14 मार्च 2013

उदारता की क़ीमत

लोहे का तेजधार कुल्हाड़ा, वन वन भटक रहा था। सहमे से पेड़ डर से थर थर कांपने लगे। एक बूढ़े पेड़ ने सभी को धीरज बंधाई- “यह कितना भी तेज धार कुल्हाड़ा हो, हमारा तब तक कुछ नहीं बिगाड़ सकता जब तक हमारा ही कोई अंग इसका हत्था नहीं बनता। बिना हत्थे के इसमें वह सामर्थ्य नहीं कि हमें नष्ट कर सके।“ बूढ़े पेड़ की बात सुन शाखाएँ नरम और आश्वस्त होकर विश्राम करने लगी।

कुल्हाड़ा भटकता रहा, वांछित के लिए उसका श्रम जारी था, वह शाखाओं को अपनी अपेक्षा अनुसार सहलाता, किन्तु उलट शाखाओं की नम्रता, उसके उद्देश्य को विफल कर रही थी। सहसा एक सीधी सरल टहनी से कुल्हाड़े का तनाव देखा न गया। दया के वशीभूत उसने उदारता दर्शायी। कुल्हाड़े के दांत चमक उठे। धीमे से उसने अपना काम कर दिया। समय तो लगा पर आखिर कुल्हाड़ा, हत्था पाने में सफल हो गया। बूढ़ा पेड़ विवशता से देखता ही रह गया।

कुल्हाड़ा अट्टहास करने लगा। बूढ़े पेड़ ने कहा- "अगर हमारा ही कोई अपना, तेरा साथ न देता तो तूँ कभी अपने कुत्सित इरादों मे सफल न हो पाता।"  साथ ही उस सीधी सरल टहनी को उपालंभ देते हुए कहा, “तूँ अपने विवेकहीन सद्भाव पर मत इतरा, एक दिन यह तुझे भी उखाड़ फैकेगा, किंतु तेरी इस उदारता की कीमत हमारा समग्र वंश चुकाएगा।“ कुल्हाड़ा,  पेड़ दर पेड़ को धराशायी करने लगा।

कुल्हाड़ा, वन साफ होने से मिली भूमि पर भी कब्जा करने लगा। उसने वहाँ अपने लोह वंश विस्तार के उद्योग लगाए। लोहे की सन्तति हरे भरे वनो की जगह फैलती चली गई। अब अधिकाँश भूमि पर उसका साम्राज्य था।
उसने अपने आप को विकसित करना सीख लिया था। अब तो बस उसे लकड़ी पर अपनी निर्भरता को समाप्त करना था। कुल्हाडे ने लकड़ी के उस हत्थे को निकाल भट्ठी में झोंक दिया, और स्वयं इलैक्ट्रिक शॉ मशीन का रूप धर लिया, विनाश को और भी प्रबल और विराट करने के लिए।

अहिंसा के पालन के लिए उदारता बरती जा सकती है किन्तु वह कैसी उदारता जिसमें हिंसक मानसिकता का संरक्षण और हिंसा को समर्थन देने की बाध्यता हो।

14 टिप्‍पणियां:

  1. अहिंसा स्वयं को नष्ट कर लेने के लिये न हो।

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  2. .एक एक बात सही कही है आपने . आभार ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर . .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात WOMAN ABOUT MAN

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  3. सुन्दर सीख-
    आभार आदरणीय-

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  4. सदा याद रखने योग्य गहरी बात। आभार!

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  5. बहुत उम्दा सीख देती प्रस्तुति,,,

    बीबी बैठी मायके , होरी नही सुहाय
    साजन मोरे है नही,रंग न मोको भाय..
    .
    उपरोक्त शीर्षक पर आप सभी लोगो की रचनाए आमंत्रित है,,,,,
    जानकारी हेतु ये लिंक देखे : होरी नही सुहाय,

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  6. सही सन्देश ...आजकल देश में ऐसे हालात देखे जा सकते हैं

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  7. कुटिलता सरलता को मोहरा बना ही लेती है।

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  8. दया और करुणा न हो तो संसार का क्या हो ...??

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  9. विचारणीय प्रस्तुति...

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