25 जुलाई 2013

इस मार्ग में मायावी पिशाच बैठा है।

दो भाई धन कमाने के लिए परदेस जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक बूढ़ा दौड़ा चला आ रहा है। उसने पास आते ही कहा, "तुम लोग इस रास्ते आगे मत जाओ, इस मार्ग में मायावी भयानक पिशाच बैठा है। तुम्हें खा जाएगा। "कहते हुए विपरित दिशा में लौट चला। उन भाइयों ने सोचा कि बेचारा बूढ़ा है, किसी चीज को देखकर डर गया होगा। बूढ़े होते ही अंधविश्वासी है। मिथक रचते रहते है। हम जवान हैं, साहसी है। हम क्यों घबराएँ। यह सोचकर दोनों आगे बढ़े।

थोड़ा आगे बढ़ते ही मार्ग में उन्हें एक थैली पड़ी हुई मिली। उन्होंने थैली को खोलकर देखा। उसमें सोने की मोहरें थी। दोनों ने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, वहाँ अन्य कोई भी नहीं था। प्रसन्न होकर बड़ा भाई बड़बड़ाया, "हमारा काम बन गया। परदेस जाने की अब जरूरत नहीं रही।" दोनों को भूख लगी थी। बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा, 'जाओ, पास के गांव से कुछ खाना ले आओ।' छोटे भाई के जाते ही बड़े भाई के मन में विचार आया कि कुछ ही समय में यह मोहरें आधी-आधी बंट जाएंगी। क्यों न छोटे भाई को रास्ते से ही हटा दिया जाए। इधर छोटे भाई के मन में भी यही विचार कौंधा और उसने खाने में विष मिला दिया। जब वह खाने का समान लेकर लौटा तो बड़े भाई ने उस पर गोली चला दी। छोटा भाई वहीं ढेर हो गया। अब बड़े भाई ने सोचा कि पहले खाना खा लूं, फिर गड्ढा खोदकर भाई की लाश को गाड़ दूंगा। उसने ज्यों ही पहला कौर उदरस्थ किया, उसकी भी मौत हो गई।

वृद्ध की बात यथार्थ सिद्ध हुई, लालच के पिशाच ने दोनों भाईयों को खा लिया था।

जहाँ लाभ हो, वहाँ लोभ अपनी माया फैलाता है। लोभ से मदहोश बना व्यक्ति विवेक से अंधा हो जाता है। वह उचित अनुचित पर तनिक भी विचार नहीं कर पाता।

दृष्टव्य :
मधुबिंदु
आसक्ति की मृगतृष्णा
आधा किलो आटा

18 टिप्‍पणियां:

  1. जहाँ लाभ हो, वहाँ लोभ अपनी माया फैलाता है। लोभ से मदहोश हुआ व्यक्ति अंध हो जाता है और उचित अनुचित पर तनिक भी विचार नहीं कर पाता।
    बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. इतिहास गवाह है
    लालची का अंत बुरा
    पर......
    आज इस युग में लालच की पराकाष्ठा का कहीं भी अंत नहीं

    जवाब देंहटाएं
  3. लालच धन को नरपिशाच बना देता है।

    जवाब देंहटाएं
  4. ऐसे समय तो अपना विवेक ही साथ दे सकता है ....अच्छी बोधकथा

    जवाब देंहटाएं
  5. इस युग में लालच की पराकाष्ठा का कहीं भी अंत नहीं। सुन्दर प्रस्तुति सुज्ञ जी, जहाँ लाभ हो वहाँ लोभ अपनी माया फैलाता ही है।

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रेरक कथा...लोभ को यूंही पाप का बाप का नहीं कहा गया...

    जवाब देंहटाएं
  7. लोभ मानवीय प्रवृति है.
    इससे निज़ात पाकर इन्सान संत बन सकता है.

    जवाब देंहटाएं
  8. आज के परिपेक्ष्य में भी सटीक कथा है, भाई ही भाई का दुश्मन हो गया है.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  9. रामायण ,महाभारत काल से भाई ही भाई का दुश्मन रहा है -लोभ भाई को भाई का दुश्मन बना देता है।
    latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
    latest दिल के टुकड़े

    जवाब देंहटाएं
  10. लालच पिशाच ही है . अधिकांश जनता पिशाच से ग्रस्त और त्रस्त है !

    जवाब देंहटाएं
  11. सार्थक सीख देती बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  12. बिल्‍कुल सच्‍ची सीख देती ... यह प्रस्‍तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. Esi be sir paer ki kahani to koi bhi bana sakta hai.. Bekar aur tukkafit

    जवाब देंहटाएं
  14. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 21 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...