क्रोध मन का एक अस्वस्थ आवेग है। जीवन में अप्रिय प्रसंग, वंचनाएं, भूलें, असावधानियां, मन-वचन-काया की त्रृटियों से, जाने अनजाने में विभिन्न दुष्करण होते रहते है। मनोकामनाएं असीम होती है, कुछेक की पूर्ति हो जाती है और अधिकांश शेष रहती है। पूर्ति न हो पाने और संतोषवृति के अभाव में क्रोधोदय की स्थितियां उत्पन्न होती है। क्रोध एक ऐसा आवेश है जो उठकर शीघ्र चला भी जाय, किन्तु अपने पिछे परेशानियों का अम्बार लगा जाता है। क्रोध आपके स्वभाव में घृणा भाव को स्थाई बना देता है।
क्रोध एक व्यापक रोग है। यह अपने उदय और निस्तारीकरण के मध्य क्षण मात्र का भी अवकाश नहीं देता। जबकि यही वह क्षण होता है जब विवेक को त्वरित जगाए रखना बेहद जरूरी होता है। यदपि क्षमा, सहनशीलता और सहिष्णुता ही क्रोध नियंत्रण के श्रेष्ठ उपाय है। तथापि क्रोध को मंद करने के लिए निम्न प्रथमोपचार कारगर हो सकते है, यथा…
1- किसी की भी गलती को कल पर टाल दो!
2- स्वयं को मामले में अनुपस्थित समझो!
3- मौन धारण करो!
4- वह स्थान कुछ समय के लिए छोड दो!
5- क्रोध क्यों आ रहा है, इस बात पर स्वयं से तर्क करो!
6- क्रोध के परिणामों पर विचार करो!
संताप - क्रोध केवल और केवल संताप ही पैदा करता है।
अविनय - क्रोध, विनम्रता की लाश लांघ कर आता है। क्रोधावेश में व्यक्ति बद से बदतरता में भी, प्रतिपक्षी से कम नहीं उतरना चाहता।
अविवेक - क्रोध सर्वप्रथम विवेक को नष्ट करता है क्योंकि विवेक ही क्रोध की राह का प्रमुख रोडा है। यहाँ तक कि क्रोधी व्यक्ति स्वयं का हित-अहित भी नहीं सोच पाता।
असहिष्णुता - क्रोध परस्पर सौहार्द को समाप्त कर देता है। यह प्रीती को नष्ट करता है और द्वेष भाव को प्रबल बना देता है। क्रोध के लगातार सेवन से स्वभाव ही असहिष्णु बन जाता है। इस प्रकार क्रोध, वैर की अविरत परम्परा का सर्जन करता है।
उद्वेग - क्रोध उद्वेग का जनक है। आवेश, आक्रोश एवं क्रोध निस्तार से स्वयं की मानसिक शान्ति भंग होती है। जिसके परिणाम स्वरूप तनाव के संग संग, मानसिक विकृतियां भी पनपती है। इस तरह क्रोध जनित उद्वेग, अशांति और तनाव सहित, कईं शारीरिक समस्याओं को भी जन्म देता है।
पश्चाताप - क्रोध सदैव पश्चाताप पर समाप्त होता है। चाहे क्रोध के पक्ष में कितने भी सुविधाजनक तर्क रखे जाय, अन्ततः क्रोध घोर अविवेक ही साबित होता है। यह अप्रिय छवि का निर्माण करता है और अविश्वसनीय व्यक्तित्व बना देता है। अधिकांश, असंयत व्यक्ति अनभिज्ञ ही रहता है कि उसकी समस्त परेशानियों का कारण उसका अपना क्रोध है। जब मूल समझ में आता है सिवा पश्चाताप के कुछ भी शेष नहीं रहता।
क्रोध के परिणामों पर चिंतन-मनन, क्रोध शमन' में कारगर उपचार है।
सम्बंधित सूत्र:-
क्रोध विकार
क्रोध कषाय
बोध कथा : समता की धोबी पछाड़
“क्रोध पर नियंत्रण” प्रोग्राम को चलाईए अपने सिस्टम पर तेज - कुछ ट्रिक और टिप्स
क्रोध एक व्यापक रोग है। यह अपने उदय और निस्तारीकरण के मध्य क्षण मात्र का भी अवकाश नहीं देता। जबकि यही वह क्षण होता है जब विवेक को त्वरित जगाए रखना बेहद जरूरी होता है। यदपि क्षमा, सहनशीलता और सहिष्णुता ही क्रोध नियंत्रण के श्रेष्ठ उपाय है। तथापि क्रोध को मंद करने के लिए निम्न प्रथमोपचार कारगर हो सकते है, यथा…
1- किसी की भी गलती को कल पर टाल दो!
2- स्वयं को मामले में अनुपस्थित समझो!
3- मौन धारण करो!
4- वह स्थान कुछ समय के लिए छोड दो!
5- क्रोध क्यों आ रहा है, इस बात पर स्वयं से तर्क करो!
6- क्रोध के परिणामों पर विचार करो!
क्रोध के परिणाम -
संताप - क्रोध केवल और केवल संताप ही पैदा करता है।
अविनय - क्रोध, विनम्रता की लाश लांघ कर आता है। क्रोधावेश में व्यक्ति बद से बदतरता में भी, प्रतिपक्षी से कम नहीं उतरना चाहता।
अविवेक - क्रोध सर्वप्रथम विवेक को नष्ट करता है क्योंकि विवेक ही क्रोध की राह का प्रमुख रोडा है। यहाँ तक कि क्रोधी व्यक्ति स्वयं का हित-अहित भी नहीं सोच पाता।
असहिष्णुता - क्रोध परस्पर सौहार्द को समाप्त कर देता है। यह प्रीती को नष्ट करता है और द्वेष भाव को प्रबल बना देता है। क्रोध के लगातार सेवन से स्वभाव ही असहिष्णु बन जाता है। इस प्रकार क्रोध, वैर की अविरत परम्परा का सर्जन करता है।
उद्वेग - क्रोध उद्वेग का जनक है। आवेश, आक्रोश एवं क्रोध निस्तार से स्वयं की मानसिक शान्ति भंग होती है। जिसके परिणाम स्वरूप तनाव के संग संग, मानसिक विकृतियां भी पनपती है। इस तरह क्रोध जनित उद्वेग, अशांति और तनाव सहित, कईं शारीरिक समस्याओं को भी जन्म देता है।
पश्चाताप - क्रोध सदैव पश्चाताप पर समाप्त होता है। चाहे क्रोध के पक्ष में कितने भी सुविधाजनक तर्क रखे जाय, अन्ततः क्रोध घोर अविवेक ही साबित होता है। यह अप्रिय छवि का निर्माण करता है और अविश्वसनीय व्यक्तित्व बना देता है। अधिकांश, असंयत व्यक्ति अनभिज्ञ ही रहता है कि उसकी समस्त परेशानियों का कारण उसका अपना क्रोध है। जब मूल समझ में आता है सिवा पश्चाताप के कुछ भी शेष नहीं रहता।
क्रोध के परिणामों पर चिंतन-मनन, क्रोध शमन' में कारगर उपचार है।
सम्बंधित सूत्र:-
क्रोध विकार
क्रोध कषाय
बोध कथा : समता की धोबी पछाड़
“क्रोध पर नियंत्रण” प्रोग्राम को चलाईए अपने सिस्टम पर तेज - कुछ ट्रिक और टिप्स
बहुत सुन्दर जीवनोपयोगी लेख........
जवाब देंहटाएंक्रोध एक ऐसा शत्रु हे जिसकी आग में क्रोध करने वाला मनुष्य स्वयं जलता है ।
क्रोध..
जवाब देंहटाएंदबता नहीं कभी
पर जिस पर भी क्रोध आता है
उसका प्रतिफल किसी अन्य निरीह को प्राप्त हो जाता है
आपने क्रोध का शमन का उपाय भी बताया
उपकृत हुई मैं
सादर
बहुत उपयोगी और सारगर्भित आलेख...
जवाब देंहटाएंसच है..
जवाब देंहटाएंtrue
जवाब देंहटाएंक्रोध में जाता बोध,
जवाब देंहटाएंकुटिलता की खाई में
गिरते अबोध!
हितकारी सबके लिए
क्रोध पर ये शोध!
कुँवर जी,
sab jante hain ye upchar kintu kisi kisi ke hi vash me hota hai inhen amal me lana .सार्थक सन्देश देती .प्रेरणादायक प्रस्तुति . आभार तवज्जह देना ''शालिनी'' की तहकीकात को ,
जवाब देंहटाएंआप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
sabhi jante hain ye upchar kintu inhen amal me lana kisi kisi ke hi vash me hota hai aur jiske vash me hota hai vah mahatma hota hai .प्रेरणादायक प्रस्तुति आभार तवज्जह देना ''शालिनी'' की तहकीकात को ,
जवाब देंहटाएंआप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
प्रत्येक के जीवन में उपयोगी सुन्दर आलेख
जवाब देंहटाएंlatest post मेरी माँ ने कहा !
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
सुंदर शिक्षात्मक, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
विचारणीय मुद्दा। क्रोध तो सदा घाटे का ही सौदा है।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन क्रांतिकारी विचारक और संगठनकर्ता थे भगवती भाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार!!
हटाएंक्रोध कम करने के उपचार उपयोगी हैं , यदि उपयोग में लिए जा सके तो :)
जवाब देंहटाएंउपचार तो बढ़िया हैं पर क्रोध के समय सब भूल जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंसारे बिंदु विचारणीय हैं और प्रभावी भी .....
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी आलेख सुज्ञ जी आभार।
जवाब देंहटाएंक्रोध भी एक मानवीय व्यवहार ही है। लेकिन अक्सर इसके परिणाम अच्छे नहीं होते। ऐसे में लम्बी लम्बी सांसें लेने से नियंत्रण हो जाता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंक्रोध के समय सारे उपाय को न मानने के तर्क भी येही इंसानी दिमाग ही देता है ताकि खुद के क्रोध को सही ठहरा सके.
जवाब देंहटाएंपरिणाम जो यहाँ लिखे हैं उन्हें लगभग हम सभी ने अनुभव किया ही है.
क्रोध तो हमेशा मनुष्य को विवेकशून्य कर उसे क्षति पहुंचाता है
जवाब देंहटाएंक्रोध पर नियंत्रण करना अपने को उस क्षति से बचाना ही है
सुन्दर सार्थक लेख
सादर आभार!
सुज्ञ जी, आज आपके ब्लाग की पोस्ट हमारे यहां के भास्कर अखबार में छपी है, मेरे पास आपका इमेल एडरेस नही होने से यहां सुचित कर रहा हूं, बधाई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ताऊ जी,
हटाएंइस सूचना के लिए आभार, आप मेरी प्रोफाईल से इमेल एडरेस प्राप्त कर सकते है, कभी भविष्य में भी सम्पर्क आसान रहेगा।
सुज्ञ जी,
हटाएंमुझे वहां से एडरेस नही मिल पा रहा है, आप मुझे taau@taau.in पर आपका इमेल एड्रेस भेज दें, मैं उसकी स्केन कापी आपको भिजवा दूंगा.
रामराम.
पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
जवाब देंहटाएंकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं (25) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत बहुत आभार रश्मि प्रभा जी
हटाएंBahut prerak gyanvardhak .sadhuwad.
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