14 अगस्त 2010

लूंट हुई स्वाधीन

कहते थे देश लूटे फ़िरंगी,
दर्द से युवा बने थे ज़ंगी।
उन वीरों की औलादों का,
जीना हुआ मुहाल।
लूंट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥


जाति से पिछडे थे शोषित,
अगडे रहे है शोषक घोषित।
अब शोषक शोषित एक हुए है,
देश हुआ बदहाल।
लूंट का यह लोकतंत्र है,
पावे सो निहाल॥

23 टिप्‍पणियां:

  1. कविता के विषय में इतना ही कहूँगा की जो मुझे समझ आ जाय उसे मैं सुन्दर कविता मानता हूँ और आपकी कविता मुझे बेहतरीन लगी.

    जवाब देंहटाएं
  2. अब शोषक शोषित एक हुए है,
    फिर भी शोषण जारी है

    जवाब देंहटाएं
  3. ॰ सलील जी,
    ॰ पांडेय जी,

    आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  4. कविवर माणिक वर्मा जी,(सही है ना?)

    अब शोषण भी लोकतांत्रिक हो गया है, पता ही नहिं चलता कौन शोषक है और कौन शोषित, यही भाव है।

    जवाब देंहटाएं
  5. लोकतंत्र को बेशर्मों ने बना दिया लूट तंत्र ... शर्मनाक है इन बेशर्मों को इंसानियत से ज्यादा अपनी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की कुर्सी प्यारी है ...

    जवाब देंहटाएं
  6. ॰ जयकुमार जी,
    ॰ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी,

    आभार आपका, भावों को गति देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  7. ... बेहतरीन अभिव्यक्ति !!!

    जवाब देंहटाएं
  8. उदय जी,
    आपके प्रोत्साहन का शुक्रिया!!

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी कबिता को प्रणाम
    शोषक शोषित एक हुए है
    बहुत अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  10. शोषक शोषित एक हुए
    फिर भी हैं बेहाल
    फिर क्या शोषक
    और क्या शोषित
    कुछ तो ले ले ज्ञान .

    जवाब देंहटाएं
  11. ॰ सुबेदार जी,
    आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  12. ॰अनामिका जी,
    आपका बहुत ही आभार।

    जवाब देंहटाएं
  13. बढ़िया भाव..सुंदर रचना के लिए बधाई..स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  14. योगेन्द्र मौदगिल जी
    अभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  15. गोदियाल जी,
    विनोद पांडे जी,

    आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  16. ये आज़ाद भारत की त्रासदी है ...

    जवाब देंहटाएं
  17. bhaayi jaan sbse pehle to me aapse maafi chahta hun meraa mqsd kisi ki bhaavnaaye yaa muhim ko aaht krna nhin he sbko apni bat khne or apni mn mrzi qaanun ke daayre men krne kaa hq he srve men khud dekh len hrshd mehtaa, purv mntri sukhraam, chdraasvaami ji or abhi ke kuch snt jin pr pulis ke shiknje hen kher koi baat nhin mene kaan pkde maafi maangi pliz maaf kr do lekin dusri baat aapoki yeh kvita jo is desh ki schchaayi he is desh ke haalaaton kaa drpn he iske liyen aapko bhut bhut bdhaayi aek baar fir kaan pkd kr maafi,or achche lekn ke liyen bdhaayi. akhtar khan akela kota rajsthan

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...