एक सुनार था। उसकी दुकान से लगी हुई एक लुहार की भी दुकान थी। सुनार जब काम करता, उसकी दुकान से बहुत ही धीमी आवाज होती, पर जब लुहार काम करता तो उसकी दुकान से कानो के पर्दे फाड़ देने वाली आवाज सुनाई पड़ती।
एक दिन सोने का एक कण छिटककर लुहार की दुकान में आ गिरा। वहां उसकी भेंट लोहे के एक कण के साथ हुई। सोने के कण ने लोहे के कण से कहा, "भाई, हम दोनों का दु:ख समान है। हम दोनों को एक ही तरह आग में तपाया जाता है और समान रुप से हथौड़े की चोटें सहनी पड़ती हैं। मैं यह सब यातना चुपचाप सहन करता हूं, पर तुम इतना आक्रंद क्यों करते हो?"
"तुम्हारा कहना सही है, लेकिन तुम पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नहीं है, पर वह मेरा सगा भाई है।" लोहे के कण ने दु:ख भरे कातर स्वर में उत्तर दिया। फिर कुछ रुककर बोला, "पराये की अपेक्षा अपनों के द्वारा की गई चोट की पीड़ा अधिक असह्य होती है।"
"नास्ति राग समं दुःखम्" अपनो के प्रति अतिशय आसक्ति, हमारे परितापों में वृद्धि का प्रमुख कारण है।
एक दिन सोने का एक कण छिटककर लुहार की दुकान में आ गिरा। वहां उसकी भेंट लोहे के एक कण के साथ हुई। सोने के कण ने लोहे के कण से कहा, "भाई, हम दोनों का दु:ख समान है। हम दोनों को एक ही तरह आग में तपाया जाता है और समान रुप से हथौड़े की चोटें सहनी पड़ती हैं। मैं यह सब यातना चुपचाप सहन करता हूं, पर तुम इतना आक्रंद क्यों करते हो?"
"तुम्हारा कहना सही है, लेकिन तुम पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नहीं है, पर वह मेरा सगा भाई है।" लोहे के कण ने दु:ख भरे कातर स्वर में उत्तर दिया। फिर कुछ रुककर बोला, "पराये की अपेक्षा अपनों के द्वारा की गई चोट की पीड़ा अधिक असह्य होती है।"
"नास्ति राग समं दुःखम्" अपनो के प्रति अतिशय आसक्ति, हमारे परितापों में वृद्धि का प्रमुख कारण है।
जीवन की कडवी यादों को
जवाब देंहटाएंभावुक मन से भूले कौन ?
जीवन के प्यारे रिश्तों मे
पड़ी गाँठ, सुलझाए कौन ?
गाँठ पड़ी,तो कसक रहेगी,हर दम चुभता रहता तीर !
जानबूझ कर,धोखे देकर, कैसे नज़र झुकाते, गीत !
ला-जवाब!! भाईजी!!
हटाएंपीडा को अभिव्यक्ति प्रदान की आपने…… आभार!!
सह्नत ... अपनों द्वारा दिए दुःख का दर्द ज्यादा होता है ...
जवाब देंहटाएंपर दर्द तो हर हाल में दर्द ही रहता है ...
दर्द तो हर हाल में दर्द ही रहता है किन्तु ताप-परिताप की डिग्री न्यूनाधिक होती है। :)
हटाएंसच है अपनों की या अपना बनकर दी गयी चोट ज्यादा दर्द देती है !
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने!!
हटाएंसच है, भारत का दर्द तो यही है..
जवाब देंहटाएंनिश्चित ही भारत के साथ यही हो रहा है।
हटाएंअपनों के द्वारा पहुँचाई चोट विश्वास को खतम कर देती है ...
जवाब देंहटाएंसही कहा, अपनो का विश्वास खण्डित होता ही है।
हटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन आज लिया गया था जलियाँवाला नरसंहार का बदला - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार!!, श्रीमान्!!
हटाएंअपनों द्वारा दी गई चोट असहनीय होती है,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: होरी नही सुहाय,
जी!! अतिरिक्त पी्ड़ादायक!!
हटाएंबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंनफरत से की गयी चोट से हर जखम हमने सह लिया
घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से
वाह!! प्यार भरी चोट :)
हटाएंसही बात है। इसी बात पर एक ऑटो-शायरी याद आ गई
जवाब देंहटाएंहमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था
मेरे कश्ती वहाँ डूबी, जहां पानी कम था ।।
जी, सटीक है…… "गैरों में कहाँ दम था"
हटाएंबिलकुल सच ....जहाँ आशाएं, अपेक्षाएं और जुड़ाव हो, पीड़ा भी वहीँ ज्यादा होती है ....
जवाब देंहटाएंजी!! यही तो मोहबंधन है।
हटाएंयथार्थ |
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
लो हा हा सुन लो विकट, कण-लोहा पर मार |
हटाएंलौह हथौड़ा पीटता, कण चिल्लाय अपार |
कण चिल्लाय अपार, नहीं सह पाता चोटें |
रहा बिरादर मार, होय दिल टोटे टोटे |
अपनों की यह मार, नहीं लोहा को सोहा ||
स्वर्ण सहे चुपचाप, चोट मारे जब लोहा |
वाह!! अद्भुत उद्गार!!
हटाएंलौह हथौड़ा पीटता, कण चिल्लाय अपार |
आभार, कविवर!!
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आभार, दिलबाग जी
हटाएंसच है चोट तो अपने ही दे सकते हैं ,और ये चोट एक नाउम्मीदी की होती है ......
जवाब देंहटाएंइसलिए कि अपनो से चोट की अपेक्षा ही नहीं होती।
हटाएंबिलकुल सच
जवाब देंहटाएं"पराये की अपेक्षा अपनों के द्वारा की गई चोट की पीड़ा अधिक असह्म होती है।"
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
राजेन्द्र जी, आभार
हटाएंwah...
जवाब देंहटाएंdil ko chhune wali baat..
संस्तुति के लिए आभार मित्र!!
हटाएंआभार शालिनी जी!!
जवाब देंहटाएंअपनों की चोट लगती भी तो तेज है:)
जवाब देंहटाएंलेकिन सुज्ञ जी, एक बात तो है कि सही चोट न पड़े तो सही आकृति भी नहीं बनेगी। चोट से अगर कुछ सकारात्मक हो तो ’चोटें अच्छी हैं’...
अपनों की चोट वाकई तेज!! आपने सही कहा संजय जी, यही चोटें, आकार को स्पष्ट गढ़ने में मदद करती है। उस लिहाज से ’चोटें अच्छी हैं’
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