कहते थे देश लूटे फ़िरंगी,
दर्द से युवा बने थे ज़ंगी।
उन वीरों की औलादों का,
जीना हुआ मुहाल।
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
जाति से पिछडे थे शोषित,
अगडे रहे है शोषक घोषित।
अब शोषक शोषित एक हुए है,
देश हुआ बदहाल।
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
जब गरीब पसीना बहाते,
राजा राजस्व से महल बनाते।
नेताओं ने अब खून पीकर,
साम्राज्य किये बहाल।
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
जब महाजन खूब कमाते,
सूदखोर बनिया कहलाते।
आज बैंको ने चार्जखोरी से,
चली पुरानी चाल,
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
हां यही आज़ादी पाई,
मनमर्ज़ी की लूट चलाई।
स्वार्थ बस स्वाधीन हुआ,
सब सत्ता का बवाल।
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
दर्द से युवा बने थे ज़ंगी।
उन वीरों की औलादों का,
जीना हुआ मुहाल।
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
जाति से पिछडे थे शोषित,
अगडे रहे है शोषक घोषित।
अब शोषक शोषित एक हुए है,
देश हुआ बदहाल।
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
जब गरीब पसीना बहाते,
राजा राजस्व से महल बनाते।
नेताओं ने अब खून पीकर,
साम्राज्य किये बहाल।
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
जब महाजन खूब कमाते,
सूदखोर बनिया कहलाते।
आज बैंको ने चार्जखोरी से,
चली पुरानी चाल,
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
हां यही आज़ादी पाई,
मनमर्ज़ी की लूट चलाई।
स्वार्थ बस स्वाधीन हुआ,
सब सत्ता का बवाल।
लूट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
कहे की आज़ादी आधी -अधूरी आज़ादी
जवाब देंहटाएंअब भी हिन्दू न. दो क़ा नागरिक होने को मजबूर
धन्यवाद बहुत अच्छी कबिता
एतना कड़वा सच.. एतना सच्चा बयान के लिए!! दुस्यंत कुमार जी याद आ गए
जवाब देंहटाएंयह आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
चेहरे पे इसके चोट का गहरा निशान है.
अऊर आपका चोट साफ नजर आता है!! आपको धन्यवाद
सलिल जी
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा नें तो गद्गद कर दिया। आभार आपके प्रोत्साहन के लिये
लूंट का यह लोकतंत्र है,
जवाब देंहटाएंपावे सो निहाल॥
बहुत बढिया
आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
जवाब देंहटाएंआपको ६४वीं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंसाथ ही मेरे ब्लाग पर आने के लिए आपका धन्यावाद. इसी तरह मुझे प्रोत्साहित करते रहे.
आभार
बेहतरीन रचना! प्रत्येक पंक्ति सत्य का आईना दिखाती हुई.....
जवाब देंहटाएंजो जन्मों जन्मों से कंगले थे, नेता बन मालोमाल हुए
सम्मान भी इनका होने लगा, धन-दौलत से पामाल हुए
मोटर-गाडी, नौकर-चाकर, सब सुविधा से खुशहाल हुए
देश जाए चाहे रसातल में, पर ये तो आज निहाल हुए
इनका सब काम निराला हुआ, जबसे आजादी आई है
सिर्फ नेताओं की कौम ही है, जिसने आजादी पाई है !!
पंडित जी,
जवाब देंहटाएंआपने तो मेरे भाव ही स्पष्ठ कर दिये,आभार
इसी लिये आज़ादी की शुभकामनाएं व्यंग्य सी लगती है।
जिनके लिये शुभ रही वह कौम कुटिल सी लगती है।
सलिल जी,
जवाब देंहटाएंज़ख्म इतने कि हर ज़ख्म पर दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान फ़िर भी कम निकले।
जाति से पिछडे थे शोषित,
जवाब देंहटाएंअगडे रहे है शोषक घोषित।
अब शोषक शोषित एक हुए है,
देश हुआ बदहाल।
लूंट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥
बहुत बढ़िया ....
संगीता दी,
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिये आभार।
हां मन मर्ज़ी का लूटने की तो आज़ादी है .. चाहे नेताओं को ही सही ....
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