15 अगस्त 2010

बुढापा, कोई लेवे तो थने बेच दूं॥

(यह राजस्थानी गीत, “मोरिया आछो बोळ्यो रे……” लय पर आधारित है।)

बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं, बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं।
थांरी कौडी नहिं लेवुं रे छदाम, बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं ॥

बुढापा पहली तो उंचै महलां बैठतां, बुढापा पहली तो उंचै महलां बैठतां। बैठतां, बैठतां
अबै तो डेरा थांरा पोळियाँ रे मांय, बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं॥ थांरी कौडी……।

बुढापा पहली तो हिंगळू ढोळिए पोढतां, बुढापा पहली तो हिंगळू ढोळिए पोढतां। पोढतां, पोढतां,
अबै तो फ़ाटो राळो ने टूटी खाट, बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं॥ थांरी कौडी……।

बुढापा पहली तो भरिया चौटे बैठतां, बुढापा पहली तो भरिया चौटे बैठता। बैठतां, बैठतां
अबै तो देहली भी डांगी नहिं जाय, बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं॥ थांरी कौडी……।

बुढापा पहली तो षटरस भोजन ज़ीमतां, बुढापा पहली तो षटरस भोजन ज़ीमतां। ज़ीमतां, ज़ीमतां
अबै तो लूखा टूकडा ने खाटी छास, बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं॥ थांरी कौडी……।

बुढापा पहली तो घर का हंस हंस बोलतां, बुढापा पहली तो घर का हंस हंस बोलतां। बोलतां, बोलतां
अबै तो रोयां भी पूछे नहिं सार, बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं॥ थांरी कौडी……।

बुढापा पहली तो धर्म ध्यान ना कियो, बुढापा पहली तो धर्म ध्यान ना कियो। ना कियो, ना कियो
अबै तो होवै है गहरो पश्च्याताप, बुढापा कोई लेवे तो थने बेच दूं॥ थांरी कौडी……।

रचना शब्दकार -अज्ञात

13 टिप्‍पणियां:

  1. बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
    मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
    --
    मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
    --
    वन्दे मातरम्!

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  2. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपको बहुत बहुत बधाई .कृपया हम उन कारणों को न उभरने दें जो परतंत्रता के लिए ज़िम्मेदार है . जय-हिंद

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  3. अजी बुढापा कौन लेना चाहेगा ....

    अच्छी प्रस्तुति

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  4. अच्छी रचना।

    राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।

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  5. अर्थ तो उतना समझा नहीं परन्तु यह देखकर अचम्भा हुआ कि बुढापे जैसी अवांछनीय अवस्था भी छोड़ने के बजाय बेचने की बात सोची जा रही है.

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  6. अनुराग जी,

    भाव तो यही है,अवांछनीय अवस्था से त्रस्त बुढापा कह रहा है,कोई खरीददार मिले तो बेच के जान छुडाऊं।

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  7. बुढापो अठे कबाड़ी बी कोनी लेवे भाया।
    बुढापा रो खरीददा तो बाजार म्हे भी कोनी।
    जवानी तो तो हाथो हाथ बिक जावे।

    चोखी कविताई है

    घणी घणी राम राम

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  8. राजस्थानी गीत तो हमेशा ही अच्छे होते हैं, शुक्रिया.

    मेरा ब्लॉग
    खूबसूरत, लेकिन पराई युवती को निहारने से बचें
    http://iamsheheryar.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html

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  9. jजो आ के ना जाए वो बुढ़ापा कौन लेगा;))

    बढिया लिखा है।

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  10. बुढ़ापा न लेर कायें करसी कोई ...
    चोखो लाग्यो गीत ...!

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