के प्रति इमानदार होना जरूरी है।
आपके धर्म प्रचार के ब्लोग हो सकते है, लेकिन इमानदारी इसमें हैं कि आपका पाठक आपके ब्लोग पर आते ही जान ले कि यह धर्म प्रचार का ब्लोग है और मुझे यहां से क्या जानकारी प्राप्त हो सकती है।
आप अपने धर्म के बारे में फ़ैली भ्रंतियों को दूर करने के लिये भी ब्लोग चलाएं, पर इन भ्रातियों को अपने अपने ध्रर्म-ग्रंथो के संदर्भो से दूर करें,अपनी अच्छाईयां बताएं, उससे अतिक्रमण न करें,
किसी धर्म विशेष की बुराईयां निकालना, अपने धर्म को बेहतर साबित करने का तर्क नहिं हो सकता। सच्चाई लोगों तक पहुंचाना चाहते है तो वह उदाह्रण दिजिये कि देखो ये लोग, धर्म में दिखाए फ़लां उपदेश का पालन करते है, इसलिये देखो कितने शांत,सह्र्दय, व मानवीय है। कथनी का ठोस उदाह्रण अनुकरण करने वालों की करनी से ही पेश होता है।
अपनी विधारधारा पर बेशक तर्क करो, पर तर्कों को कुतर्कों के स्तर तक न ले जाओ।
विरोधी विचारधारा का सम्मान करो, असहमति को भी आदर दो। सहमत करने के प्रयास करते हुए भी संयमित रहें। प्रयास विफ़ल होते देख, आवेश में आकर बहसबाज़ी पर न उतरें, चर्चा छोड दें, यह कोई हार जीत का प्रश्न नहिं न किसी मान का सवाल होता है।
एक बात हमेशा याद रखें कि कंई चीजों पर हजारों सालों से चर्चा हो रही है, कई विद्वान खप गये,निराकरण आज तक नहिं आया, वह आपसे भी आने वाला नहिं। ऐसे मामलों को मात्र सार्थक चर्चा तक ही सीमित रखें, क्यो व्यर्थ श्रम खोना व द्वेष बढाना।
सभी को मिलकर स्वघोषित आचार संहिता का निर्माण करना चाहिए।
सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंदिल की बात कह दी आपने.
पर ब्लोग जगत के लिख्खाड़ भला किसी सीमा में बंधना स्वीकार करंगे क्या?
आपकी बात ही दुहराने का मन हो आया है ;-
इस चौपाल में मुक्त मन से विचारधारओ पर चर्चा आमंत्रित है। विचारधाराएं दार्शनिक,राजनैतिक या सामाजिक हो सकती हैं। और हमारी मान्यताएं पारम्परिक, पुर्वाग्रह युक्त हो सकती है। लेकिन हमारी इच्छा सत्य व तथ्य स्वीकार करने की होनी चहिए। बस, खंडन अथवा मण्डन प्रमाणिक, सार्थक और तर्कपूर्ण हो ताकि हमारी विचारधाराएं ग्रन्थियो से अलिप्त हो निर्मल बने।
विचारणीय...
जवाब देंहटाएंसलील जी,
जवाब देंहटाएंमेरे यह लिखने को साहस प्रदान कर दिया आपने।
आज ही शायद न हो,कल यह आवश्यकता बन पडेगी।
धन्यवाद फ़िर्दौस जी,बहूत दिनों बाद दर्शन हुए।
जवाब देंहटाएंआपने तो आज कहा है, हम तो काफ़ी समय पहले कह चुके…
जवाब देंहटाएं1) धर्म का प्रचार करना है तो "अपने" धर्म का प्रचार करो, दूसरे के धर्म में अपनी नाक मत घुसाओ…।
2) पढ़ना है तो तुम्हारे ग्रन्थ और किताबें पढ़ो, यहाँ-वहाँ जाकर "फ़ोकटिया लिंक" मत पेलो, न ही फ़ालतू के चैलेंज उछालो…
3) तुम्हारे भगवान को तुम श्रेष्ठ और अन्तिम मानते रहो, लेकिन उनकी तुलना दूसरे धर्म के भगवान से ना करो…
4) वेद-कुरान और बाइबल एकदम अलग-अलग बातें हैं, इनका घालमेल करने, इनकी तुलना करने, एक-दूसरे को श्रेष्ठ बताना बन्द करें।
5) "वेद और कुरान" को एक जैसा और बराबर बताने की नापाक और घृणित कोशिश तो बिलकुल न करो…
6) धार्मिक लेख और राजनैतिक लेख में अन्तर कर सकने लायक दिमाग भी पैदा करो…
फ़िलहाल इतना ही… समय कम है बाकी बाद में…
यदि सभी ऐसा करते हैं तो शान्ति बनी रहेगी…
बढ़िया सुझाव है!
जवाब देंहटाएंचिपलूनकर जी से पूरी सहमति.
जवाब देंहटाएंहम तो पहले ही से इसका पालन कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंजिशान भाई,
जवाब देंहटाएंजहां तक मेरी आपसे यदा कदा चर्चा हुई है, मै सहमत हूं आपने सदा संयम से काम लिया है। आभार।
ब्लागिंग के वर्तमान परिदृ्श्य को देखते हुए अचार संहिता बहुत आवश्यक हो गई है....
जवाब देंहटाएंबस देखना ये है कि कुछ लोग इसका पालन कर पाते हैं या नहीं...
bahut achhi baat uthayee.
जवाब देंहटाएंek bahut hi achha vishya chuna aapne.iska prastutikaran bahut hi pasand aaya.
जवाब देंहटाएंpoonam
आभार………॥
जवाब देंहटाएंश्री सलिल जी,
सुश्री फ़िरदौस जी,
श्री सुरेश चिपलूनकर जी,
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी,
संचालक श्री, ‘विचार शून्य’,
श्री जिशान जैदी साहब,
पंडित डी.के.शर्मा"वत्स" जी,
श्री पी के सिंह जी,
श्रीमति पूनम श्रीवास्तव जी,
अचार संहिता की आवश्यकता को बल प्रदान करने का शुक्रिया।
इस विषय को आप अपने अपने ब्लोग्स पर भी उठाते रहें,
स्वनियंत्रित हिंदी ब्लोग आचार लागू हो।
आचार संहिताए तो आम आदमी के लिए बनाती हैं न और ब्लागर्स आम आदमी तो हैं नहीं ,इनसे बड़ा विद्वान कोई होता कहाँ है
जवाब देंहटाएंबहुत क्षोभ मेरे मन में है, ज्यादा लिखूंगी नहीं क्योंकि वातावरण दूषित होने का खतरा है
आपने नमक के बारे में पूछा था
नमक ५ प्रकार के होते हैं-
सांभर नमक, काला नमक, सेंधा नमक, विरियासंचर नमक, कचिया नमक
इनकी डिटेल कभी पोस्ट करूंगी
वैसे अगर हम सेंधा नमक खाते रहें तो कभी गठिया और घुटने में दर्द नहीं होगा ,ह्रदय मजबूत रहेगा
अलका जी,
जवाब देंहटाएंपहले तो आपके पधारने और प्रतिक्रिया का शुक्रिया।
बडी खुशी हुई आपने मेरी पृच्छा का याद रखकर यहां चलकर समाधान दिया, अभिभुत हो गया, पुनः आभार!!
कितनी अजीब बात है ..हम तो यही समझते थे कि यहाँ सभी पढ़े-लिखे ...सुलझे हुए लोग हैं ..
जवाब देंहटाएंहम एक दूसरे से कुछ सीखेंगे...
लेकिन यहाँ आकर लगा इतना भी आसन नहीं है...
चलिए ये भी करके देखिये...अगर कुछ सुधार हो जाए तो क्यूँ नहीं...
nice blog...
जवाब देंहटाएंMeri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..
Banned Area News : Food poisoning deaths stalk Bengal village
कुछ लोग, अपने आपको, अपनी मूर्ख मंडली और अनपढ़ शिष्यों के मध्य गुरुस्वरूप में स्थापित करने के पर्यटन में औरों की आस्थाओं को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं ! यह कोई नयी बात नहीं है, ऐसे प्रयास कबीर के समय से भी पहले से, होते आये हैं ! अफ़सोस है कि इन स्वयंभू विद्वानों को आधुनिक विश्व के परिवेश और वातावरण का कोई ज्ञान नहीं है ! संवेदनशील भावनाओं को छेड़ने का प्रयास करते इन मूर्ख अज्ञानियों को नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं ! अतः इन लोगों को देश हित में समझाना बेहद आवश्यक है कि ऐसा कर निस्संदेह वे अपने और इस विशाल परिवार का अकल्पनीय नुक्सान कर रहे हैं ! आने वाली पीढ़ी के प्रति यह अमानवीय होगा ! हर हालत में इस बढ़ते हुए वैमनस्य को रोकना होगा जिससे हमारे बच्चे हँसते हुए अपना जीवन एक अच्छे समाज में व्यतीत कर पायें ! अतः आप जैसे लोगों के द्वारा ऐसे प्रयास आवश्यक तथा सराहनीय हैं !
जवाब देंहटाएंमुझे बेहद अफ़सोस है की आपकी एक बढ़िया पोस्ट को पढने से वंचित रहा , आपसे अनुरोध है कि ऐसे विषयों जो समाज से सम्बंधित हों और जिन्हें आप आवश्यक मानते हों कृपया मेल से भेज दिया करें जिससे सही समय पर अच्छी लेखनी को पढ़ सकूं !
सतीश जी,
जवाब देंहटाएंआभार आपका,
मैं नियमित आपको पढता हूं, और ॠजु विचारों की कद्र करता हूं।
अवश्य मेल करूंगा। पुनः आभार
किसी धर्म विशेष के बारे में ,पूर्वाग्रह और दुर्भावना से ग्रस्त होकर कुछ भी कहने और लिखने को मैं अनुचित और निंदनीय काम मानता हूँ .और सदा से इसका विरोधी रहा हूँ .परन्तु जब कोई भ्रामक प्रचार से अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ और दूसरों के धर्म को निकृष्ट सिद्ध करने का प्रयास करता है और लोगों को धर्म परिवारं के लिए प्रेरित करता है ,तो उसके दावों की सत्यता परखना जरूरी हो जाता है.वास्तविकता लोगों के सामने लाना ,मैं अपना नैतिक कर्तव्य मानता हूँ .लोगों को फ़साने से बचाना ही मेरा धर्म है.चाहे वह कोई भी हो.झूठ और पाखण्ड का भंडाफोड़ करना जरूरी है .ताकि लोग पहिले से सचेत हो जाएँ .और बाद में पछताना न पड़े .
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